उर्वरक क्षेत्र में गुम है “आत्मनिर्भर भारत” और “स्टार्टअप इंडिया” उपक्रम

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उर्वरक

देश में निर्मित उर्वरक के उत्पादन में मध्यम और लघु उद्योगों की बाधाएं दूर करने की जरूरत

*कल्याण कुमार सिन्हा-
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के अंतर्गत महात्मा फुले कृषि विश्वविद्यालय (MPKV), राहुरी (नासिक) द्वारा किए गए शोध एवं अनुसंधान और इसके तहत किसानों को दिए गए दिशा निर्देशों के अध्ययन से पता चलता है कि “बिन सब्सिडी वाले SOMS उर्वरक” पहले से ही आंशिक, बहु आंशिक और शत-प्रतिशत सब्सिडी के बोझ को कम करती आ रही है.

लेकिन केंद्रीय कृषि मंत्रालय में बैठे विदेशी उर्वरक कंपनी हितैषी और देश के आयात हितैषियों की लॉबी आयातित उर्वरकों के कारण बढ़ती सब्सिडी को और अधिक बढ़ाते जा रहे हैं. उर्वरक मामले में सरकार का “आत्मनिर्भर भारत” और “स्टार्टअप इंडिया” उपक्रम कहीं नजर नहीं आता. जबकि देश में मध्यम और लघु उद्योग क्षेत्र को भी आगे लाकर देश को उर्वरक उत्पादन मामले में भी आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में एक दमदार पहल संभव है.

खबरों के मुताबिक सरकार आगामी केंद्रीय बजट में “राष्ट्रीय उर्वरक उत्पादन नीति” (National Fertilizer Policy) के अन्तर्गत कार्यरत मध्यम एवं लघु उद्योग (MSME) क्षेत्र के लिए कुछ प्रोत्साहन, कच्चे माल के आयात पर कम इम्पोर्ट ड्यूटी के साथ ही इन्हें उत्पादन में बढ़ावा देने वाले कदम शामिल करने जा रही है. देर से ही सही, लेकिन सरकार को उर्वरक क्षेत्र में मध्यम एवं लघु उद्योग की भूमिका की अहमियत समझ में आई है. देखना है, सरकार के अंतर्गत सक्रीय विरोधी लॉबी इसे कितना कारगर होने देती है.

सरकार उर्वरकों पर बढ़ती सब्सिडी की रकम से चिंतित है, जो 2019-20 83 हजार करोड़ से बढ़ कर पिछले वर्ष 2020-21 में 1.62 लाख करोड़ रुपए और अब 2.3 लाख करोड़ रुपए हो चला है. किन्तु देश में सब्सिडी वाले उर्वरकों के आयात पर निर्भरता कम करने के उपाय की ओर केवल एक नैनो यूरिया पर ही अधिक ध्यान केंद्रित किया जा रहा है. नैनो यूरिया को पारम्परिक यूरिया से अधिक सक्षम, सस्ता और 45 य 50 किलोग्राम वाली बोरी की यूरिया के मुकाबले 500 मिलीलीटर की बोतल में उपलब्ध्ता सरकार को अधिक आकर्षित कर रही है. लेकिन कुछ कृषि विज्ञानियों का मानना है कि नैनो यूरिया में नाइट्रोजन की मात्रा बोरी वाले यूरिया के मुकाबले काफी कम है, जो चिंता का विषय है.

जबकि, मध्यम और लघु उद्योग क्षेत्र में निर्मित पर्यावरण हितैषी SOMS उर्वरकों में घुलनशील उर्वरक (Solubles), जैविक उर्वरक (Organic), माइक्रोन्यूट्रींस (Micronutrients), स्टिमुलैंट्स (Stimulants) पहले से ही देश के बढ़िया प्रदर्शन कर रहे हैं. लेकिन संस्थागत समर्थन के अभाव में सरकार में मध्यम और लघु उद्योग क्षेत्र के इस महत्वपूर्ण अवदान की कोई पूछ नहीं है. घुलनशील उर्वरक के बारे में उत्पादकों के साथ ही विशेषज्ञों और इस्तेमाल कर्ता किसानों की नजर में यह नैनो यूरिया से अधिक कारगर, सस्ता और इसकी पहुंच कृषि भूमि के अधिक रकबे तक है.

