जागरण पत्र समूह को देना होगा वेज बोर्ड के तहत वेतन, भत्ते

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* मजीठिया वेज बोर्ड के केस में लेबर कोर्ट ने पारित किया अवार्ड
* “दीवाली पर मिठाई के डिब्‍बे के लिए करवाए गए थे हस्‍ताक्षर”

नई‍ दिल्‍ली : जागरण समाचार पत्र समूह को पहला झटका मध्‍यप्रदेश में लगा है. होशंगाबाद की लेबर कोर्ट ने 20जे पर कर्मचारी के तर्क को स्‍वीकार करते हुए अवार्ड पारित कर दिया है. अदालत ने साथ ही अवार्ड में पारित राशि का भुगतान एक माह के भीतर करने का भी आदेश दिया है.

जागरण प्रकाशन लिमिटेड के कर्मचारी की जीत की खबर से देशभर में मजीठिया वेज बोर्ड की सिफारिशों को लागू करने की लड़ाई लड़ रहे पत्रकारों और गैरपत्रकार कर्मचारियों में उत्‍साह का संचार हुआ है. इससे पूर्व दैनिक भास्कर के कर्मचारयों ने भी ऐसी ही अदालती जीत हासिल की है.

देशभर में चल रहे मजीठिया वेज बोर्ड द्वारा दिए गए अवार्ड के लिए समाचार पत्र संस्थानों से कर्मचारी अदालती लड़ाई लड़ रहे हैं. वेज बोर्ड के तहत रिकवरी से संबंधित मामलों में अभी तक दैनिक भास्‍कर के पत्रकारों की जीतने की खबरें आ रही थी. पहली बार जागरण प्रकाशन लिमिटेड के एक कर्मचारी की जीत की खबर मध्‍यप्रदेश के होशंगाबाद से आई है.

यहां मजीठिया वेतन बोर्ड की सिफारिशों के लिए हक की लड़ाई लड़ रहे संजय मालवीय ने लेबर कोर्ट में चल रहा रिकवरी का केस जीत लिया है. लेबर कोर्ट ने संजय के मामले में उन्‍हें मजीठिया वेजबोर्ड के हिसाब से दायर किए गए दावे को सही पाते हुए लाखों रुपए पाने का अधिकारी माना है.

नई दुनिया (जागरण प्रकाशन लिमिटेड की एक इकाई) के कर्मचारी संजय ने 11 नवंबर 2011 से सितंबर 2013 (22 महीने 20 दिन) तक के कार्यकाल के लिए दावा पेश किया था. यहां ध्‍यान देने वाली बात है कि मार्केटिंग एक्‍जीक्‍यूटिव के पद पर कार्यरत संजय के शहर होशंगाबाद की श्रेणी जेड है, जिसका मकान भत्‍ता 10 फीसदी और परिवहन भत्ता मात्र 5 फीसदी ही बनता है.

अदालत ने इस फैसले में 20जे पर कर्मचारी के उस तर्क को स्‍वीकार कर लिया, जिसमें उसने कहा था कि उसके द्वारा इस तरह का कोई भी डिक्‍लेरेशन फार्म मजीठिया वेतनमान के संदर्भ में प्रबंधन को भरकर नहीं दिया है और कंपनी दीवाली के त्यौहार के मौके पर मिठाई के डिब्‍बे बांटने के दौरान एक सूची तैयार करती थी और मिठाई का डिब्‍बा देते हुए उस सूची पर हस्‍ताक्षर करवाती थी.

अदालत ने कहा कि 20जे को घोषणा पत्र देखने से दर्शित होता है कि हस्‍ताक्षर करने वाले को संपूर्ण घोषणा पत्र पढ़ने का अवसर ही प्राप्‍त नहीं हुआ है. क्‍योंकि हस्‍ताक्षर की सूची को घोषणा पत्र से अलग किया जा सकता है. इसलिए कर्मचारी का तर्क स्‍वीकार करने योग्‍य है.

रिफरेंस और सुनवाई के क्षेत्राधिकार की आपत्ति भी की खारिज…
अदालत ने अपने इस फैसले में प्रबंधन द्वारा रिफरेंस की वैधानिकता और न्‍यायालय की क्षेत्राधिकारिता के संबंध में प्रबंधन की सभी आपत्तियों को मध्‍यप्रदेश हाईकोर्ट की विशेष खंडपीठ द्वारा याचिका क्रमांक 1734/2018 नई दुनिया (अ यूनिट ऑफ जागरण पब्लिकेशन लिमिटेड) के विरुद्ध मध्‍यप्रदेश शासन एवं अन्‍य के साथ अन्‍य 43 याचिकाओं के मामले में 9 मई 2019 को दिए गए आदेश के आलोक में खारिज कर दिया.

आवेदन समय-सीमा के भीतर दायर न करने की आपत्ति भी की खारिज…
अदालत ने प्रबंधन की इस आपत्ति को भी खारिज कर दिया कि रिकवरी का आवेदन समयसीमा के भीतर दायर नहीं किया गया. अदालत ने कहा कि यह रिफरेंस आदेश अधिनियम 1955 धारा 17 (2) एवं औद्योगिक विवाद अधिनियम की धारा 10(1)(सी) और 12(5) के अंतर्गत प्रस्‍तुत किया है. जिसके संबंध में कोई भी परिसीमा काल अधिनियम में निर्धारित नहीं है. प्रबंधन अपने तर्क के दौरान ऐसे कोई भी प्रावधान बता पाने में असफल रहा है, जिससे यह दर्शित हो कि यह प्रकरण परिसीमा अवधि में प्रस्‍तुत नहीं किया है.

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