फैसले में विद्वान न्यायाधीशों ने एक ऐसा आदेश जारी किया है, जिससे लगता है कि ईपीएस 95 योजना में पूर्ण/वास्तविक वेतन पर पेंशन का प्रावधान 1 सितंबर 2014 से मानो समाप्त ही कर दिया गया है. कहा गया है कि जो कर्मचारी 1 सितंबर 2014 से पहले पैरा 11(3) के तहत विकल्प का प्रयोग किए बिना सेवानिवृत्त हुए हैं, वे फैसले का लाभ नहीं उठा सकते हैं. अर्थात उन्हें अब उच्च पेंशन के लाभ से पूरी तरह वंचित कर दिया गया है.
*कल्याण कुमार सिन्हा-
ईपीएस 95 पेंशनरों की पहले से फैसले का एकतरफा होने को लेकर जो शंका थी, सुप्रीम कोर्ट के 4 नवंबर 2022 के फैसले से शत-प्रतिशत सच साबित हुई है. यह फैसला देश के 60 लाख से अधिक वयोवृद्ध और लाचार पेंशनरों के लिए भयंकर फैसला प्रतीत होता है.
वैसे भी, यह ईपीएफओ और केंद्र सरकार के पक्ष में दिया गया फैसला ही है. सरकार और ईपीएफओ ने पेंशनरों को उच्च पेंशन से वंचित करने की मांग की थी, सुप्रीम कोर्ट के तीन सदस्यीय बेंच ने पूरे भक्तिभाव से उनकी मांग पूरी कर दी है.
इसके लिए विद्वान न्यायाधीशों ने अपने न्यायाधिकार का उपयोग करते हुए सुप्रीम कोर्ट के संबंधित फैसलों को बदलने से भी परहेज नहीं किया है. जानकारों के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले में इन पेंशनरों को भयंकर रूप से ‘ठेंगा’ बताया गया, कोई राहत नहीं दी गई है. यहां तक कि फैसले से यह आभास भी होता है कि न्यायाधीशों ने इस तथ्य पर भी ध्यान देना जरूरी नहीं समझा कि ईपीएस 95 ईपीएफओ की एक कल्याणकारी योजना है.
1 सितंबर 2014 से पहले सेवानिवृत्तों को तो एक ऐसे विकल्प का हवाला देकर वास्तविक वेतन पर उच्च पेंशन के लाभ से वंचित किया ही गया है, जिसके बारे में उन्हें कभी कोई जानकारी दी ही नहीं गई. 1 सितंबर 2014 के बाद सेवानिवृत्त हुए लोगों के लिए भी फैसले में कुछ भी नहीं कहा गया है.
राहत की झलक सेवारत कर्मचारियों को यह जरूर दिखाई गई है कि यदि उन्होंने ने पैरा 11(3) के तहत विकल्प का प्रयोग नहीं किया है तो अब वे चार या छह महीने की अंदर कर सकते हैं. लेकिन फैसला इस बात पर मौन है कि उन्हें भी उच्च पेंशन देने के लिए ईपीएफओ बाध्य होगा. हालांकि यह फैसला पेंशनर्स को आरसी गुप्ता मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा ही दिए गए न्याय को पलटने वाला जान पड़ता है. साथ ही यह भी प्रतीत होता है कि इसने शर्मनाक रूप से 1 अप्रैल 2019 के अपने ही फैसले को खुद ही कुतर डाला है.
फैसले में विद्वान न्यायाधीशों ने एक ऐसा आदेश जारी किया है, जिससे लगता है कि ईपीएस 95 योजना में पूर्ण/वास्तविक वेतन पर पेंशन का प्रावधान 1 सितंबर 2014 से मानो समाप्त ही कर दिया गया है. कहा गया है कि जो कर्मचारी 1 सितंबर 2014 से पहले पैरा 11(3) के तहत विकल्प का प्रयोग किए बिना सेवानिवृत्त हुए हैं, वे फैसले का लाभ नहीं उठा सकते हैं. अर्थात उन्हें अब उच्च पेंशन के लाभ से पूरी तरह वंचित कर दिया गया है.
सुप्रीम कोर्ट के इतिहास में इसे एक ऐसा दुर्भाग्यपूर्ण और भयंकर फैसला निरूपित किया जाना चाहिए, जिसमें सरकार द्वारा गठित ईपीएफओ को केवल 1 सितंबर 2014 से पूर्व और बाद के भी सेवानिवृत्त हो चुके कर्मियों और उनके मृत्योपरांत आश्रितों को उनके पेंशन अंशदान का लाभ सरकार के वृद्धावस्था पेंशन से भी कम देने की छूट का मार्ग प्रशस्त किया गया है.