विश्वासघात विदर्भ के साथ, उजागर करेंगे महाराष्ट्र दिवस पर

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विश्वासघात

पूरे विदर्भ में मनाया जाएगा “विश्वासघात दिवस”, सरकारी बोर्ड में महाराष्ट्र पर चिपकाएंगे विदर्भ का स्टीकर

*कल्याण कुमार सिन्हा-
पृथक विदर्भ : एक बार फिर महाराष्ट्र स्थापना दिवस 1 मई, विदर्भवादियों के लिए परीक्षा का दिन है, पृथक विदर्भ राज्य का संकल्प साधने का दिन है, पृथक विदर्भ राज्य की मांग को जगाए रखने का दिन है. विदर्भवादियों के लिए 1 मई का दिन उनके दिलों में नासूर की तरह हो गया है. यह विश्वासघात दिवस (Betrayal Day) बन गया है.

हालांकि 100 वर्षों से भी पुरानी रही है पृथक विदर्भ प्रांत की मांग. इतिहास बताता है कि इसी मांग के फलस्वरूप 1 अक्टूबर 1938 को तत्कालीन मध्य प्रांत की विधायिका को भी पृथक महाविदर्भ का प्रस्ताव बहुमत से पारित करना पड़ा था. देश के आजाद होने के बाद से अब तक देश की संसद एक दर्जन से अधिक नए राज्यों और केंद्र शासित राज्यों का गठन करा चुकी है. लेकिन सबसे पुरानी पृथक विदर्भ राज्य की मांग को ध्वस्त करने के राजनीतिक प्रयास आज तब भी जारी है, जब पिछले 2014 के लोकसभा चुनाव में विदर्भ को पृथक राज्य का दर्जा देने के वादे के साथ देश की सत्ता में आई भारतीय जनता पार्टी की सरकार अभी भी केंद्र में बनी हुई है. इतना ही नहीं, वह राज्य की सत्ता भी पाने के लिए विदर्भ के लोगों को यही सब्जबाग दिखा कर सत्ता में पांच वर्ष बनी रही. लेकिन उसने विदर्भ के लोगों के साथ विश्वासघात ही किया.

“विश्वासघात दिवस” : महाराष्ट्र पर विदर्भ के स्टीकर चिपकाएंगे

इस वर्ष महाराष्ट्र स्थापना दिवस, रविवार, 1 मई को है. और इस बार विदर्भ इसे “विश्वासघात दिवस” (Betrayal Day) के रूप में मनाएगा. पृथक विदर्भ राज्य की मांग का अलख जगाए रखने वाली विदर्भ राज्य आंदोलन समिति ने विश्वासघात दिवस पर एक बार फिर इस आंदोलन को एक और दिशा देने वाली है. समिति का फैसला है कि 1 मई को जब महाराष्ट्र के सरकारी कार्यक्रमों में “गरजा महाराष्ट्र माझा…” गाया जा रहा होगा, तब विदर्भवादी विदर्भ के सभी तहसील से लेकर जिलों के सभी कार्यालयों की नाम फलकों (बोर्ड) पर महाराष्ट्र की जगह विदर्भ के नाम का स्टीकर चिपकाएंगे.

“महाराष्ट्र हटाओ-विदर्भ लाओ” का नारा

इसके साथ ही सभी विदर्भवादी नेता और कार्यकर्ता हाथ पैर और सिर में काला फीता बांधकर महाराष्ट्र की गुलामी का निषेध करेंगे और जनता तक महाराष्ट्र के विश्वासघात का संदेश पहुंचाएंगे. नेशनल हाईवे पर मलकापुर से देवरी तक विदर्भ राज्य के बोर्ड लगाए जाएंगे. साथ ही “महाराष्ट्र हटाओ-विदर्भ लाओ” का नारा दिया जाएगा.

