संघ की सोच में क्या सचमुच युगांतरकारी बदलाव ला रहे हैं भागवत?
विश्लेषण : कल्याण कुमार सिन्हा
नई दिल्ली में चल रहे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तीन दिवसीय सम्मलेन का समापन कल गुरुवार, 20 सितंबर को हुआ. इस सम्मेलन की उपलब्धि यह रही कि संघ प्रमुख डॉ. मोहन भागवत के दो व्याख्यानों ने संघ की दिशा बदलने का संकेत दिया है.
कट्टर हिंदुत्व और मुस्लिम विरोध के आवरण में लिपटे देश के इस सबसे बड़े सामाजिक संगठन ने अपनी छवि साम्प्रदायिक संगठन की बना रखी है. इस कारण राजनीतिक दलों, विशेषतः कांग्रेस के लिए संघ हमेशा अछूत बना रहा है. देश में 50 वर्षों अधिक समय सत्ता में रही कांग्रेस सत्ताच्युत होने के बावजूद संघ पर हमले का अवसर कभी नहीं छोड़ती. लेकिन संघ प्रमुख भागवत के इन व्याख्यानों ने निश्चय ही संघ के चरित्र की वास्तविकता को समझने पर आलोचकों बाध्य करने का काम किया है.
संघ के लिए युगांतरकारी?
संघ समर्थक भागवत के इन व्याख्यानों को संघ के लिए युगांतरकारी मानते हैं. लेकिन संघ के लिए यह कितना युगांतरकारी होगा, यह तो आने वाला समय ही बताएगा. संघ जुड़े देश की सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी सहित इसकी अनुषंगी विश्व हिन्दू परिषद, बजरंग दल सहित अन्य संगठनों के कृत्यों और वक्तव्यों से लगातार उठाने वाले साम्प्रदायिक स्वरों पर हाल के दिनों में भी संघ का कोई अंकुश नजर नहीं आया है. संघ से जुड़े भाजपा के मंत्रियों, विधायकों और नेताओं का मुस्लिम समुदाय के विरुद्ध विषवमन हमारे समाज की सामुदायिक सौहार्द और आपसी विश्वास को तार-तार करते रहे हैं.
नए संवाद की शुरुआत…!
संघ से जुड़े लोगों का यह भी मानना है कि इस तीन दिवसीय सम्मेलन में भागवत ने एक तरह से नए संवाद की शुरुआत कर दी है. कांग्रेस के महत्व को स्वीकार करना, हिंदुत्व के दर्शन को मुस्लिमों के बिना अधूरा मानना, संघ का संविधान मानी जाने वाली ‘बंच ऑफ थॉट’ की सारी बातों को वैध नहीं बताना जैसी चीजें इस ओर इशारा कर रही हैं. वहीं कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्ष का कहना है कि भागवत ने कुछ नया नहीं बोला.
भविष्य के भारत को लेकर संघ का नजरिया
फिर भी संघ प्रमुख के नाते भागवत के ये व्याख्यान यदि सचमुच “भविष्य के भारत” को लेकर संघ के नजरिया को स्पष्ट करने पर आधारित हैं तो यह स्वागत योग्य है. लेकिन हिंदुत्व के सिद्धांत की भागवत की इस नई परिभाषा में मुसलमानों और ईसाइयों को जोड़ने की बात महत्वपूर्ण है तो इसे नई बात नहीं कही जा सकती. क्योंकि संघ पहले भी ऐसी बातें करता रहा है. अतः भागवत और संघ के लिए यह जरूरी भी हो गया है कि इसे मूर्त रूप में भी सामने लाया जाए.
बड़े बदलाव का संकेत
मोहन भागवत ने अपने व्याख्यानों में संघ के कथित सांप्रदायिक चरित्र को भी खारिज करने की कोशिश की है. तीन दिवसीय संघ के सम्मेलन में भागवत के भाषण के ऐसे प्रमुख बिंदुओं को समझने की जरूरत है, जो संघ में एक बड़े बदलाव का संकेत दे रहे हैं, साथ ही पुरानी धारणाओं को तोड़ रहे हैं…आइए देखें संघ के लिए स्थापित धारणाओं पर कया कह गए संघ प्रमुख भागवत…
धारणा : संघ एक हिंदू राष्ट्र चाहता है जहां मुस्लिमों के लिए कोई जगह नहीं है.
भागवत : हिंदू राष्ट्र का यह मतलब नहीं होता कि मुस्लिमों, ईसाइयों के लिए जगह नहीं है. जिस दिन यह कहा जाएगा कि यहां मुस्लिम, ईसाई नहीं चाहिए उस दिन वह हिंदुत्व नहीं रहेगा.
धारणा : संघ कांग्रेस, वामपंथ विरोधी है.
भागवत : हमलोग तो सर्वलोक युक्त भारत वाले लोग हैं, मुक्त वाले नहीं, कांग्रेस के नेतृत्व में देश में एक बड़ा आंदोलन खड़ा हुआ. ऐसी कई महान विभूतियां रहीं, जिन्होंने अपने जीवन का उत्सर्ग किया और जो हमें आज भी प्रेरणा देती हैं. कांग्रेस ने बड़ा योगदान दिया.
धारणा : संघ अपने पूर्व प्रमुख गोलवलकर के मुस्लिमों के खिलाफ भाषणों का समर्थन करता है.
भागवत : गुरु गोलवरकर जी का ‘बंच ऑफ थॉट’ एक खास संदर्भ में दिए गए भाषणों का संग्रह है. यह हमेशा के लिए वैध नहीं हो सकता. संघ कट्टर नहीं है. समय बदलता है और उसके मुताबिक हमारे विचारों में परिवर्तन आता है.
धारणा : संघ संविधान बदलना चाहता है.
भागवत : संविधान सभी भारतीयों की आम सहमति का परिणाम है और हम सभी का कर्तव्य है कि इसका पालन करें. मैंने जो कहा वह संविधानसम्मत है. संघ संविधान की सर्वोच्चता को स्वीकार करता है और हम इसका पूरा सम्मान करते हैं.
धारणा : भाजपा सरकार नागपुर से चलती है.
भागवत : अक्सर लोगों को लगता है कि सरकार किसी खास फैसले के पीछे नागपुर (संघ हेडक्वॉर्टर) से आया संदेश है. यह आधारहीन है. सरकार में काम करने वाले वरिष्ठ हैं और राजनीति में वे हमसे ज्यादा अनुभवी हैं. उन्हें हमारे सुझावों पर निर्भर होने की जरूरत नहीं और न ही हम कोई सुझाव देते हैं. अगर कभी उन्हें किसी सुझाव की जरूरत होती है और अगर हमारे पास कुछ बताने को होता है, तब हम देते हैं.