*कल्याण कुमार सिन्हा –
अशोक गहलोत के ड्रामे के बाद अब अखिल भारतीय कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए होने वाला चुनाव फिर एक नए दिलचस्प दौर में पहुंचता नजर आ रहा है. 30 सितंबर को नामांकन और उसकी जांच के बाद अब मुकाबला कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मापन्ना मल्लिकार्जुन खड़गे और शशि थरूर के बीच है. इसी बीच रविवार को शशि थरूर के एक बयान से चुनावी माहौल में एक नई गर्मी आती दिखने लगी है. थरूर चाहते हैं कि ब्रिटेन के कंजरवेटिव पार्टी के नेता पद के चुनाव की तरह दोनों प्रत्याशियों की बीच सार्वजनिक बहस हो.
- थरूर ने कहा कि, “वे अपने प्रतिद्वंद्वी मल्लिकार्जुन खड़गे के साथ सार्वजनिक बहस के लिए तैयार हैं, क्योंकि इससे लोगों की उसी तरह से पार्टी में दिलचस्पी पैदा होगी, जैसे कि हाल में ब्रिटेन में कंजरवेटिव पार्टी के नेतृत्व पद के चुनाव को लेकर हुई थी.”
शशि थरूर के इस बयान ने खड़गे खेमे में थोड़ी कशमकश देखी जा रही है. अपने गृह राज्य कर्नाटक में “सोलिलाडा शारदार” (अजेय विजेता) रहे खड़गे के लिए थरूर की यह चुनौती थोड़ी भारी जरूर है. अब तक तो थरूर पर पार्टी के वफादार और बुजुर्ग नेता के नाते उनका पलड़ा भारी माना जा रहा है. लेकिन ऐसी सार्वजनिक बहस में उन्हें उतरना पड़ा तो पार्टी के मतदाताओं पर असर पड़ने का अंदेशा उनके पक्ष के लोगों को हो रहा है.
- ऐसी सार्वजनिक बहस को टालने के प्रयास शुरू हो चुके हैं. इसके लिए पहल भी खड़गे ने की है. प्रतिक्रिया में खड़गे ने कहा, “हम दोनों मिलकर उनके खिलाफ लड़ें, जो महंगाई को बढ़ावा दे रहे हैं, जो बेरोजगारी को को बढ़ावा दे रहे हैं, जो लोगों में झगड़ा करा रहे हैं, जो धर्म को धर्म से लड़ा रहे हैं, जो भाषा के नाम पर झगड़ा करा रहे हैं.”
- उन्होंने कहा, “अगर बहस करनी है, तो हम दोनों मिलकर उनके खिलाफ करें, आरएसएस और भारतीय जनता पार्टी की विचारधारा के खिलाफ हम दोनों लड़ें. आपस के वाद-विवाद से कोई फायदा नहीं है. न देश का फायदा है इसमें, न पार्टी के लिए कोई फायदा है. लड़ना है, हमारी विचारधारा के खिलाफ जो काम कर रहे हैं, उनसे लड़ना है.” खड़गे ने कहा, “हमारा संघर्ष भाजपा से है, मोदी-शाह से है. जो लोग देश को बर्बाद कर रहे हैं, समाज को बर्बाद कर रहे हैं, लोगों को बर्बाद कर रहे हैं, उन लोगों के खिलाफ हम दोनों को मिलकर काम करना है. तो एक अपील है, सबसे कि इसमें न पड़ें कि किसने क्या कहा और कौन क्या कह रहा है.”
जवाब में शशि थरूर ने ट्वीट किया है कि मैं खरगे जी से सहमत हूं कि कांग्रेस में सभी लोगों को एक दूसरे की बजाय भाजपा से मुकाबला करना चाहिए. हमारे बीच कोई वैचारिक मतभेद नहीं है. थरूर ने कहा कि मैं स्पष्ट कर दूं कि मैं खरगे जी से सहमत हूं कि हम सभी को एक-दूसरे के बजाय भाजपा का मुकाबला करना है. हमारे बीच कोई वैचारिक अंतर नहीं है. लेकिन यह भी साफ कर दिया कि 17 अक्टूबर को होने वाला चुनाव हमारे मतदान सहयोगियों के इस बात पर निर्भर है कि कैसे वे इसे सबसे प्रभावी ढंग से संपन्न करते हैं. अर्थात वे चुनाव के पक्ष में हैं.
