*संवेदना,
निर्माता और निर्देशक विधु विनोद चोपड़ा एक नई फिल्म लेकर आ रहे हैं. फिल्म Shikara 1990 में 4 लाख कश्मीरी पंडितों के साथ हुए अन्याय की कहानी पर आधारित है. विधु विनोद स्वयं कश्मीर की मिट्टी में जन्मे और वहीं पले बढ़े. लेकिन 1990 में कश्मीरी पंडितों (Kashmiri Pandit) के साथ उनके माता-पिता को भी कश्मीर छोड़ना पड़ा था. अपनी मां के घर-बार और जमीन छूट जाने के दर्द को आखिरकार 30 वर्षों बाद विधु विनोद चोपड़ा पर्दे पर ले ही आए. “शिकारा (Shikara)”. का ट्रेलर (trailer release) रिलीज हो गया है. फिल्म भी अगले माह ही 7 फरवरी को रिलीज होने वाली है.
ट्रेलर की शुरुआत एक जोड़े शांति धर और शिव कुमार धर से होती है, जो अपने घर में सुकून से बैठे हैं. तभी शांति की नजर खिड़की से जलते हुए घरों पर पड़ती है. इसी के साथ कश्मीर से कश्मीरी पंडितों को खदेड़कर निकालने की ये दास्तां शुरू हो जाती है. ये ट्रेलर अपने ही देश में शरणार्थी बने लोगों की कहानी पूरी भावनाओं के साथ दर्शकों तक पहुंचाता लग रहा है. आप भी देखें यह ट्रेलर-
विधु विनोद चोपड़ा बता चुके हैं कि शिकारा के फिल्मांकन में उन चार सौ बेघर कश्मीरी पंडितों ने भी सहयोग किया है, जो जम्मू की शरणार्थी शिविरों में रह रहे हैं. फिल्म का अधिकतर हिस्सा कश्मीर में ही फिल्माया गया है. इसमें स्थानीय मुस्लिम नागरिकों ने भी फिल्म को अधिक विश्वसनीय बनाने में सहयोग किया है.
शिकारा के ट्रेलर की शुरुआत होती है एक शेर से – “कुछ न होने का दुख जरा सा लगे, तेरे होने से घर भरा सा लगे”. इससे लगा कि यह भी मात्र एक love story है, जिसमें घर-परिवार खुशियां दिख रही हैं. लेकिन अचानक खुशियों के आशियाने जलते हुए दिखाई दिए. फिल्म का ट्रेलर बोलता कम और दिखाता ज्यादा है, कि किस तरह करीब चार लाख कश्मीरी पंडित अपने ही देश में बेघर कर दिए गए थे. उनपर क्या-क्या बीती. फिल्म Shikara में कोशिश की गई है कि दर्शक 2020 से 30 साल पीछे चले जाएं. फिल्म में 1990 के असल फुटेज का इस्तेमाल किया गया है, जो इसे सच्चाई के और भी करीब ले आता है. अब तक खबरों के माध्यम से कश्मीरी पंडितों के विस्थापन के बारे में जो भी कुछ सुना उसे पहली बार पर्दे पर देखना अंदर तक चोट करता है.
विधु विनोद की जड़ें कश्मीर से जुड़ी हैं. इसीलिए उनके साथ और उनके परिवार पर जो गुजरी, उसे उनसे बेहतर और कौन महसूस कर सकता था. उनके लिए इस दर्दनाक वाकये को रुपहले पर्दे के माध्यम से देश के सामने लाना लाजिमी ही था. कश्मीरी पंडित, जो 30 साल बाद भी अपने हक के लिए लड़ रहे हैं, उनकी सच्चाई को पर्दे पर दिखाने की हिम्मत किसी भी बड़े निर्माता या निर्देशक ने इतने वर्षों में नहीं की थी. कश्मीर के आतंक को फिल्मों में जितना दिखाया गया, उसका लेस मात्र भी कभी कश्मीरी पंडितों के दर्द को नहीं दिखाया.
कश्मीर को लेकर विधु विनोद चोपड़ा ने 20 साल पहले ऋतिक रोशन को लेकर ‘मिशन कश्मीर’ (2000) बनाई थी, जो आतंकवाद और हिंसा पर आधारित थी. एक बार फिर कश्मीर उन्हें खींच लाया और वे अपने दिल में छिपे दर्द को पर्दे पर लाने की हिम्मत जुटा पाए. फलस्वरूप यह फिल्म शिकारा अब देश के सिनेमा घरों में संवेदनशील दर्शकों की आंखें तो नम करेगा ही.
Shikara में दो नए चेहरे नजर आ रहे हैं, लेकिन जब फिल्म की कहानी इतने बड़े और गंभीर विषय पर आधारित हो तो कोई फर्क नहीं पड़ता कि फिल्म के लीड रोल कौन कर रहा है. आदिल खान और कश्मीरी मूल की अदाकारा सादिया मुख्य किरदारों में हैं. फिल्म से ए.आर. रहमान को भी फिल्म से जोड़ा गया है.
विधु विनोद चोपड़ा निर्माता के तौर पर तो काफी सफल रहे हैं. मिशन कश्मीर से शिकारा बनाने तक विधु ने केवल दो फिल्में बनाईं- एकलव्य : The Royal Guard (2007) और Broken Horses (2015) और दोनों ही फ्लॉप रही थीं. लेकिन ‘खामोश’ और ‘परिंदा’ से हिंदी सिनेमा में अपनी पहचान बनाने वाले विधु, लगता है कि अब सिर्फ वही फिल्में करना चाहते हैं, जो उनके दिल के करीब हों. शिकारा भी उनमें से एक है. इस फिल्म को विधु ने अपनी मां को डेडिकेट किया है.
देश में आज जिस तरह का माहौल है, जहां धर्म को लेकर लड़ाई चर्म पर है. CAA को लेकर जित तरह बंद, धरने और हिंसा हो रही है, ऐसे समय में बेघर कश्मीरी पंडित जैसे एक बेहद संवेदनशील मुद्दे पर फिल्म का रिलाज होना कैसा सन्देश देगा, यह तो वक्त ही बताएगा.
बेघर कश्मीरी पंडितों की पीड़ा, अपने ही देश में उनके प्रवासी होने का दर्द बॉलीवुड ने दिखाने में भले ही काफी देर कर दी, पर चलिए 30 साल बाद ही सही, Shikara कश्मीरी पंडितों की पीड़ा से देश को भी कुछ तो शबक देगा.