गिलोय

गिलोय को बताया जा रहा लिवर के लिए नुकसानदेह

विशेष
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जानकारों ने कहा- ‘ऐसा होता तो अस्पताल लिवर के मरीजों से ही भर जाते’

*समाचार विश्लेषण :
देश में पिछले वर्ष कोरोना महामारी- कोविड-19 का संक्रमण फैलने के बाद इसे रोकने में जब एलोपैथी फेल हो गया था, तब आयुर्वेदिक औषधि के रूप में ‘अमृत’ माने जाने वाले गिलोय ने सभी का ध्यान खींचा था. तब से कोरोना के संक्रमण और इससे बचाव के लिए गिलोय के काढ़े का सेवन घर-घर में होने लगा है. गिलोय के सेवन की अपील गत वर्ष न केवल आयुष मंत्रालय, बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक ने भी की थी.
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लेकिन अब अचानक इस औषधीय गुणों के विपरीत इसे शरीर के लिवर के लिए नुकसानदायक बताया जाने लगा है. हाल ही में कुछ अखबारों में मुंबई के दो एलोपैथिक लिवर रोग के डॉक्टरों के हवाले से गिलोय के नुकसानदेह होने की खबर आई है. उनका मत है कि गिलोय के सेवन से लोगों के लिवर खराब हो रहे हैं.
 
गिलोय का इस्तेमाल : 
जब कि अब, धड़ल्ले से कोविड-19 से बचाव के लिए रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए गिलोय का इस्तेमाल होने लगा है. कुछ वर्ष पहले देश की राजधानी दिल्ली और देश अन्य राज्यों में भी मच्छरों के काटने से होने वाला जानलेवा रोग ‘डेंगू’ के इलाज में भी इसे और पपीते के पत्ते के रस को भी कारगर पाया गया था. यह तब रक्त में प्लेटलेट्स को बढ़ाने में मददगार साबित हुआ था. 

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अपोलो अस्पताल, नवी मुंबई की डॉ. आभा नगराल.

छह मरीजों के केस का अध्ययन : लिवर खराब किया..?
अब इधर, इंडियन नेशनल असोसिएशन फॉर स्टडी ऑफ दी लिवर के एक अंतरराष्ट्रीय जर्नल ‘क्लिनिकल एंड एक्सपर्ट मेन्टल हेपटोलॉजिस्ट’ में अपोलो अस्पताल, नवी मुंबई की हेपटोलॉजिस्ट डॉ. आभा नगराल ने 2020 के सितंबर से दिसंबर माह के बीच की छह मरीजों के केस के अध्ययन को आधार बता कर गिलोय को लिवर के लिए नुकसानदेह ठहराया है. उन्होंने बताया कि एक 62 वर्षीय वृद्धा को पेट में पानी भर जाने की शिकायत पर अस्पताल में भर्ती कराया गया. पेट में तरल पदार्थ भरना, लिवर के खराब होने का लक्षण होता है. डॉ. नागराज के अनुसार हमें बायोप्सी से पता चला कि उनका लिवर गिलोय अर्थात टीनोस्पोरा कार्डीफोलिया के सेवन से खराब हुआ है.
गिलोय
जसलोक अस्पताल, मुंबई के डॉ. ए.एस. सायन.

इस कथित अध्ययन से जुड़े दूसरे जसलोक अस्पताल, मुंबई के लिवर ट्रांसप्लांट सर्जन डॉ. ए.एस. सायन ने भी गिलोय सेवन से संबंधित 5 लोगों के लिवर खराब होने की तस्दीक की है. उन्होंने बताया है कि उनके एक ऐसे पेशेंट की मौत भी हो गई.

…तो अस्पतालों में कोरोना से अधिक लिवर की बीमारी के मरीज पहुंच चुके होते
मुंबई के इन दो डॉक्टरों का अध्ययन कितना सही और प्रामाणिक है, इसकी पुष्टि मात्र इनकी रिपोर्ट किसी अंतरराष्ट्रीय जर्नल में प्रकाशित हो जाने भर से नहीं मानी जा सकती. पिछले 2020 से अभी तक करोड़ों की संख्या में लोग गिलोय के काढ़े का सेवन अपनी इम्युनिटी बनाए रखने के लिए कर रहे हैं. यदि गिलोय इतना खतरनाक होता तो अब तक अस्पतालों में कोरोना से अधिक लिवर की बीमारी के मरीज पहुंच चुके होते.