लेकिन खड़गे के मुकाबले अधिक युवा और राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय जगत में अपनी पहचान रखने वाले थरूर कांग्रेस की परंपरा में पार्टी अध्यक्ष के चुनाव में दो प्रत्याशियों के बीच पब्लिक डिबेट (सार्वजनिक बहस) की परंपरा को स्थापित करने के लिए कृतसंकल्प नजर आ रहे हैं. उनका मत है कि कांग्रेस की मौजूदा चुनौतियों का जवाब प्रभावी नेतृत्व और संगठनात्मक सुधार के संयोजन में निहित है. इसके लिए पार्टी को ऐसे ही प्रभावी नेतृत्व की जरूरत है, जो न केवल संगठनात्मक सुधारों को भी प्रभावी और सशक्त रूप से लागू करे, बल्कि मौजूदा परिस्थतियों में पार्टी को देश की राजनीति में बड़ी भूमिका निभाने के लिए तैयार कर सके.
संयुक्त राष्ट्र के जन सूचना विभाग के अवर प्रभारी महासचिव रह चुके शशि थरूर को संयुक्त राष्ट्र के दुनियाभर में 77 कार्यालयों में 800 से अधिक कर्मियों के सबसे बड़े विभाग के संचार का जिम्मा संभालने का अनुभव है. इसे देखते हुए ही उन्हें संयुक्त राष्ट्र संगठन का नेतृत्व करने के लिए 2006 मवन सेक्रेटरी जनरल का चुनाव लड़ने में तत्कालीन भारत की कांग्रेस सरकार का भी समर्थन मिला था. हालांकि थरूर बान की मून से चुनाव हार गए थे, लेकिन इसी के बाद कांग्रेस से बढ़ी नजदीकियों के कारण वे कांग्रेस में शामिल कर लिए गए थे.
इस तरह, थरूर पूर्व राजनयिक भी रह चुके हैं. वे एक साहित्यकार (उपन्यासकार)) भी हैं. उन्होंने 1981 से फिक्शन और गैर-फिक्शन 17 बेस्टसेलिंग पुस्तकें लिखी हैं, जो भारत और उसके इतिहास, संस्कृति, फिल्म, राजनीति, समाज, विदेश नीति और अधिक संबंधित विषयों पर केंद्रित हैं. वे 2009 से केरल के तिरुवनंतपुरम से लोकसभा सांसद हैं. वर्तमान में, वे विदेशी मामलों में संसदीय स्थायी समिति के अध्यक्ष के रूप में सेवारत हैं. वे भारत सरकार के 2009-10 तक विदेश मंत्रालय के और 2012-14 तक मानव संसाधन विकास मंत्रालय के राज्य मंत्री रह चुके हैं.
अपने चुनाव प्रचार के दो दिवसीय दौरे में नागपुर आए थरूर ने कहा कि वे मानते हैं कि, “कांग्रेस पार्टी के सदस्यों के दिलों में नेहरू-गांधी परिवार की हमेशा खास जगह रही है और रहेगी. अध्यक्ष कोई भी चुना जाए, उसके लिए परिवार का आभा मंडल ही अभय की गारंटी रहेगी. इसके बिना कोई अध्यक्ष पद पर टिका नहीं रह पाएगा.” उन्होंने बताया कि उन्हें यह भी पता है कि गांधी परिवार भले ही इस चुनाव के प्रति निष्पक्ष है, लेकिन उसका “शॉफ्ट कार्नर” खड़गे के लिए है. क्योंकि वे गांधी परिवार के लॉयल रहे हैं. जबकि वे (थरूर) तो स्वयं पार्टी की जी-23 का हिस्सा रह चुके हैं.
शशि थरूर ने यहां यह भी बताया कि श्रीमती सोनिया गांधी से मिल कर वे उन्हें आश्वस्त कर चुके हैं कि जी-23 में शामिल होने का मतलब उनका गांधी परिवार का विरोध करना कतई नहीं रहा है. सोनिया के अलावा राहुल और प्रियंका वाड्रा से भी अलग-अलग मिल कर वे आश्वस्त हो चुके हैं कि पार्टी अध्यक्ष के चुनाव में कोई पार्टी का ऑफिसियल उम्मीदवार नहीं कहलाएगा.
चुनाव साफ़-सुथरा और निष्पक्ष होने की गारंटी मिल जाने के बाद पार्टी के अनेक दिग्गज नेताओं के खड़गे के पक्ष में खड़े होने के बावजूद वे आत्मविश्वास से भरे नजर आ रहे हैं. उनके अपने गृह राज्य केरल में ही उन्हें समर्थन पाने के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ रही है. केरल प्रदेश कांग्रेस के अनेक बड़े नेता उनके विरोधी रहे हैं. फिर भी उन्हें भरोसा है कि केरल सहित पूरे देश के युवा कांग्रेस कार्यकर्ता उनका समर्थन करेंगे. वैसे थरूर के समर्थन में पूर्व केंद्रीय मंत्री मोहसिना किदवई, सैफुद्दीन सोज, चार सांसद और जी-23 के नेता संदीप दीक्षित ने उनके नामांकन फॉर्म पर हस्ताक्षर कर चुके हैं.
