खेल हो या राजनीति या उद्योग क्षेत्र, हर कहीं हीरो वही है, जो गलत मार्ग से आगे बढ़ता है
भारत का टी20 विश्व चैंपियन बनना भारत के लिए, क्रिकेट के लिए एक शानदार क्षण था. हमारे लिए, जो बात इस जीत को खास बनाती है, वह यह है कि उदंडों के युग में, अच्छे लोगों ने जीत हासिल की है.
विश्लेषण : राजनीति, कॉरपोरेट या उद्योग जगत की तरह खेल में भी अब केवल उग्र, उदंड, आक्रामक, असहिष्णु लोगों को ही अधिक समर्थन और सम्मान देने की प्रवृत्ति रही है. ऐसे में यदि इन क्षेत्रों में कोई अपनी सज्जनता और सौम्य व्यवहार से सफलता हासिल कर लिया तो उसकी सफलता की प्रशंसा भले ही हो, उसके अच्छे गुणों की चर्चा या सराहना बहुत कम होती है.
भारत का टी20 विश्व चैंपियन बनना भारत के लिए, क्रिकेट के लिए एक शानदार क्षण था. हमारे लिए, जो बात इस जीत को खास बनाती है, वह यह है कि उदंडों के युग में, अच्छे लोगों ने जीत हासिल की है.
रोहित शर्मा और राहुल द्रविड़ – दोनों ही पूरी तरह से सज्जन व्यक्ति रहे हैं. रोहित ने अपने ऊपर आए सभी विवादों के सामने कभी अपनी गरिमा नहीं खोई. उन्होंने उस तरह से नेतृत्व किया, जो उनके लिए स्वाभाविक है. एक नेता, एक टीम खिलाड़ी, ड्रेसिंग रूम में वे एक दोस्त की तरह रहे हैं. राहुल द्रविड़ भी एक क्रिकेटर के रूप में अपने ऐसे ही उच्च गुणों के लिए जाने जाते रहे और एक कुशल कोच के रूप में भी उन्होंने बिना किसी आत्मप्रचार के टीम इंडिया को संवारते रहे. द्रविड़ सज्जनता, शालीनता और सौम्य व्यवहार का प्रतीक हैं. वह बिना उग्र हुए के जीतने और बिना उग्रता के जीत दिलाने के ‘द्रोणाचार्य’ हैं.
आज, हर क्षेत्र में, हम अति उग्र अति प्रतिस्पर्धी, अति आक्रामक, असहिष्णु और उदंड बनने की आकांक्षा रखते हैं. इसे न केवल स्वीकार किया जाता है, बल्कि सक्रिय रूप से प्रोत्साहित किया जाता है. खेलों में, फुटबॉल की बेबाक संस्कृति – मैदान पर टकराव के खेल का उच्च स्तर, तर्कशील खिलाड़ी, गुस्सैल टीम मैनेजर और स्टैंड से उच्च-ऑक्टेन प्रशंसक – सज्जन कबड्डी संस्कृति की तुलना में कहीं अधिक आकर्षक है, जहां खिलाड़ी अक्सर यह स्वीकार करते हैं कि उन्हें ‘छोड़ दिया गया’ भले ही रेफरी ने ध्यान न दिया हो. चाहे खेल हो, राजनीति हो या उद्योग, आज दुनिया हमें बता रही है कि अगर आप असंवेदनशील, और गलत लेन-देन करने वाले, अहंकारी और उदंड हैं तो जीतना आसान है.
कॉरपोरेट या उद्योग क्षेत्र में, आज के स्टार्टअप संस्थापकों के सार्वजनिक व्यक्तित्व की तुलना भारत के पहले के कॉर्पोरेट संस्थापकों से करें. इस क्षेत्र में टाटा, बजाज और बिड़ला जैसी संपन्न कंपनियों की स्थापना करने वालों गौरवशाली विरासत रही है. ये सभी के सभी बहुत ही सुसंस्कृत सार्वजनिक व्यक्तित्व के धनि रहे हैं. लेकिन तुरंत आसमान छु लेने के आकांक्षी व्यवसायी लोग इन्हें अपना आदर्श मानने के बजाय स्टीव जॉब्स या एलेन मस्क के व्यवहार के दीवाने हैं. उन्हें ही अपना आदर्श मानते हैं.
भारतीय राजनीति में भी अनेक ऐसे उदाहरण हैं. अपनी ही पार्टी में स्वीकार्य नहीं होने के बावजूद सत्ता के शीर्ष पर पहुंच बना लेने वाले, सत्ता बचाए रखने के लिए अवैधानिक तरीके अपनाने और देश के संविधान का उल्लंघन, अपने फायदे के लिए संवैधानिक प्रावधानों का दुरुपयोग, न्याय तंत्र का दुरुपयोग के साथ देश से किए वादे की अवहेलना और देश के समस्त तंत्र में भ्रष्टाचार का बीजारोपण कर सत्ता सुख का उपभोग करने वाले ही अधिक सफल जाने जाते हैं. चाहे उनकी उपलब्धियों की लिस्ट से उनके काले कारनामों की लिस्ट कहीं अधिक लम्बी क्यों न रही हो. आज देश का राजनीतिक परिदृश्य कुछ-कुछ जरूर बदला है, लेकिन पहले की तरह दुष्प्रचार और झूठ का सहारा लेने वालों को हीरो बनाया जा रहा है.
