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RSS पर सरकार के बड़े फैसले से मचा सियासी तूफान

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नई दिल्ली : बजट सत्र शुरू होते ही सोमवार को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) को लेकर सरकार के बड़े फैसले ने बड़ा राजनीतिक तूफान खड़ा कर दिया है. सरकार ने संघ की गतिविधियों में सरकारी कर्मचारियों की भागीदारी पर पहले के प्रतिबंध को रद्द कर दिया है. इस सरकारी आदेश ने सत्तारूढ़ भाजपा और कांग्रेस एवं अन्य  विपक्षी के बीच एक नया मोर्चा खोल दिया है.

संघ के बारे में कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग का 9 जुलाई का आदेश पिछले उन तीन आदेशों के संदर्भ में आया है, जिनमें सरकारी कर्मचारियों को भाजपा के वैचारिक संगठन, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यक्रमों में भाग लेने पर प्रतिबंध लगाया गया था. ये आदेश 30 नवंबर, 1966, 25 जुलाई, 1970 और 28 अक्टूबर, 1980 को दिए गए थे.

कांग्रेस ने इस मुद्दे पर संसद में उठाने की योजना बनाई है. उधर भाजपा आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने सोमवार को एक्स पर कहा है कि दिवंगत प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा लगाया गया मूल प्रतिबंध आदेश असंवैधानिक था.

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा सांसद जयराम रमेश ने कहा-  फरवरी 1948 में गांधी जी की हत्या के बाद सरदार पटेल ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) पर प्रतिबंध लगा दिया था. इसके बाद अच्छे आचरण के आश्वासन पर प्रतिबंध को हटाया गया. इसके बाद भी RSS ने नागपुर में कभी तिरंगा नहीं फहराया. 1966 में, RSS की गतिविधियों में भाग लेने वाले सरकारी कर्मचारियों पर प्रतिबंध लगाया गया था और यह सही निर्णय भी था. यह 1966 में बैन लगाने के लिए जारी किया गया आधिकारिक आदेश है.

जयराम रमेश ने कहा कि 4 जून 2024 के बाद, स्वयंभू नॉन-बायोलॉजिकल प्रधानमंत्री और RSS के बीच संबंधों में कड़वाहट आई है. 9 जुलाई 2024 को, 58 साल पुराना प्रतिबंध हटा दिया गया, जो अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्री के कार्यकाल के दौरान भी लागू था. मेरा मानना है कि नौकरशाही अब निक्कर में भी आ सकती है.

एआईएमआईएम प्रमुख और हैदराबाद से लोकसभा सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने इसे गलत बताया है. अपने बयान में तीखा प्रतिक्रिया देते हुए उन्होंने कहा- ‘इस कार्यालय ज्ञापन से कथित तौर पर पता चलता है कि सरकार ने 

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की गतिविधियों में भाग लेने वाले सरकारी कर्मचारियों पर से प्रतिबंध हटा दिया है. यदि यह सत्य है तो यह भारत की अखंडता और एकता के विरुद्ध है. RSS पर प्रतिबंध इसलिए है, क्योंकि उसने मूल रूप से संविधान, राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रगान को स्वीकार करने से इनकार कर दिया था. प्रत्येक RSS सदस्य शपथ लेता है कि वह हिंदुत्व को राष्ट्र से ऊपर रखता है. कोई भी सिविल सेवक यदि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का सदस्य है तो वह राष्ट्र के प्रति वफादार नहीं हो सकता.’ 

यह सही है कि 1950 के बाद से संघ ने कभी भी नागपुर स्थित अपने मुख्यालय पर तिरंगा नहीं फहराया. वहां पर सिर्फ भगवा ध्वज ही फहराया जाता रहा, चाहे मौका स्वतंत्रता दिवस का रहा हो या फिर गणतंत्र दिवस का. आधी सदी से ज्यादा गुजर जाने के बाद उन्होंने 2002 में केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार बनने के बाद पहली बार नागपुर स्थित संघ मुख्यालय पर तिरंगा फहराना प्रारंभ किया गया. उससे पूर्व केवल सरकारी भवनों पर ही तिरंगा फहराने का आदेश आजादी के बाद से ही लागू था. 

भाजपा आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने दावा किया कि हिंदुत्व समर्थक संगठन पर प्रतिबंध कथित तौर पर 7 नवंबर, 1966 को संसद के बाहर हुए गोहत्या विरोधी विरोध प्रदर्शन के कारण लगाया गया था. उन्होंने आगे कहा कि पुलिस फायरिंग में लाखों प्रदर्शनकारियों की मौत हो गई थी. 

 मालवीय ने लिखा, “30 नवंबर 1966 को, आरएसएस-जनसंघ के दबदबे से आहत होकर, इंदिरा गांधी ने सरकारी कर्मचारियों के आरएसएस में शामिल होने पर प्रतिबंध लगा दिया.” हालांकि अमित मालवीय के इस दावे का खंडन इस बात से हो जाता है कि आरएसएस पर पहला प्रतिबंध तत्कालीन केंद्रीय गृह मंत्री सरदार पटेल ने गांधी जी की हत्या के बाद लगाया था.

पटेल का यह मानना था कि गांधी की हत्या में RSS का हाथ है. RSS पर उस समय भारत-पाकिस्तान बंटवारे का लाभ उठाकर दंगे भड़काने का भी आरोप था. 

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