लोकसभा चुनाव 2019 : तो क्या भाजपा का पराजय अटल है…?

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विश्लेषण : हमारी लोकसभा का गठन देश के 36 राज्यों की की कुल 544 क्षेत्रों से इन क्षेत्रों के वयस्क मतदाताओं द्वारा प्रत्यक्ष मतदान से 544 चुने गए सदस्यों से होता है. आगामी लोकसभा के लिए इन राज्यों में सात चरणों में यह चुनाव होने हैं.

इस चुनाव में केंद्र में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) का मुकाबला प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस सहित अलग-अलग राज्यों में विभिन्न क्षेत्रीय दलों के गठबंधन से है.
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राज्यों में सत्तारूढ़ भाजपा और उसके सहयोगी दलों के उम्मीदवारों के संख्यात्मक आंकड़े चौंकाने वाले हैं. आश्चर्य का विषय है कि इस पर निर्भर भाजपा किस आधार पर आगामी लोकसभा चुनाव में भारी बहुमत से जीत का दावा कर रही है. इन आंकड़ों से तो साफ है कि भाजपा की या तो भारी पराजय होने वाली है, अथवा यदि सत्ता में आने पर सफल रही भी तो वह सहयोगी दलों के हाथों की कठपुतली बन कर रह जाएगी.

देश के कुल 36 राज्यों में से 13 राज्य ऐसे हैं, जो केंद्र में किसी राजनीतिक दल अथवा इनके गठबंधन, सरकार गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. इन 13 राज्यों से लोकसभा के 440 अर्थात 81% सदस्य चुने जाते हैं. केंद्र में सरकार बनाने के लिए लोकसभा में बहुमत के लिए 50% का जादुई आंकड़ा 272 है, जो इन्हीं 13 राज्यों से चुने गए सदस्यों के समर्थन पर निर्भर होता है.

अब यह भी जान लें कि ये राज्य कौन-कौन से हैं और इनमें लोकसभा की कुल कितनी सीटें हैं. ये राज्य हैं- 1. उत्तर प्रदेश-80 सीटें, 2. महाराष्ट्र-48 सीटें, 3. बंगाल-42, 4. बिहार-40, 5. तमिलनाडु-39, 6. मध्य प्रदेश-29, 7. कर्नाटक-28, 8. गुजरात-26, 9. राजस्थान-25, 10. आंध्र प्रदेश-25, 11. ओड़िशा-21, 12. केरल-20 सीटें और 13. तेलंगना-17 सीटें.

अब इन 13 राज्यों में भाजपा की स्थिति पर नजर डालें-
इन 13 राज्यों में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के तहत भाजपा 2014 में केरल और तमिलनाडु में भाजपा 1-1 सीटों पर जीती थी. पश्चिम बंगाल और आंध्र प्रदेश में 2-2, इसी तरह तेलंगना और ओड़िसा में भी 2-2 सीटों से ही संतोष करना पड़ा था. अब बाकी के सात राज्यों में भाजपा बिहार में 22 और कर्नाटक में 15 सीटों पर जीत दर्ज की थी. इस बार इन राज्यों में भाजपा 50% सीटें अपने सहयोगी दलों के लिए छोड़ चुकी है. इसी तरह महाराष्ट्र की 48 सीटों में से आधी सीटें शिवसेना सहित सहयोगी दलों की भेंट चढ़ी हुई हैं. इस तरह उत्तर प्रदेश की 80 में से 68 सीटें, मध्य प्रदेश की 26, गुजरात की 26 और राजस्थान की 25 सीटों को मिला कर भाजपा 13 में से 11 राज्यों में मात्र 233 सीटों पर ही कब्जा कर सकी थी. बाकी की सीटें सहयोगी दलों को मिली थीं.

उत्तर प्रदेश में फिलहाल अखिलेश-मायावती (सपा-बसपा) के मजबूत गठबंधन से भाजपा का कठिन मुकाबला है. पिछले विधानसभा चुनावों में भाजपा मध्यप्रदेश, राजस्थान और छतीसगढ़ राज्यों में अपनी सत्ता गवां चुकी है. कर्नाटक और बिहार में भी भाजपा की राह आसान नहीं रही है. साथ ही सीटों के बंटवारे में भी सहयोगी सत्तारूढ़ नितीश कुमार की जदयू ने अपनी पकड़ अधिक मजबूत राखी है. बिहार में लालू प्रसाद के राजद के नेतृत्व वाले गठबंधन से मुकाबला है. महाराष्ट्र में भाजपा 25 और शिवसेना 23 सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं. हालांकि प्रमुख प्रतिद्वंदी कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन बहुत मजबूत तो नहीं है, लेकिन एक तिहाई सीटों पर कब्जा जरूर कर सकती है. इसी तरह पीएम नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के गुजरात में पिछले विधानसभा चुनाव के परिणामों को देखते हुए वहां भी कांग्रेस यदि 10 से कुछ कम सीटें झटक ले तो आश्चर्य नहीं होगा.

उल्लेखनीय है कि उपरोक्त 13 राज्यों में 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा दिल्ली सहित कम से कम 10 राज्यों में 90 से 100% सीटें जीतने में सफल रही थी. लेकिन 2019 में वह स्थिति नहीं है.

अब बाकी के 23 राज्यों की 104 सीटों पर एक नजर-
इन 23 राज्यों में लोकसभा की मात्र 104 सीटें हैं, यानी कुल 19%. इनमें से 1-2 सीटों वाले 8 राज्यों में भाजपा का खाता नहीं खुल पाया था. अन्य 15 राज्यों में से भाजपा को दिल्ली, चंडीगढ़,अरुणाचल, असम, जम्मू-कश्मीर, पंजाब, उत्तराखंड, छत्तीसगढ़, झारखंड, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश आदि राज्यों में पिछले 2014 के चुनावों में भारी सफलता मिली थी. लेकिन इस बार इन राज्यों में इतिहास अपने आप को दोहराने के मूड में नहीं है. इन राज्यों में भाजपा को क्षेत्रीय दलों से कड़ा मुकाबला है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को चुनावी रैलियों में कांग्रेस और अन्य दलों के आरोपों से दो-चार होना पड़ रहा है. पिछले चुनावों की जुमलेबाजी पर विपक्ष न केवल हावी है, बल्कि जुमलों का ही सहारा लेकर मतदाताओं को अपनी ओर खींचने में भी लगा हुआ है. ऐसे में यह चुनाव भाजपा की अपेक्षाओं के अनुरूप उसे सफलता दिला पाएगा, इसमें संदेह कहीं ज्यादा नजर आ रहा है.

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