यही सब कारण था कि थरूर खड़गे का आम सहमति का सुझाव पहले ही ठुकरा दिया है. उन्होंने खड़गे को कहा कि लोकतंत्र के लिए चुनाव लड़ना ही स्वस्थ परंपरा है. शनिवार और रविवार को दो दिनों के नागपुर और वर्धा दौरे पर पहुंचे थरूर पार्टी जनों को यह सन्देश देना चाहते थे कि कांग्रेस डॉ. आम्बेडकर और महात्मा गांधी के आदर्शों पर चलने वाली पार्टी है और वे इन्हें आदर्शों का प्रतिनिधित्व करते हैं. नागपुर में दीक्षाभूमि जाकर उन्होंने डॉ. आंबेडकर को श्रद्धांजलि अर्पित की, वहीं वर्धा में सेवाग्राम जाकर बापू कुटी में अम्बर चरखे पर सूत काटी. वे नागपुर और वर्धा में कांग्रेस के नेताओं और कार्यकर्ताओं से भी खुल कर मिले. राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा मिल रहे व्यापक समर्थन से उत्साहित थरूर ने विश्वास भी जताया कि 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस “नंबर गेम” बदल देगी.
राजनीति में 50 से अधिक वर्षों के अनुभव वाले नेता, 80 वर्षीय मल्लिकार्जुन खड़गे चुनाव में अजेय थे. मोदी लहर में जब पार्टी के कई दिग्गज नेता चुनाव हार गए, कर्नाटक के गुलबर्गा की सीट खड़गे बचाने में सफल रहे. 2009 में लोकसभा चुनाव के मैदान में उतरने से पहले वह लगातार नौ बार गुरमीतकल विधानसभा क्षेत्र से जीत चुके हैं और गुलबर्गा संसदीय क्षेत्र से दो बार सांसद रहे हैं.
हालांकि, 2019 के लोकसभा चुनावों में वे गुलबर्गा में भाजपा के उमेश जाधव हार गए. कई दशकों में खड़गे के राजनीतिक जीवन में यह पहली चुनावी हार थी. गांधी परिवार के प्रति वफादार एक कट्टर कांग्रेसी, खड़गे ने विभिन्न मंत्रालयों में कई भूमिकाएं निभाई हैं. उन्होंने कर्नाटक विधानसभा और केंद्रीय स्तर पर विपक्ष के नेता के रूप में भी काम किया है और पार्टी में भी जहां उन्होंने 2008 के विधानसभा चुनावों के दौरान केपीसीसी प्रमुख के रूप में कार्य किया था.
खड़गे, जो 2014 से 2019 तक लोकसभा में कांग्रेस पार्टी के नेता थे, विपक्ष के नेता नहीं बन सके, क्योंकि सबसे पुरानी पार्टी को पद नहीं मिल सका क्योंकि निचले सदन में कांग्रेस की सीटों की संख्या कुल संख्या के 10 प्रतिशत से कम थी. उन्होंने मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार में केंद्रीय कैबिनेट मंत्री- श्रम और रोजगार, रेलवे और सामाजिक न्याय और अधिकारिता के रूप में कार्य किया है.
बीदर जिले के वरवट्टी में एक गरीब परिवार में जन्मे, खड़गे ने अपनी स्कूली शिक्षा और स्नातक के साथ-साथ गुलबर्गा में कानून की शिक्षा भी ली. राजनीति में आने से पहले वह कुछ समय के लिए वकालत कर चुके हैं.
वह बौद्ध धर्म के अनुयायी हैं और सिद्धार्थ विहार ट्रस्ट के संस्थापक-अध्यक्ष हैं. उन्होंने गुलबर्गा में बुद्ध विहार परिसर का निर्माण कराया. 13 मई 1968 को राधाबाई से शादी की और उनकी दो बेटियां और तीन बेटे हैं. एक पुत्र प्रियांक खड़गे विधायक और पूर्व मंत्री हैं.
अगर वह निर्वाचित होते हैं तो, वह एस. निजलिंगप्पा के बाद कर्नाटक के दूसरे अखिल भारतीय कांग्रेस अध्यक्ष होंगे, और जगजीवन राम के बाद इस पद को संभालने वाले एक दलित नेता भी होंगे.
हालांकि, खड़गे ने शशि थरूर की डिबेट वाली चुनौती पर हामी तो नहीं भरी है, लेकिन यदि ऐसा हुआ तो केवल कांग्रेस के लिए ही नहीं, सत्तारूढ़ भाजपा सहित अन्य दलों में भी इस स्वस्थ लोकतांत्रिक प्रक्रिया को अपनाने का दवाब बढ़ेगा, जो देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था को सुधारने में बड़ी भूमिका निभा सकता है.