*कल्याण कुमार सिन्हा-
…वो कत्ल भी करते हैं तो चर्चा नहीं होती..! लोकतंत्र की खासियत कहें, या जनता का दुर्भाग्य..! सरकार और राजनीतिक पार्टियां उन्हीं की सुनती हैं, जिनमें उन्हें सत्ता के लिए चुनाव में जीत दिलाने या हराने की ताकत होती है. कहने को तो ईपीएस-95 पेंशनरों की तादाद 68 लाख के करीब है. लेकिन देश की 130 करोड़ की आबादी में इनकी संख्या एक फीसदी के बराबर भी नहीं है. उसमें भी ऐसे गरीब बुढ्ढे पूरे देश में बिखरे पड़े हैं. किसी एक कॉन्स्टिचूएंसी के वोट को भी प्रभावित करने की क्षमता इन बुढ्ढों की तादाद में नहीं है. ऐसे में मोदी सरकार हो या दूसरी पार्टियां, इनके साथ क्रूरता की हदें पार कर जाएं, तो कौन ध्यान देने वाला है..!
क्रूर खेल का नया अध्याय
यही कारण है कि ईपीएस-95 के तहत 67-68 लाख वयोवृद्ध पेंशनरों के साथ केंद्र सरकार और कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) द्वारा लगातार किया जा रहा क्रूर मजाक अब अपने चरम की ओर पहुंचता जा रहा है. सुप्रीम कोर्ट और देश के कम से कम छह हाईकोर्ट के फैसलों को लागू करने से बचने के लिए सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई अपनी एसएलपी पर सुनवाई रोके रखने में ईपीएफओ और सरकार सफल हो गई है. इसके बाद अब एक और नया क्रूर खेल केंद्र सरकार के निर्देशन में शुरू कर दिया गया है. पिछले 11 एवं 12 मार्च 2022 को गुवाहाटी में ईपीएफओ की 230 वीं सेंट्रल बोर्ड ऑफ ट्रस्टी (सीबीटी) की बैठक में “पेंशन सुधार पर फिर एक समिति” गठित करने का फैसला इसी क्रूर खेल का नया अध्याय है.
3.5 लाख वृद्ध गरीब पेंशनर गुजर गए
पिछले दो-तीन वर्षों में लगभग 3.5 लाख वृद्ध गरीब पेंशनर न्यायपूर्ण पेंशन मिलने की आस लगाए इस दुनिया से जा चुके. सरकार उन्हें उनका कानूनी अधिकार जीते जी नहीं दिला सकी. कोविड काल के दो वर्षों में भी सरकार ने ऐसे ईपीएस-95 पेंशनरों के लिए कुछ नहीं किया. ईपीएफओ उन्हें उनके कानूनी अधिकारों से वंचित करने के लिए सभी हथकंडों वाला खेल खेलता रहा और दुर्भाग्य से, एक अंधे दर्शक की तरह इस क्रूर खेल में भारत सरकार को सहभागी बने रहना ही उचित लगा.
पेंशनरों को मामूली सी 1,000 से 3,000 रु. की मासिक पेंशन
दुर्भाग्य की बात है कि इस क्रूरता में उस सरकार की सहभागिता है, जो अपने ईपीएफ और ईपीएस-95 के तहत दुनिया का सबसे बड़ा ‘सामाजिक सुरक्षा’ स्कीम चलाने का दावा करती है. सरकारी सेवाओं से रिटायर्ड पेंशनरों के लिए जीपीएफ स्कीम चलाने वाली सरकार निजी और सार्वजनिक क्षेत्र के पेंशनरों के लिए ईपीएफओ के तहत ईपीएस-95 स्कीम चलाती है. इस स्कीम के अंतर्गत ईपीएफओ पेंशनरों को मामूली सी 1,000 से 3,000 रुपए रकम की मासिक पेंशन देता है. जिससे पेंशनर न तो सहजता से अपना जीवन यापन कर सकते और न बढ़ती उम्र की अपनी बीमारियों का भी सही इलाज करा सकते हैं.