उदाहरण के तौर पर, अंगूर में, पानी में घुलनशील उर्वरक (WSF) से 49% यूरिया सब्सिडी, 90% डीएपी सब्सिडी और 100% एमओपी सब्सिडी की बचत होती है. यह खास प्रकार के उर्वरकों में से है. इसे देश में बहुत कम उत्पादकों द्वारा तैयार किए जाते. क्योंकि सरकार के नासमझ अथवा आयात हितैषी लॉबी ने इस घुलनशील उर्वरक के उत्पादन और विक्रय में अनेक बाधाएं खड़ी कर रखी है. देश की कुल जरूरतों का 98 फीसदी घुलनशील उर्वरक चीन से आयात होता है, जिसे देश के सभी राज्यों में बेचने की छूट है. जबकि भारतीय लघु क्षेत्र के निर्माताओं को अनेक महंगे परीक्षणों, अनावश्यक पर्यावरण मंजूरी और अलग-अलग राज्यों में बेचने की अलग-अलग मंजूरी लेनी पड़ती है. इस कारण अब अनेक छोटे और मझोले भारतीय उत्पादक इंपोर्टर बन गए हैं. वे सभी अब चीन के छोटे और मझोले कारखानों से आयात कर देश भर में इसे बेच रहे हैं.

भारतीय घुलनशील उर्वरक उद्योग (SFIA) संघ ने केंद्रीय कृषि मंत्रालय को प्रस्तावित स्वदेशी उर्वरक उत्पादन संबंधी नीतिगत सुधारों के मद्देनजर देश में ही उर्वरक उत्पादन की बाधाओं को दूर करने और चीन से घुलनशील उर्वरक के आयात पर निर्भरता दूर करने पर लगातार जोर दे रहा है.

SFAI के अध्यक्ष राजीव चक्रवर्ती ने बताया कि पूर्व में भी सरकार को उर्वरक क्षेत्र में MSME की भूमिका और उनके समक्ष पैदा किए गए अवरोधों की ओर ध्यान दिलाने की कोशिश हमने की है. इस बार जब आगामी वार्षिक बजट में “राष्ट्रीय कृषि एवं उर्वरक नीति” के तहत MSME पर भी ध्यान देने के कदम के बारे में पता चला है तो हमने कृषि मंत्रालय के नीति निर्माताओं का ध्यान देश में घुलनशील उर्वरक सहित अन्य उर्वरकों के उत्पादन में आने वाली बाधाओं को दूर के लिए संगठन की ओर से सात सुझाव दिए हैं.

उन्होंने बताया कि हमने सरकार को देश की माध्यम एवं लघु उद्योग (MSME) क्षेत्र में अनावश्यक रूप से पर्यावरण मंजूरी (ईसी) लेने, कच्चे माल पर अत्यधिक GST, सब्सिडी का अभाव, कच्चे माल की उपलब्धता की समस्या, अनुसंधान और विकास का अभाव और अल्पावधि श्रमिकों की नियुक्ति में कारखाना अधिनियम के मानदंड की बाधा जैसी अवरोधों को दूर करने में नीतिगत निर्णय लेकर इन इकाइयों को बढ़ावा देने का सुझाव दिया है.

उन्होंने बताया है कि आज चीन अथवा जर्मनी के घुलनशील उर्वरक देश में मात्र 5% GST पर पूरे देश में बेचे जाते हैं. लेकिन भारतीय घुलनशील उर्वरक उत्पादकों को कच्चे माल पर 18% GST देने पड़ते हैं. इसके साथ अपने उत्पाद देश में बेचने के लिए अलग-अलग राज्यों से अलग-अलग अनुमति लेनी पड़ रही है. उन्होंने इन समस्याओं से मंत्रालय को बिन्दूवार अवगत कराने का प्रयास किया है, जो इस प्रकार है-