आत्महत्या करने के लिए विवश है विदर्भ का किसान

वर्तमान महाराष्ट्र राज्य का 31% भूभाग और 21% आबादी विदर्भ की है. विदर्भ घने उष्णकटिबंधीय जंगलों से आच्छादित है और विदर्भ की बिजली, खनिज एवं कपास महाराष्ट्र की अर्थव्यवस्था को बड़ा आधार देता आया है. कृषि उपज में गन्ना, चावल, ज्वारी और कपास के साथ फलों में संतरा के साथ शाक-सब्जियों में विदर्भ आत्मनिर्भरता के साथ शेष महाराष्ट्र को भी उपकृत करता है. जबकि सिंचाई के मामले में 1960 से ही देखें तो लगातार पिछले कम से कम छह दशकों तक विदर्भ को महाराष्ट्र की सत्ता ने धोखा ही धोखा दिया. विदर्भ के किसान सिंचाई के साधनों के अभाव में दिन ब दिन कमजोर होते गए. परिणाम यह देखने में आया कि खेतों में अपनी कर्ज लेकर लगाई गई फसलों को सींचने के लिए उन्हें साल दर साल वर्षा पर ही निर्भर रहना पड़ा है. वर्षा नहीं होने अथवा अपर्याप्त या असमय वर्षा के कारण फसलों का नुकसान उठाने को उन्हें बाध्य होना पड़ रहा है. यही कारण है कि फसल कर्ज से दबे सर्वाधिक विदर्भ के किसानों को आत्महत्या का रास्ता चुनना पड़ रहा है. यह विदर्भ के साथ विश्वासघात का परिणाम है.

विदर्भ का समुचित प्रतिनिधित्व का अभाव है विधायिका में

विदर्भ की बढ़ती आबादी के बावजूद विधानसभा और लोकसभा के जनप्रतिनिधियों की संख्या विदर्भ में सीमित ही है. 29 विधायकों और 19 सांसदों वाले विदर्भ की जनसंख्या से कम जनसंख्या वाले राज्यों की विधानसभाओं और लोकसभा में जनप्रतिनिधियों की संख्या कहीं अधिक है. इस कारण भी विदर्भ की आवाज दबती चली आई है. यह भी विश्वासघात ही है.

लगातार उठाई जाती रही है पृथक राज्य की मांग

2016 के 1 मई को मुंबई, नागपुर और विदर्भ के सभी जिलों में सांकेतिक रूप से विदर्भ का झंडा फहरा कर विदर्भ को अलग राज्य का दर्जा देने की मांग की और देश के सत्ता प्रतिष्ठान को जगाने का प्रयास किया गया था. विदर्भ की विदर्भवादी संगठनों ने विधानसभा सत्र के दौरान नागपुर और विदर्भ के जिले तथा तहसीलों में पृथक विदर्भ की मांग का अलख जगाते रहे हैं. इस वर्ष विदर्भ राज्य आंदोलन समिति ने 7 अप्रैल को देश की राजधानी में भी पृथक विदर्भ राज्य की मांग के लिए दिल्ली के जंतर-मंतर पर ‘हल्ला बोल’ आंदोलन भी किया है. अब महाराष्ट्र स्थापना दिवस पर विश्वासघात उजागर कर विदर्भ आंदोलन को नई दिशा देंगे.

महाविदर्भ का सपना भी साकार होने में देर नहीं

अपने-अपने राजनीतिक फायदे के लिए विदर्भ की जनता को धोखा देकर सत्ता का सुख पाती राजनीतिक पार्टियों के लिए यह आंदोलन असर दिखाने लगा है. कमी बस यही है कि विदर्भवादी संगठन उनका विकल्प बनने की दिशा में कृतसंकल्प नहीं हो पा रहे. मजबूत और दमदार नेतृत्व के अभाव में विदर्भ के लोग असहाय बने हुए हैं. पृथक विदर्भ राज्य की मांग ऐसी पुख्ता है कि एक दमदार नेतृत्व मिलते ही विदर्भ के लोगों के लिए विदर्भ ही नहीं, महाविदर्भ का सपना भी साकार होने में देर नहीं लगेगी. तेलंगाना राज्य का उदाहरण सामने है.

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