नागपुर : कर्मचारी पेंशन (1995) समन्वय समिति, नागपुर के कानूनी सलाहकार दादा तुकाराम झोड़े ने भारत के राष्ट्रपति को भेजे एक ज्ञापन में सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश पर गंभीर आक्षेप लगाए हैं. इस संदर्भ में वे पहले भी सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश का ध्यान आकृष्ट करा चुके हैं.
राष्ट्रपति को भेजे अपने ज्ञापन में उन्होंने बताया है कि भारत सरकार के कर्मचारी भविष्य निधि संगठन के (ईपीएफओ) अंतर्गत देश के 68 लाख गरीब वृद्ध पेंशनर्स हैं, जो एक ओर अपने अस्तित्व और सम्मानजनक पेंशन के लिए संघर्ष कर रहे हैं, दूसरी ओर देश की सर्वोच्च अदालत (संभवतः) सरकार के इशारे पर उनके साथ अन्याय कर रही है.
आर.सी. गुप्ता मामला : दुर्भाग्यपूर्ण है बड़े बेंच को रेफर करना https://t.co/LnG7YmzXqm
— vidarbhaapla (@vidarbhaapla1) August 31, 2021
दादा झोड़े ने स्पष्ट आरोप लगाया है कि ईपीएस 1995 पेंशन मामलों की सुनवाई में माननीय सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति यू.यू. ललित ने अनैतिक, अवैध एवं अन्यायपूर्ण आदेश पारित किया है.
राष्ट्रपति को उन्होंने बताया है कि माननीय न्यायमूर्ति यू.यू. ललित ने केंद्र सरकार हुए ईपीएफओ की एसएलपी पर 29-01-2021, 25-02-2021 और 24-08-2021 की सुनवाई के बाद आदेश पारित करने में ईमानदारी और निष्पक्षता से काम नहीं किया.
दादा झोड़े के अनुसार विद्वान न्यायाधीश महोदय ने उक्त आदेश को बहुत ही अवैध रूप से पारित किया है. आशंका व्यक्त की है कि ऐसा भारत सरकार के इशारे पर हो सकता है. राष्ट्रपति को भेजे झोड़े ने यह भी आशंका जताई है कि विद्वान न्यायाधीश ने अपने व्यक्तिगत लाभ (भारत के मुख्य न्यायाधीश की कतार में होने के कारण) के लिए अपनी अंतरात्मा से समझौता किया है. उन्होंने पेंशनभोगियों के मन में माननीय सर्वोच्च न्यायालय की छवि धूमिल की है.
झोड़े ने माननीय न्यायधीश यू.यू. ललित के इस प्रकार के दुर्भाग्यपूर्ण रवैये पर खेद प्रकट करते हुए राष्ट्रपति से उनके विरुद्ध उचित कार्रवाई के लिए भी प्रार्थना की है.
उन्होंने राष्ट्रपति से अनुरोध किया है कि हम सभी वृद्ध गरीब पेंशनर नम्रतापूर्वक, आप इस मामले में हस्तक्षेप करें और हमें न्याय देने के लिए सहानुभूतिपूर्वक कदम उठाएं.
उल्लेखनीय है कि ईपीएस-95 के तहत 68 लाख वयोवृद्ध पेंशनरों के साथ केंद्र सरकार और ईपीएफओ द्वारा लगातार किया जा रहा क्रूर मजाक अब अपने चरम की ओर पहुंचता जा रहा है. सुप्रीम कोर्ट और देश के कम से कम छह हाईकोर्ट के फैसलों को लागू करने से बचने के लिए एक ओर नए-नए तिकड़म चला रही है. इसी क्रम में सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई अपनी एसएलपी पर सुनवाई रोके रखने में न केवल सफल हुई है, बल्कि देश की सर्वोच्च अदालत से अनैतिक, अवैध एवं अन्यायपूर्ण आदेश पारित करवाने में भी सफल हो गई है.