दुष्प्रचार नहीं तो यह अधकचरा अध्ययन :
जानकारों के मुताबिक, यह दुष्प्रचार नहीं तो यह अधकचरा अध्ययन ही माना जा सकता है. हो सकता है, इन डॉक्टरों के मरीज, जिनके रोग के अध्ययन का इन्होंने हवाला दिया है, पहले से ही लिवर की गड़बड़ी के शिकार रहे हों. आज गलत खान-पान की आदत के कारण लोगों में लिवर और किडनी के रोग बढ़ने लगे हैं. शराब और नशे के अत्यधिक सेवन से भी लिवर और किडनी खराब हो रहे हैं. ऐसे में बिना विस्तृत जांच या अध्ययन किए गिलोय जैसे अमृत तुल्य औषधीय वनस्पति को नुकसानदायक बताया जाना बहुत ही गैरजिम्मेदाराना माना जाएगा.

कई गंभीर बीमारियों को दूर भगाने में कारगर :
गिलोय एक औषधीय पौधा है. जो मानव शरीर में सूजन कम करने, शुगर को नियंत्रित करने, गठिया रोग से लड़ने, पीलिया दूर करने, त्वचा और सांस संबंधी रोगों सहित कई गंभीर बीमारियों को दूर भगाने में कारगर साबित होता आया है. इसका नाम है गिलोय यानी गुडूची, वैज्ञानिक शब्दों में इसे टीनोस्पोरा कोर्डीफोलिया भी कहते हैं. यह पौधा एक या दो नहीं बल्कि अनेकों बीमारियों के इलाज में कारगर होता है. इसकी खूबियों को देखते हुए चिकित्सकों ने इसे ‘अमृत’ का दर्जा दिया है.

गिलोय का इन दिनों कोरोना की वजह से लोग इसका इस्तेमाल अभी भी खूब कर रहे हैं. गिलोय का अर्क अनेक आयुर्वेदिक दवा निर्माता कंपनियां खूब बेच रही हैं. गिलोय को टैबलेट्स, अर्क, जूस पाउडर आदि के रूप में यह कंपनियां उपलब्ध करा रही हैं. इम्यून सिस्टम को स्ट्रांग करने और लिवर से जुड़ी बीमारियों में काफी असरदार गिलोय के बारे में हर घर में बातें होने लगीं हैं.  इस मेडिसिनल प्लांट को अपने किचन गार्डन और बालकनी के गमले में इसे लगाने और रोजगार की इच्छा रखने वालों को इसकी खेती भी करने की सलाह मीडिया में दी जाने लगी है.

गिलोय का पौधा आसानी से उगता है, कभी नहीं मरता 
गिलोय का वानस्पतिक नाम टीनोस्पोरा कार्डीफोलिया है, जिसे आयुर्वेद में गिलोय के नाम से जाना जाता है. संस्कृत में इसे अमृता कहा जाता है, क्योंकि यह कभी नहीं मरता है. गिलोय भारतीय मूल की बहुवर्षीय बेल है. इसके बीज काली मिर्च की तरह होते हैं. इसे मई और जून में बीज या कटिंग के रूप में बोया जा सकता है. मॉनसून के वक्त यह तेजी से बढ़ता है. इसे बहुत धूप की जरूरत भी नहीं होती. कई प्रदेशों में इसकी खेती होती है, लेकिन अब अनेक लोग व्यक्तिगत इस्तेमाल के लिए ही इसकी बेल लगा रहे हैं.

गमलों, किचन गार्डन, टेरेस गार्डन और बगीचे में आसानी से लगाया जा सकता है
लोग आज कल गिलोय के पाउडर, जूस और काढ़े के रूप में इसका सेवन कर रहे हैं. इसके पत्ते और तना दोनों का इस्तेमाल किया जाता है. इसे घर के गमलों, किचन गार्डन, टेरेस गार्डन और बगीचे में आसानी से लगाया जा सकता है. इन सभी जगहों पर गिलोय की बेल आसानी से फैल सकती है. इसका तना ऊंचा चढ़ता है और यह हवा से नमी लेता है. इसे लगाने के लिए बीज या इसके तने का इस्तेमाल होता है. बताया जाता है कि फसल के तौर इसे तैयार होने में करीब दस महीने लगते हैं. एक हेक्टेयर में इसकी खेती कर 60 से 70 हजार का मुनाफा हो सकता है.

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