कोर्ट ने इसे बेमानी और कर्मचारियों के लिए अन्यायपूर्ण करार दिया, ट्रस्टियों को भी दी नसीहत
केरल हाईकोर्ट ने पेंशन पाने के लिए पेंशनेबल मासिक वेतन 15 हजार रुपए तक की सीमा तय किए जाने के इम्प्लॉईज पेंशन (अमेंडमेंट) स्कीम, 2014 (कर्मचारी पेंशन (संशोधित) योजना, 2014) को बेमानी, अवास्तविक और अधिकतम कर्मचारियों को अच्छी पेंशन राशि से वंचित करने वाला करार देते हुए उसे खारिज कर दिया है. साथ ही उसने इसके लिए उसने ईपीएफओ बोर्ड के ट्रस्टियों नीयत पर भी प्रश्नचिह्न लगा दिया है.
न्यायमूर्ति के. सुरेंद्र मोहन और न्यायमूर्ति ए.एम. बाबू की खंडपीठ ने इस इस योजना में संशोधन के विरुद्ध अनेक कर्मचारियों द्वारा दायर याचिका को मंजूर किया, जिसमें विभिन्न संशोधनों के माध्यम से अधिकतम पेंशन की सीमा तय की गई है.
इसमें ईपीएफओ सदस्यों को अपने नियोक्ताओं (इम्प्लायर) के साथ संयुक्त रूप से 01.09.2014 तक 15 हजार रुपए मासिक से अधिक पर अंशदान का ताजा विकल्प प्रस्तुत करने को कहा गया था. इसमें की गई चालाकी की ओर याचिकाकर्ताओं ने हाईकोर्ट का ध्यान दिलाया था.
संशोधन कर की गई पेंशनरों के साथ की गई धोखाधड़ी
तदनुसार ही 1 सितंबर 2014 से उनका अधिकतम मासिक पेंशनेबल वेतन संशोधित योजना के अनुसार 6,500 रुपए से बढ़ा कर 15 हजार रुपए निर्धारित किया जा सकता. कोर्ट ने इस संशोधित योजना के अंतर्गत की गई चालाकी को भांपते हुए और इसे कर्मचारियों के प्रति अन्यायपूर्ण करार देते हुए इसे खारिज करने का आदेश दिया है.
ईपीएफओ के ट्रस्टियों को दी नसीहत
केरल हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि ईपीएफओ फंड के ट्रस्टियों का यह कर्तव्य है कि वो फंड का संचालन बुद्धिमता पूर्वक और कुशल प्रबंध द्वारा कर्मचारियों को बेहतर लाभ दिलाने के लिए करें. उन्हें कोई अधिकार नहीं है कि कर्मचारियों को उनके कानूनन जायज यथोचित देय से वंचित करने का लिए उनके लाभ के लिए बने कानूनों में ऐसे अन्यायपूर्ण संशोधन लाकर उस पर काम करें