मारग्रेट अल्वा

मारग्रेट अल्वा पराजय का दंश झेलने को हैं तैयार यशवंत की तरह 

देश
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जगदीप धनखड़ के मुकाबले काबिलियत और अनुभव में कम नहीं हैं

-कल्याण कुमार सिन्हा 
उपराष्ट्रपति चुनाव : देश के दो सर्वोच्च पदों में से राष्ट्रपति पद के चुनाव की प्रक्रिया अब अंतिम चरण में है. सोमवार को मतदान संपन्न होने के बाद गुरुवार, 21 जुलाई को मतगणना के साथ ही नए राष्ट्रपति का चयन पूरा हो जाएगा. अब इसके साथ ही दूसरे सर्वोच्च पद उपराष्ट्रपति की चयन प्रक्रिया भी आरंभ हो चुकी है. मंगलवार, 19 जुलाई नामांकन के लिए अंतिम दिन बचा है. इसके बाद आगामी 6 अगस्त को मतदान और मतगणना के चुनाव प्रक्रिया पूरी हो जाएगी. देश को नया उपराष्ट्रपति भी मिल जाएगा. हालांकि, वर्तमान उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू का कार्यकाल अगले महीने 11 अगस्त को समाप्त हो रहा है. 

राष्ट्रपति प्रत्याशी के तरह उपराष्ट्रपति के लिए भी पक्ष और विपक्ष के अपने-अपने प्रत्याशी हैं. सत्तारूढ़ एनडीए (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) ने पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ को अपना उम्मीदवार बनाया है, वहीं विपक्ष ने कांग्रेस की पूर्व केंद्रीय मंत्री और चार बार राज्यपाल रह चुकीं मारग्रेट अल्वा पर दांव लगाया है.

उपराष्ट्रपति पद के दोनों प्रत्याशियों में अनेक समानताएं हैं. लेकिन एक असमानता है. इसमें मैं महिला-पुरुष की बात नहीं कर रहा. मेरा मतलब दोनों की राजनीतिक सक्रियता से है. जगदीप धनखड़ उपराष्ट्रपति प्रत्याशी बनने से पूर्व पश्चिम बंगाल के गवर्नर के रूप में कार्यरत थे. वहीं मारग्रेट अल्वा 2008 के अंत से निर्वासन की स्थित में रहीं हैं. उन्हें कांग्रेस ने नवंबर 2008 में पार्टी की महासचिव के पद से और सेन्ट्रल इलेक्शन कमेटी और महाराष्ट्र, पंजाब, हरियाणा तथा मिजोरम राज्यों के लिए कांग्रेस पार्टी की प्रभारी पद से भी मुक्त कर दिया था. 

सक्रिय राजनीति से अलग-थलग कर दी गईं अल्वा को अपनी स्पष्टवादिता की कीमत चुकानी पड़ी थी. वे चुनाव में पार्टी की सीटों के लिए टिकटों की खरीद-फरोख्त मामले में मुखर हो गईं थी. 14 वर्षों तक गुमनामी में धकेल चुकी कांग्रेस को सिद्धांतों के नाम पर उपराष्ट्रपति चुनाव में आसानी से पराजय की घुट्टी पिलाने के लिए मारग्रेट अल्वा याद आईं. संयुक्त विपक्ष ने भी उन्हें उसी तरह हाथों-हाथ लिया, जैसे हार का स्वाद चखने से गुरेज नहीं करने वाले यशवंत सिन्हा को राष्ट्रपति उम्मीदवार बनाया है. 

विपक्ष की तरफ से उम्मीदवार बनाए जाने के बाद मार्गरेट अल्वा ने ट्वीट कर लिखा, ‘भारत के उपराष्ट्रपति पद के लिए संयुक्त विपक्ष के उम्मीदवार के रूप में नामित होना एक विशेषाधिकार और सम्मान की बात है. मैं इस नामांकन को बड़ी विनम्रता से स्वीकार करती हूं और विपक्ष के नेताओं को धन्यवाद देती हूं कि उन्होंने मुझ पर विश्वास किया है. – जय हिन्द’

राजनीति में लंबी पारी खेल चुके जगदीप धनखड़ को भाजपा ने पश्चिम बंगाल का गवर्नर तब नियुक्त किया था, जब भाजपा बंगाल में जमीन तलाश रही थी और टीएमसी से भाजपा का तनाव पूरे जोर पर था. भारतीय जनता पार्टी को बंगाल में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से टक्कर देने के लिए जमीन तैयार करने में बड़ी भूमिका निभाई थी. 

जगदीप धनखड़ राजस्थान के झुंझुनू जिले के किठाना गांव के वे निवासी हैं. राजस्थान की जाट बिरादरी से ताल्लुक रखते हैं. उनकी गिनती कद्दावर जाट नेता नेता और कानून के बड़े जानकारों में होती है. कानून के जानकार के अलावा उन्हें सियासत की भी खूब परख है. वे चंद्रशेखर सरकार में केन्द्रीय मंत्री भी रह चुके हैं. झुंझुनूं से वे जनता दल से सांसद और विधायक भी रहे हैं. कांग्रेस पार्टी में भी वे रहे हैं. हालांकि अजमेर से वे चुनाव हार गये थे. इसके बाद धनखड़ 2003 में भाजपा में शामिल हो गए थे.
 
विपक्ष की प्रत्याशी मार्गरेट अल्वा चार बार राज्यसभा सांसद और एक बार लोकसभा सदस्य भी रही हैं. जब केंद्र में कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सत्ता में थी, तब वे उत्तराखंड और राजस्थान की राज्यपाल रही हैं. इसके अलावा अल्वा राजीव गांधी और पी.वी. नरसिम्हा राव की सरकारों में मंत्री भी थीं. राजनीति में आने से पूर्व वे एक कामयाब वकील भी रही है. 

कर्नाटक के मैंगलूर की मार्गरेट अल्वा का राजनीतिक सफर भी लंबा और महत्वपूर्ण रहा है. वे कांग्रेस पार्टी की महासचिव रहीं. सांसद रहते हुए उन्होंने महिला-कल्याण के कई कानून पास कराने में अपनी प्रभावी भूमिका अदा की. महिला सशक्तिकरण संबंधी नीतियों का ब्लू प्रिंट बनाने और उसे केन्द्र एवं राज्य सरकारों द्वारा स्वीकृत कराए जाने की प्रक्रिया में उनका मूल्यवान योगदान रहा. दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति ने उन्हें राष्ट्रीय सम्मान से नवाजा भी. उन्होंने 6 अगस्त 2009 से 14 मई 2012 तक उत्तराखण्ड की पहली महिला राज्यपाल के रूप में कार्य किया है. 
 
एनडीए उम्मीदवार धनखड़ के मुकाबले काबीलियत और अनुभव में कमतर नहीं हैं मारग्रेट अल्वा. लेकिन कांग्रेस ने उन्हें विपक्ष के सम्मुख उपराष्ट्रपति पद के लिए ऐसे प्रत्याशी के रूप में पेश किया, जिन्हें यशवंत सिन्हा की तरह पराजय का दंश झेलने से कोई गुरेज नहीं होगा.  

दैनिक ‘शुभम सन्देश’ (रांची) में प्रकाशित.

 

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