जस्टिस दिनेश माहेश्वरी ने EWS आरक्षण को संवैधानिक करार दिया और कहा कि ये संविधान के किसी प्रावधान का उल्लंघन नहीं करता. गरीब सवर्णों के लिए यह आरक्षण संविधान को कोई नुकसान नहीं पहुंचाता. यह समानता संहिता का उल्लंघन नहीं है. जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी और जस्टिस जे.बी. परदीवाला ने भी गरीब सवर्णों के लिए आरक्षण को संविधान सम्मत और भेदभाव से परे करार दिया है.
नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संवैधानिक पीठ ने सोमवार को EWS कोटे के तहत आरक्षण को बरकरार रखा है. चीफ जस्टिस यू.यू. ललित की अगुवाई वाली जजों की बेंच ने बहुमत से ईडब्लूएस कोटे के पक्ष में फैसला सुनाया और कहा कि 103वां संविधान संशोधन वैध है.
भारत के संविधान के तहत अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़ा वर्गों को शिक्षा संस्थानों और सरकारी नौकरियों में 50 फीसदी आरक्षण प्राप्त है.
भारत के संविधान में 103 वां संशोधन करके सामान्य वर्ग के गरीब सवर्णों के लिए आरक्षण का प्रावधान किया गया है.
सुप्रीम कोर्ट के संविधान पीठ ने 3 : 2 के बहुमत से दस फीसदी EWS (आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग) आरक्षण को संवैधानिक और वैध करार दिया है. जस्टिस दिनेश माहेश्वरी, जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी और जस्टिस जे.बी. परदीवाला ने बहुमत का फैसला दिया और 2019 का संविधान में 103वां संशोधन संवैधानिक और वैध करार दिया गया है. अदालत ने कहा – ‘EWS कोटे से संविधान के बुनियादी ढांचे का उल्लंघन नहीं हुआ.’ इसी के साथ आरक्षण के खिलाफ याचिकाएं खारिज की गई हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ईडब्ल्यूएस कोटा सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए 50% कोटा को बाधित नहीं करता है. EWS कोटे से सामान्य वर्ग के गरीबों को फायदा होगा. EWS कोटा कानून के समक्ष समानता और धर्म, जाति, वर्ग, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर और सार्वजनिक रोजगार में समान अवसर के अधिकार का उल्लंघन नहीं करता है. वहीं जस्टिस रविंद्र भट्ट ने कहा कि इस 10% रिजर्वेशन में से एससी/एसटी/ओबीसी को अलग करना भेदभावपूर्ण है.
दो ने जताई असहमति
सीजेआई यू.यू. ललित ने इसे असंवैधानिक करार दिया और वहीं जस्टिस एस. रविंद्र भट्ट ने भी असहमति जताते हुए इसे अंसवैधानिक करार दिया. जस्टिस रविंद्र भट्ट ने कहा कि 103 वां संशोधन भेदभावपूर्ण है. दोनों ने बहुमत के फैसले पर असहमति जताई है.
तीन न्यायाधीशों ने वैधता कायम रखी
जस्टिस परदीवाला ने कहा कि बहुमत के विचारों से सहमत होकर और संशोधन की वैधता को बरकरार रखते हुए, मैं कहता हूं कि आरक्षण आर्थिक न्याय को सुरक्षित करने का एक साधन है और इसमें निहित स्वार्थ की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए. इस कारण को मिटाने की यह कवायद आजादी के बाद शुरू हुई और अब भी जारी है
जस्टिस दिनेश माहेश्वरी ने EWS आरक्षण को संवैधानिक करार दिया और कहा कि ये संविधान के किसी प्रावधान का उल्लंघन नहीं करता. ये आरक्षण संविधान को कोई नुकसान नहीं पहुंचाता. ये समानता संहिता का उल्लंघन नहीं है.
जस्टिस बेला त्रिवेदी ने भी आरक्षण को सही करार दिया. इस पर जस्टिस माहेश्वरी से सहमति जताई है. जस्टिस त्रिवेदी ने कहा कि अगर राज्य इसे सही ठहरा सकता है तो उसे भेदभावपूर्ण नहीं माना जा सकता. EWS नागरिकों की उन्नति के लिए सकारात्मक कार्रवाई के रूप में संशोधन की आवश्यकता है. असमानों के साथ समान व्यवहार नहीं किया जा सकता. SEBC अलग श्रेणियां बनाता है. अनारक्षित श्रेणी के बराबर नहीं माना जा सकता. ईडब्ल्यूएस के तहत लाभ को भेदभावपूर्ण नहीं कहा जा सकता.