विशेष : पिछले सप्ताह भारत के मुख्य न्यायाधीश पद से सेवानिवृत्त हुए पूर्व सीजेआई जस्टिस उदय उमेश ललित आगे कौन सी सरकारी भूमिका निभाने वाले हैं, यह स्वाभाविक प्रश्न विधि क्षेत्र के लोगों में चर्चा का विषय बना रहा.
देश की सर्वोच्च अदालत में 37 वर्षों तक कार्य करने, इस अवधि में 8 वर्षों तक सुको के न्यायाधीश और 74 दिनों तक मुख्य न्यायाधीश का सर्वोच्च पद संभालते हुए उन्होंने अपने इस कार्यकाल में 10 हजार से अधिक मुकदमों का निपटारा करने और 23 हजार मुकदमों को मेरिट के अभाव में डिसमिस करने के साथ ही सुप्रीम कोर्ट के कामकाज में सुधार के लिए भी उल्लेखनीय कदम उठाए. सीजेआई के रूप में उन्होंने अनेक संविधान पीठ का गठन किया, जिससे अनेक संवैधानिक विवादों को जल्द सुलझाने में मदद मिली है.
जस्टिस ललित को लेकर विधि क्षेत्र में यह चर्चा थी कि पूर्व सीजेआई जस्टिस रंजन गोगोई एवं अन्य की तरह वे भी राज्यसभा की सदस्यता अथवा राज्यपाल का पद स्वीकार कर सकते हैं. लेकिन सेवानिवृति के दौरान ही पूछे जाने पर उन्होंने स्पष्ट किया है कि राज्यसभा सदस्य बनाना अथवा राज्यपाल का पद स्वीकार करना उन्हें मंजूर नहीं है. उन्होंने कहा कि पूर्व सीजेआई जस्टिस गोगोई का राज्यसभा की सदस्यता स्वीकार करना मुझे गलत नहीं लगता. साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि सर्वोच्च न्यायालय के किसी सेवानिवृत्त सीजेआई के लिए राज्यसभा सदस्य बनना अथवा राज्यपाल बनना भी उन्हें उचित भी नहीं लगता.
लेकिन उन्हें कोई अन्य सरकारी पद स्वीकार करने से गुरेज नहीं है. उन्होंने बताया कि मानवाधिकार आयोग, लोकपाल अथवा विधि आयोग के प्रमुख के पद का प्रस्ताव वे मान्य कर सकते हैं. जस्टिस ललित ने कहा कि वैसे वे नेशनल ज्यूडिशियल अकादमी अथवा किसी लॉ स्कूल के गेस्ट प्रोफेसर के रूप में सेवारत रहना कहीं अधिक पसंद करेंगे.
उन्होंने कहा कि सीजेआई बनने पर मैं अपना एक महत्वपूर्ण मकसद पूरा कर सका, वह है अधिक से अधिक संविधान बेंचों का गठन करना. इसलिए मैंने 6 संविधान बेंचों का गठन किया और सभी जजों को अलग-अलग बेंचों में शामिल किया, मैंने सभी जजों को अपने अपने कार्य बांट कर कार्य करने को कहा, ताकि मुकदमें जल्द निपटाए जा सकें. जस्टिस ललित ने कहा कि मुझे संतोष है कि मैं इसमें सफल रहा. इस कार्य में मेरे सभी साथी जजों का पूरा सहयोग मिला. अपनी सेवानिवृति के दौरान उन्होंने संतोष व्यक्त किया कि मैं अपनी प्रतिज्ञा पूरी कर सका.