उसी तरह का राजनीतिक परिदृश्य हाल ही में संयुक्त राज्य अमेरिका में भी देखने को मिला है. वहां भी दुनिया ने दो प्रेसिडेंसियल उम्मीदवारों के बीच बहस को देखा है. युवा रिपब्लिकन के साथ आम लोग भी डोनाल्ड ट्रम्प के उग्र शब्दाडंबरों, ढपोरशंखी बयानबाजी और आक्रामकता से अत्यधिक प्रभावित नजर आए. वहीं अपने गर्मजोशी से भरे देश हित के विचार प्रस्तुत करने और अच्छे व्यवहार वाले डेमोक्रेटिक जॉर्ज डब्ल्यू बुश के लिए लोगों में उत्साह काम दिखा. बुश की तुलना में अमेरिकी, रिपब्लिकन डोनाल्ड ट्रम्प की बयानबाजी से अधिक मोहित हुए हैं.
हाल ही में देश के 18वीं लोकसभा के चुनाव संपन्न हुए. अपेक्षित परिणाम नहीं मिलने के बावजूद बहुमत से तीसरी बार एनडीए की सरकार सत्ता में आई. विपक्ष पहले से कुछ अधिक सीटें जीतने सफल रहा. चुनाव परिणाम भारतीय मतदाताओं ने सरलता से स्वीकार भी कर लिया, जबकि विपक्ष की अपेक्षा थी कि मतदाता उग्र प्रतिक्रिया देंगे. अब कुछ तटस्थ राजनीतिक समीक्षकों की इस अनोखे विचार अचम्भित करते हैं. वे दोनों पक्षों के बीच अब अपनी विश्वसनीयता कायम रखने के लिए चुनाव परिणाम को ‘विन विन’ सिचुएशन बता रहे हैं. उन्हें अब ‘हर कोई विजेता’ दिखाई देता है. इसमें उनके लिए देश का मतदाता गौण हो गया है.
मतदाता के लिए, यह इतना महत्वपूर्ण नहीं है कि हर कोई जीत गया, इसलिए हर कोई परिणामों से खुश है. यह निष्कर्ष एक बहुत ही अधिक संकीर्ण, आत्म-केंद्रित दृष्टिकोण है कि ‘दूसरा पक्ष हार गया है, और इसलिए मैं खुश हूं.’ मुझे डर है कि एक समाज के रूप में, हम उग्र, तीखे और आक्रामक बन, निरीह खरगोश के बिल की ओर बढ़ रहे हैं. तत्काल आत्मनिरीक्षण के बिना, ऐसे में हम खुद को उस अव्यवस्थित रूप से ध्रुवीकृत गड़बड़ी में पाएंगे, जिसमें आज अमेरिका है. इसलिए इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप राजनीतिक स्पेक्ट्रम के किस पक्ष से खुद को जोड़ते हैं, हमें मिलकर ‘सहानुभूति’ को फिर से परिणाम को लाभप्रद बनाने का प्रयास करना चाहिए.
सामान्य जन के रूप में, हमें – उदाहरण के लिए – सुरक्षित घर की हताश खोज में लगे प्रवासी की पीड़ा को समझना चाहिए तथा उन लोगों के भय को भी समझना चाहिए, जिन्हें अपने पड़ोस को विदेशियों के लिए देने के लिए मजबूर होना पड़ता है. यह बात उदारवादियों के साथ-साथ रूढ़िवादियों पर भी समान रूप से लागू होती है.
दुनिया के सारे विख्यात शैक्षणिक संस्थान जीतने में ‘दृढ़ विश्वास’ विकसित करने पर जोर देते हैं. जीतने को ही हमेशा एक अद्भुत कौशल बताया जाता है. इसलिए हमें, खेल हो, बहस हो या स्पर्द्धा, सभी में जीतना सिखाया जाता है. लेकिन हमें किसी और की सच्चाई के प्रति सहानुभूति रखना नहीं सिखाया जाता. अलग-अलग विचारों के साथ जीना, जीने देना और पनपने देना जैसे भारतीय दर्शन का इन जैसे लोगों के लिए कोई स्थान नहीं है.
‘सत्य’ के लिए लड़ना हमेशा सराहनीय होता है, लेकिन हठधर्मिता पर अड़े रहना, चाहे उदारवादी हो या रूढ़िवादी, और ‘अन्यीकरण’ करना किसी भी पक्ष की मुलाकात को और भी असंभव बना देता है. इससे ध्रुवीकरण बढ़ता है. जरा सोचिए, किसी भी स्तर के किसी भी परिवेश में, अपने निजी जीवन में, आपने कितनी बार देखा है कि किसी बहस में जीतने की अनिवार्यता, आम सहमति बनाने के बड़े उद्देश्य पर भारी पड़ गई है.
पिछले सप्ताह अमेरिका में राष्ट्रपति पद के लिए हुई बहस को देखने के बाद, हमें दुनिया में कहीं न कहीं एक अच्छे व्यक्ति की जीत की सख्त जरूरत महसूस होनी चाहिए. ताकि हम यह विश्वास कर सकें कि शालीनता भी परिणाम ला सकती है. यही कारण है कि पिछले सप्ताहांत की क्रिकेट जीत इतनी खास है. इस विश्व कप मुकाबले में सज्जनों की जीत हुई है. इसलिए मेरी नजर में यह जीत बहुत खास है.
-विदर्भ आपला.