1. पहली बाधा : छोटी इकाइयों के लिए पर्यावरण मंजूरी- राजीव चक्रवर्ती के अनुसार औद्योगिक उपयोग के लिए निर्मित होने पर एक अकार्बनिक रासायनिक अणु को Environmental clearance (ईसी) की आवश्यकता नहीं होती है. लेकिन, जब उसी अणु को उर्वरक के रूप में बता दिया जाता है तो ईसी की आवश्यकता होती है. ईसी अधिनियम की धारा 5 (ए) रासायनिक उर्वरक को श्रेणी ए में सूचीबद्ध करती है. जबकि घुळांशील उर्वरक के निर्माण में एक अकार्बनिक रासायनिक अणु का ही उपयोग होता है. चूंकि पानी में घुलनशील उर्वरक और अधिकांश अन्य विशेष उर्वरक के लिए एक शून्य-निर्वहन रासायनिक प्रक्रिया कोई भी प्रदूषण उत्पन्न नहीं करती है. अतः इससे पर्यावरण को हानि पहुंचाने की कोई गुंजाइश नहीं होती. फिर भी लघु उद्योग के लिए ईसी प्राप्त करना जरूरी बना दिया गया है. इसके लिए अधिक पैसे खर्च करने पड़ते हैं, साथ ही मंजूरी मिलने में अत्यधिक समय भी लगता है.

चक्रवर्ती ने बताया कि SFAI ने सरकार को सुझाव दिया है कि वह 5 करोड़ के पूंजी निवेश (भूमि और भवन के अलावा) तक “शून्य निर्वहन परियोजनाओं के लिए” माध्यम एवं लघु उद्योग (MSME) को ईसी छूट (EC exemption to MSME for “Zero Discharge Projects” upto a capital investment (apart from Land & Building) of 5 Cr.) की अनुमति दी जानी चाहिए.

2. गैर-सब्सिडी वाले उर्वरकों को बढ़ावा देना जरूरी- अंगूर में, पानी में घुलनशील उर्वरक (WSF) से 49% यूरिया सब्सिडी, 90% डीएपी सब्सिडी और 100% एमओपी सब्सिडी की बचत होती है. यह मिट्टी, पानी और हवा को भी प्रभावित नहीं करता है या सभी आवश्यक पोषक तत्वों की आपूर्ति करते हुए पौधे पर कोई अवशेष नहीं छोड़ता है. जल में घुलनशील उर्वरक (WSF), चेलेट्स और कई अन्य उर्वरकों के बिना गुणवत्ता वाले अंगूर की उपज असंभव है. इसी प्रकार फसल की उपज, गुणवत्ता, किसान की आय, मृदा संरक्षण और पौधों के स्वस्थ भोजन के लिए ये कृषि आदान आवश्यक हैं. इसलिए यह जरूरी है कि जैविक उर्वरकों के साथ-साथ इन विशिष्ट उर्वरकों को बढ़ावा दी जाए. यह श्रीलंका के अनुभव की पुनरावृत्ति को भी रोकेगा.

3. कच्चे माल की गारंटी- उर्वरक उत्पादन में आवश्यक कुछ बुनियादी कच्चे माल जैसे नाइट्रिक एसिड, सल्फ्यूरिक एसिड, अमोनिया, पोटाश, रॉक फॉस्फेट, जस्ता और कुछ अन्य MSME के लिए हमेशा कम आपूर्ति में रहे हैं. अधिकांश MSME के पास इन सबसे महत्वपूर्ण फीड तक पहुंच नहीं है या वे व्यापार द्वारा आपूर्ति और मूल्य में हेरफेर से कुचले जाते हैं.

उर्वरकों में आत्मनिर्भर उत्पादन के लिए, यह सबसे महत्वपूर्ण है कि एमएसएमई को सभी महत्वपूर्ण कच्चे माल तक पहुंच प्रदान की जाए और अचानक कमी और मूल्य परिवर्तन से कवर दिया जाए. इसलिए यह नितांत आवश्यक है कि “भारतीय लघु उर्वरक निर्माण इकाइयों”
को प्राथमिकता खंड का दर्जा दिया जाए और प्राथमिकता खंड के लिए कच्चा माल प्रत्येक उत्पादक के लिए आरक्षित मात्रा में उपलब्ध कराई जाए.