ईपीएफओ के ऐसे पेंशन के निर्धारण के तरीके को पहली बार सुप्रीम कोर्ट ने 2016 के आर.सी. गुप्ता मामले में दोषपूर्ण माना था. इसके साथ ही देश की सर्वोच्च अदालत ने सेवानिवृत्ति के आखिरी महीने के वेतनमान और सेवाकाल के आधार पर पेंशन निर्धारण के आदेश के साथ बढ़ी पेंशन की सेवानिवृति दिन से एरियर (बकाए) की राशि के भुगतान का भी आदेश दिया था. लेकिन ईपीएफओ के माध्यम से सरकार अदालती आदेशों का पालन करने के बजाय पिछले 6 वर्षों से लगातार बेशर्मी की हदें पार करते हुए संशोधित पेंशन और एरियर की रकम पेंशनरों को देने से बचने के लिए एक के बाद एक नए हथकंडे अपनाती जा रही है.
धोखा और बेईमानी..!
संसद में ईपीएस-95 पेंशनरों की मांग बारे सरकार की ओर से जवाब होता है- ‘मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है.’ और अब उसने “पेंशन सुधार पर एक तदर्थ समिति” गठित करने के एक नए हथकंडे का सहारा लेकर पेंशनरों को भरमाने की कोशिश की है. ईपीएस-95 पेंशनरों ने इसे सरकार और ईपीएफओ के सीबीटी की एक और बेईमानी करार दिया है. निवृत कर्मचारी (1995) समन्वय समिति, महाराष्ट्र, नागपुर ने इस “पेंशन सुधार पर एक और तदर्थ समिति” को खारिज करते हुए कहा है कि सरकार द्वारा पिछले 12 वर्षों में ऐसी अनेक समितियां गठित कर पेंशनरों को धोखा देती आई है, अब एक और समिति में उसे कोई विश्वास नहीं रहा है.
समिति पर समिति..!
2009 से ही सरकार अनेक समितियों का गठन करती चली आ रही है. लेकिन किसी भी समिति की सिफारिशें लागू नहीं की गईं. पेंशनरों का अनुभव रहा है कि जब-जब संसद और संसद से बाहर पेंशनरों की मांग तेज होती है, सरकार केवल उन्हें भरमाने और धोखा देने के लिए ही समय-समय पर ऐसी समिति गठित करने के हथकंडे अपनाती है.
– 2009 में : भारत सरकार ने दिनांक 12-06-2009 के आदेश द्वारा ईपीएस 95 पर विशेषज्ञ समिति नियुक्त की, जिसे ईपीएस-95 की जांच करने और विशेषज्ञ राय देने की जिम्मेदारी सौंपी गई. समिति ने 2009 के अंत में अपनी सिफारिशें प्रस्तुत की, लेकिन भारत सरकार ने इसे लागू नहीं किया.
– 2012 में : भाजपा सांसदों के ही पहल पर तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने भाजपा सांसद श्री भगत सिंह कोश्यारी की अध्यक्षता में भारत की संसद, राज्यसभा, पेंशन संबंधी समिति का गठन किया. समिति ने सितंबर 2013 में अपनी सिफारिशें प्रस्तुत कीं. लेकिन भारत सरकार द्वारा उसे लागू नहीं किया गया.
-2016 में : अधीनस्थ विधान पर एक समिति (2015-2016), (सोलहवीं लोकसभा), (बारहवीं रिपोर्ट) जीएसआर (ई 609) के माध्यम से ईपीएस-95 में संशोधन पर गठित की गई थी. समिति ने अगस्त 2016 में ही अपनी सिफारिशें प्रस्तुत की. लेकिन भारत सरकार ने इसे भी लागू नहीं किया.
– 2018 में : श्री हीरालाल सांवरिया, श्रम एवं रोजगार मंत्रालय के अतिरिक्त सचिव की अध्यक्षता में एक उच्च अधिकार प्राप्त निगरानी समिति का गठन 1-04-2018 को किया गया था और समिति ने 21-12-2018 को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की, लेकिन, समिति की सिफारिशें भारत सरकार द्वारा लागू नहीं की गई.
