ताजमहल को ले जाना पड़ेगा यमुना की बाईं ओर

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रख-रखाव और बेहतरी लिए हो गया है जरूरी, शिफ्टिंग में यूनेस्को से ली जा सकती है मदद

नई दिल्ली : ऐतिहासिक इमारत ताजमहल, दुनिया के अजूबों में शुमार है. आगरा की पहचान भी ताजमहल से होती है. यहां हर साल लाखों सैलानी आते हैं. विश्व में भी इसकी अलग छाप है. दुनियाभर के लोग दिल्ली से आगरा सिर्फ ताजमहल देखने पहुंचते हैं. हाल ही एक में चर्चा थी कि क्यों न ताजमहल को कहीं शिफ्ट कर दिया जाए. सुनने में बेतुका सा लगता है. लेकिन, क्या ये मुमकिन है. क्योंकि सैकड़ों साल पुरानी इतनी बड़ी इमारत को शिफ्ट करना कोई मामूली बात तो नहीं. आखिर कैसे उसे उठाकर शिफ्ट किया जाए और कहां? बीबीसी हिन्दी ने इस विषय पर एक लेख प्रकाशित किया है. लेख में ताजमहल की शिफ्टिंग पर अच्छी जानकारी है. हालांकि, ताजमहल आगरा से कहीं बाहर नहीं जाएगा. इससे अपनी पहचान नहीं खोनी होगी.

मिस्र से ले सकते हैं उदाहरण
दिल्ली से आगरा जाएं तो ताजमहल यमुना के दाईं तरफ पड़ता है. दिल्ली से जाने वालों को शहर के बीच से होकर यहां पहुंचना होता है. यही वजह है कि अक्सर यहां जाम लगा रहता है. बीबीसी ने अपने लेख में सुझाया है कि ऐसा हो कि ताजमहल को उठाकर यमुना के इस पार यानी बाएं ओर रख दिया जाए. कठिन है. लेकिन निश्चित ही यह संभव है. दरअसल, मिस्र में ऐसा कारनामा बरसों पहले किया जा चुका है. उस वक्त भी यह कारनामा इंसानों ने किया था. करीब तीन हजार साल पुरानी और ऐतिहासिक इमारत को उठाकर दूसरी जगह ले जाया गया था और उसी रूप में उसे स्थापित किया गया.

मिस्र का ऐतिहासिक मंदिर
आने वाली पीढ़ी के लिए ऐसी इमारतों को संजो कर रखने का काम काफी समय से चल रहा है. दुनिया में ऐसी बहुत सी ऐतिहासिक धरोहर हैं, जिन्हें अगर समय रहते बचाया नहीं गया होता तो शायद इतिहास का यह खजाना मिट्टी में मिल जाता. ताजमहल को लेकर भी यही चर्चा है, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने भी इस मामले में रखरखाव वाली एजेंसी को फटकार लगाई थी. साथ ही उत्तर प्रदेश सरकार को भी इस मामले में खरी-खरी सुनाई थी.

यूनेस्को ने की थी मदद
मिस्र के ऐताहासिक मंदिर को बचाने में यूनेस्को ने अहम भूमिका निभाई थी. यही नहीं यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साइट यानी विश्व की धरोहरों की फेहरिस्त में शामिल हैं. मिस्र का अबु सिम्बल मंदिर दक्षिणी मिस्र की प्राचीन घाटी नुबियन में पहाड़ काट कर बनाया गया है. मंदिर के अंदर की खूबसूरती देखते ही बनती है. मंदिर की छत से लेकर फर्श तक उस दौर के राजा फराओ रैमसेस द्वितीय की जंगों में मिली कामयाबियों के किस्से उकेरे गए हैं. दरअसल इस मंदिर का निर्माण इसी राजा ने करवाया था. मंदिर के बाहर भी फराओ के चार विशाल बुत बने हैं, जिनका रुख सामने से बह रही नदी की ओर है.

डूब कर खत्म हो जाता मंदिर
अबु मंदिर के पास से गुजरने वाली नील नदी से जुड़ी एक झील के पास बांध बनाया गया था. जिसकी वजह से अबु मंदिर के डूबने का खतरा हो गया था. अगर विएना हिस्टोरिक सेंटर, कम्बोडिया के अंकोरवाट या यूनेस्को की दीगर वर्ल्ड हेरिटेज साइट की तरह अबु सिम्बल को संजोया नहीं गया होता तो शायद ये अद्भुत मंदिर पास से गुजरने वाली झील में डूब कर खत्म हो चुका होता.

काटकर शिफ्ट किया गया था मंदिर
ब्रिटिश जियोग्राफिक एक्स्पेडीशन कंपनी की डायरेक्टर किम कीटिंग का कहना है कि मिस्र ने अपनी ऐतिहासिक धरोहरें बचाने के लिए बहुत काम किया है. अबु सिम्बल का ये मंदिर इसकी सबसे बड़ी मिसाल है, जिसे नील नदी पर बनने वाले अस्वान बांध की वजह से एक जगह से हटाकर दूसरी जगह शिफ्ट किया गया, वो भी जस का तस.

शिफ्ट करने के बाद नई मंदिर

टुकड़े कर तोड़ा, फिर वैसा ही जोड़ा
एक टीम ने मंदिर को पांच साल की मशक्कत के बाद तोड़ा. मंदिर के टुकड़े-टुकड़े करके उन्होंने उसे उठाया गया और उसी पहाड़ी पर क़रीब 60 मीटर ऊंचाई पर लाकर फिर से जोड़कर उसी तरह का मंदिर तैयार कर दिया. बादशाह रैमसेस के मंदिर को 860 टुकड़ों में काटा गया. वहीं रानी के मंदिर को दो सौ से ज़्यादा टुकड़ों में काटकर दूसरी जगह ले जाया गया.

भारत में भी है मुमकिन
आर्केलॉजिकल डिपार्टमेंट के एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि भारत में इस तरह की चीजें संभव है. कुछ समय पहले आंध्र प्रदेश में एक मंदिर को शिफ्ट किया गया था. वहीं, जयपुर में भी लडेश्वर मंदिर को देवालय में शिफ्ट किया गया था. हालांकि, अधिकारी ने ताजमहल के संबंध में कुछ भी कहने से इनकार कर दिया.

तो इस तरह शिफ्ट हो सकता है ताजमहल
अगर सबकुछ मुमकिन माना जाए तो ताजमहल को भी शिफ्ट किया जा सकता है. क्योंकि, सुप्रीम कोर्ट पहले ही एजेंसी को रखरखाव के लिए फटकार लगा चुका है. अगर स्थिति ऐसी बनती हैं कि ताजमहल को शिफ्ट किया जाए तो निश्चित ही ऐसा मुमकिन है.

यूनेस्को की मदद से हो सकता है शिफ्ट
यूनेस्को ने अब ऐसे ही और कई प्रोजेक्ट पूरा करने में जुटा है. हालांकि, ताजमहल को शिफ्ट करने को लेकर कोई चर्चा नहीं है. लेकिन, कभी जरूरत हुई तो यूनेस्को की मदद ली जा सकती है. फिलहाल, यूनेस्को इटली के वेनिस शहर को बचाने के प्रोजेक्ट पर काम जारी है जो कि 1960 में आई बाढ़ में कमोबेश तबाह हो गया था.

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