4. कच्चे माल पर GST की बाधा- विडंबना है कि उर्वरक के सभी कच्चे माल पर 18% GST लगता है, जबकि सभी तैयार उर्वरक पर 5% GST ही लगता है. भारतीय उर्वरक निर्माण पहले से ही उत्पादित प्रत्येक किलोग्राम उर्वरक पर 13% की बढ़ती जीएसटी इनपुट में फंस गया है. मध्यम और लघु इकाइयों को अधिक से अधिक लेना पद रहा है. क्योंकि इसकी अधिकांश कार्यशील पूंजी GST इनपुट में अवरुद्ध हो रही है. GST की ऐसी बढ़त के कारण कर्ज का जाल पूरे एमएसएमई को बहुत ही कम समय में खत्म कर देगा और विनिर्माण को असंभव बना देगा.

यही कारण है कि देश के अधिकांश MSME घुलनशील उर्वरक उत्पादक, उत्पादन करने बजाय चीन से आयात कर किसानों को उपलब्ध करा रहे हैं. उन्हें चीन में तैयार घुलनशील उर्वरक पर मात्र 5% जीएसटी का ही भुगतान करना पड़ता है. इसलिए यह जरूरी है कि सभी उर्वरकों के कच्चे माल पर भी 5% GST ही लगाई जाए. ऐसे कच्चे माल में अम्ल, धातु, रॉक फॉस्फेट आदि शामिल हैं.

5. देश भर में बिक्री की एकल अनुमति जरूरी- स्वदेशी रूप से विशेष उर्वरक विकसित करने वाली उर्वरक इकाइयों को पूरे देश में बिक्री की अनुमति जरूरी है. वर्तमान में अलग-अलग राज्यों में बिक्री के लिए उन सभी राज्यों से अलग-अलग अनुमति लेनी पड़ती यही. इसके अलावा नाबार्ड और अन्य संस्थानों की वित्तीय सहायता से बैंक वित्त पोषित करने की भी जरूरत है.

6. अनुसंधान एवं विकास के लिए विश्वविद्यालय लिंकेज- उर्वरक निर्माता MSME को विकास एवं अनुसंधान R&D के लिए प्रोत्साहन की भी आवश्यकता है. सभी केंद्रीय विश्वविद्यालयों, इंजीनियरिंग कॉलेजों, कृषि विश्वविद्यालयों और रसायन विज्ञान प्रयोगशालाओं वाले अन्य राज्य विश्वविद्यालयों में बहुत सारी क्षमता, उपकरण और मानव विशेषज्ञता अप्रयुक्त रह गई है. इस क्षेत्र में अनुसंधान एवं विकास और परीक्षण सहायता के लिए MSME के लिए इस क्षमता को खोले जाने की आवश्यकता है.

7. कारखाना अधिनियम- MSME कर्मचारियों की सीमित संख्या और सीमित अवधि के लिए अकुशल श्रमिकों के साथ काम करता है. उर्वरक एक मौसमी उत्पाद है. इसलिए इनमें अल्पावधि रोजगार ही उपलब्ध कराया जा सकता है. इनमें से अधिकांश श्रमिक बुआई के मौसम में, कटाई के मौसम में अपने गांव वापस चले जाते हैं और बीच में उर्वरक का उत्पादन करने के लिए वापस आ जाते हैं.

एक MSME कम अनुपालन के साथ ही बेहतर प्रदर्शन करता है और इससे लागत कम आती है. जिस कारण किसानों को कम से कम दर पर उर्वरक उपलब्ध कराना संभव हो सकता है. इसलिए यह जरूरी है कि सभी राज्यों में फैक्ट्री अधिनियम की प्रयोज्यता मानदंड को वर्तमान 10-25 से बढ़ाकर 50 की जानी चाहिए.

राजीव चक्रवर्ती ने कहा कि सरकार यदि हमारे भारतीय घुलनशील उर्वरक उद्योग संघ (SFIA) के इन सुझावों को अपनी राष्ट्रीय कृषि एवं उर्वरक उत्पादन नीति” में स्थान देती है तो उर्वरकों के आयात में तत्काल कुछ कमी तो जरूर आएगी. साथ ही आगे चल कर सब्सिडी का न केवल बोझ कम होगा, बल्कि उर्वरकों के आयात पर विदेशी निर्भरता में भी कमी संभव होगी.

उर्वरक
-कल्याण कुमार सिन्हा.

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