– अब हाल ही में, श्रम, कपड़ा और कौशल विकास पर स्थायी समिति (2021-22), (सत्रहवीं लोकसभा), (तीसवीं रिपोर्ट) लोकसभा में प्रस्तुत की गई और 15-03-2022 को राज्यसभा में रखी गई. इसमें ईपीएस-95 पेंशन में वृद्धि के संबंध में अपनी सिफारिशें प्रस्तुत की गई थी. लेकिन, भारत सरकार ने इसे भी लागू करने के लिए कोई निर्णय नहीं लिया है.
क्या हुआ भगत सिंह कोश्यारी समिति की सिफारिशों का..?
दिलचस्प पहलू यह भी है कि 2013 में भारतीय जनता पार्टी द्वारा ही संसद में भगत सिंह कोश्यारी समिति की सिफारिशों को लागू करने की मांग की गई थी. फिर, 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान, भारतीय जनता पार्टी के नेताओं ने देश के सामने ईपीएस-95 पेंशनरों को आश्वासन दिया था कि अगर भाजपा सत्ता में आती है तो वह भगत सिंह कोश्यारी समिति की सिफारिशों को लागू करेगी. लेकिन, उन्होंने अपना वादा नहीं निभाया. उन्होंने देश के वृद्ध गरीब पेंशनरों को धोखा दिया. सत्ता में आने के बाद भाजपा की सरकार और उसका श्रम एवं रोजगार मंत्रालय समितियां ही बनाते रहे और इधर सम्मानजनक पेंशन पाने की आस लगाए लाखों पेंशनर अर्थाभाव में मारे जा रहे हैं और मर रहे हैं.
सर्वोच्च अदालत भी मानो हथकंडों के खेल में शामिल..?
पेंशनरों के साथ सरकार के हथकंडों में अब देश की सर्वोच्च अदालत भी मानो हथकंडों के खेल में शामिल हो गई है. कोर्ट के तिकड़म का फायदा सरकार और ईपीएफओ को खूब मिल रहा है. पेंशनरों के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट सहित देश के छह हाईकोर्ट के फैसले के बावजूद सरकार एक एसएलपी के माध्यम से फिर उलझाने की कोशिश में लगी है. उस एसएलपी की एकतरफा सुनवाई कर विवादास्पद फैसले देने के बाद मुकदमे को बड़ी बेंच के लिए रेफर कर दिए जाने के सात महीने बीत गए. समझ में नहीं आने वाली बात यह भी है कि इसके के बाद भी देश के 68 लाख वरिष्ठ नागरिकों के साथ न्याय से जुड़े इस बड़े मुकदमें की बड़े बेंच में सुनवाई की अब तक तिथि तय करने में सुप्रीम कोर्ट की रजिस्ट्री विफल क्यों है..!
“द कश्मीर फाइल” में प्रदर्शित “कत्ले आम” जैसी ‘शूटिंग’ जारी
और इधर केंद्र की उसी भाजपा सरकार के निर्देशन में “द कश्मीर फाइल” में प्रदर्शित “कत्ले आम” जैसी ‘शूटिंग’ जारी है. जिसके निशाने पर हैं 68 लाख वयोवृद्ध गरीब पेंशनर..! एक बार फिर “पेंशन सुधार के नाम पर तदर्थ समिति” का गठन, एक बार फिर धोखाधड़ी, एक और बेईमानी और एक बार फिर ईपीएस-95 पेंशनरों भरमाने की कोशिश..! उनके सम्मान पूर्वक जीवन यापन करने के सपने का कत्ल..! मामूली सी पेंशन कहलाने वाली रकम से एड़ियां रगड़ते हुए मरने की बाट जोहते रहने की मजबूरी..! और यह हालात पैदा करने वाली है हमारी ही ‘लोकप्रिय’ वह सरकार, जिसे हर बार आशा भरी नजरों से चुनकर देश की सत्ता पर बैठाने में बार-बार मददगार बनते रहे हैं यही 68 लाख वृद्ध गरीब पेंशनर..!
-कल्याण कुमार सिन्हा.