हिन्दू विरोधी और मुस्लिम समर्थक के लेबुल में फंसी फिल्म ‘मुल्क’ रिलीज होगी 3 अगस्त को

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बातचीत : फिल्म के निदेशक अनुभव सिन्हा से

ऋषि कपूर और तापसी पन्नू अभिनीत फिल्म ‘मुल्क’ भी अदालती पचड़े में आ गया था. लेकिन सुर्खियों में आई यह फिल्म चर्चा में इसलिए है कि सोशल मीडिया पर इसे मुस्लिम सार्थक और हिन्दू विरोधी बताने की होड़ सी लग गई है. यह फिल्म 3 अगस्त को रिलीज होने वाली है. लेकिन फिल्म के रिलीज को लेकर कोर्ट ने आपत्ति खारिज कर दी है. फिल्म के निदेशक हैं- अनुभव सिन्हा. इससे पूर्व उन्होंने तुम बिन, रा.वन, गुलाब गैंग, तुम बिन-।। जैसी फिल्मों का निदेशन किया है. बनारस में जन्में और अलीगढ़ से उच्च शिक्षा प्राप्त ‘मुल्क’ के निर्देशक अनुभव सिन्हा से उनकी इस फिल्म को लेकर ढेर सारी बातें हुईं. पेश है- उनके साथ बातचीत के कुछ अंश-

फिल्म ‘मुल्क’ के निदेशक अनुभव सिन्हा.

‘मुल्क’ के टीजर/ट्रेलर लॉन्च होने के बाद सोशल मीडिया में यह चल पड़ा है कि आपने मुस्लिमों का पक्ष लेकर हिंदू विरोधी फिल्म बनाया है, क्या यह सही है?
– ट्रोल करने वालों को मैं गंभीरता नहीं लेता. वे पैसे लेकर काम करने वाले मुट्ठी भर लोग हैं. राय देने वालों में इनकी संख्या बस 10-15 फीसदी है. वे आम लोगों की आवाज नहीं हैं.

‘मुल्क’ मुस्लिमों की आवाज की तरह है और ट्रेलर लॉन्च पर आप रामनामी वस्त्र गले में डाले मंच पर थे, ऐसा क्यों?
– मैं जानता था, मुझे हिंदू-विरोधी कहा जाएगा. आज कुछ लोगों के लिए अगर आप मुस्लिम-विरोधी नहीं हैं, तो हिंदू-विरोधी हैं. उनका हिंदुत्व क्या है, मुझे पता नहीं. रामनामी का मैसेज यही था कि मैं हिंदू हूं. मुझे हिंदू-विरोधी मत कहना.

फिल्म ‘मुल्क’ का एक दृश्य.

‘मुल्क’ की कहानी आपके जेहन में कब आई और पकी कैसे?
– फिल्म की कहानी संभवतः बनारस और अलीगढ़ के बैकग्राउंड में है. 1978-79, में इन शहरों ऐसी कुछ परिस्थितियां बनीं थीं. मेरी शिक्षा बनारस से शुरू हुई. फिर मैं अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में गया. उस दौर में अलग-अलग शहरों में सालाना दंगे होते थे. बनारस में मैं हिंदू बहुसंख्यकों का हिस्सा था, तो अलीगढ़ मैं अल्पसंख्यक. वहां मुस्लिम बहुसंख्यक थे. मैं देखता था कि दंगों का बहुसंख्यकों से कोई रिश्ता नहीं है. दंगे अलग स्तर पर होते हैं, ये मुझे दिखता था. फिर हाल के वर्षों में कुछ घटनाएं हुईं, जिन्हें पढ़ते हुए एक कहानी दिमाग में पकने लगी थी.

‘मुल्क’ की कहानी क्या लखनऊ में मार्च 2017 में हुए सैफुल्ला एनकाउंटर पर आधारित है?
– मुल्क किसी एक घटना पर आधारित नहीं है, इसमें कई घटनाएं शामिल हैं. इनके अंश फिल्म में दिखेंगे.

दोनों समुदाय के बीच जो दूरियां दिखती हैं या वाकई हैं, वे कैसे मिटेंगी?
– सिर्फ बातों से हल निकल सकता है. बातें न हों, तो कई बार हमें अपनी गलतियों का एहसास नहीं होता. बातों से गांठें खुलती हैं.

देश या समाज के हालात सुधारने में सिनेमा क्या कोई भूमिका निभा सकता है?
– बिल्कुल नहीं. सिनेमा सिर्फ सवाल खड़े कर सकता है, जवाब नहीं दे सकता.

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