लोकतंत्र को शर्मसार कर गया किसानों के नाम पर खड़ा किया गया आंदोलन

देश की राजधानी में किसानों द्वारा मचाया गया बवाल, वह भी देश के पवित्र राष्ट्रीय पर्व गणतंत्र दिवस पर अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण था. आंदोलन के नाम पर किसान नेताओं का गणतंत्र दिवस पर दिल्ली में ट्रैक्टर परेड निकालने का फैसला अपने लोकतंत्र को इस कदर शर्मसार कर देगा, इसका अंदाजा किसी को नहीं था. हालांकि थोड़ी-बहुत गड़बड़ी की आशंका सभी को जरूर थी. दिल्ली पुलिस भी आशंकित थी. उसने संभालने की तैयारी भी की ही होगी. लेकिन किसानों ने दिल्ली में जैसी हैवानियत दिखाई, वह तो कल्पना से परे था. टीवी न्यूज चैनलों पर दिखाए जा रहे किसानों का तांडव देख हर किसी को ऐसा लग रहा था कि फिर किसी तैमूर या अहमद शाह अब्दाली ने दिल्ली पर हमला कर दिया हो. इसके पीछे किसान नेताओं की नीयत कितने खतरनाक थे, यह तो जांच का विषय है. दिल्ली पुलिस ने जांच शुरू कर दी है. अब क्या निकल कर सामने आता है, इसका ही इन्तजार है. 

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*विश्लेषण : कल्याण कुमार सिन्हा-
दुनिया
के सबसे पुराने अमेरिकी लोकतंत्र को शर्मसार करने वाली घटना के ठीक 19 दिनों में दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत को भी अपने ही लोगों के हाथों शर्मिंदगी झेलनी पड़ी है. मौका देश के 72वें गणतंत्र दिवस का था. 72वें गणतंत्र दिवस पर राजधानी दिल्ली में भी 60 दिनों से चलाए जा रहे किसान आंदोलन ने हमारे लोकतांत्रिक समाज को भयानक और शर्मनाक बना दिया.

अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के लिए भी वोटिंग के 64वें दिन ही अमेरिकी संसद कैपिटोल के बाहर और भीतर 4 घंटे चले उपद्रव में 4 लोगों की जान चली गई. चुनाव में हारे हुए डोनाल्ड ट्रम्प हार मानने को तैयार नहीं थे और चुनाव में धांधली के आरोप लगाकर वे जनता के फैसले को नकारते रहे, हिंसा की धमकी देते रहे.

वोटिंग के 64 दिनों बाद, जब अमेरिकी संसद जब नए राष्ट्रपति चुने गए जो बाइडेन की जीत पर मुहर लगाने जुटी तो अमेरिकी लोकतंत्र शर्मसार हो गया. ट्रम्प के समर्थक दंगाइयों में तब्दील हो गए. यूएस कैपिटल में तोड़फोड़ और हिंसा की. यूएस कैपिटोल वही बिल्डिंग है, जहां अमेरिकी संसद के दोनों सदन हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स और सीनेट हैं.

किसानों को दंगाई बना दिया
उसी तरह दिल्ली के बॉर्डरों पर शांतिपूर्ण ढंग से बैठकर सरकार से बातचीत करते किसान नेताओं ने भी 60वें दिन किसानों को दंगाई बना दिया. वे दिल्ली पुलिस और देश को विश्वास दिलाते रहे कि गणतंत्र दिवस पर दिल्ली में उनकी ट्रैक्टर परेड शांतिपूर्ण और अनुशासित रहेगी. देश की सर्वोच्च अदालत की व्यवस्था के अनुरूप दिल्ली पुलिस ने भी किसान नेताओं के साथ मिल-बैठ कर उनके ट्रैक्टर परेड को निर्धारित मार्गों से निकाले जाने की अनुमति भी दे दी थी.
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लेकिन किसान नेताओं द्वारा दिल्ली पुलिस से किए गए वायदे के मुताबिक 12 बजे रैली शुरू करने के बजाय किसानों ने सुबह 8 बजे ही पुलिस बैरिकेडिंग तोड़ कर अपने ट्रैक्टर सेंट्रल दिल्ली की तरफ दौड़ा दिए. इसके बाद पुलिस द्वारा उन्हें रोकने की सारी कोशिशें नाकाम होती गईं और नियम-कानून, मान-मर्यादा की धज्जियां उड़ाते हुए किसानों की अराजक भीड़ राजधानी में उत्पात मचाती रही. और तो और, कुछ उपद्रवियों ने लाल किले में घुसकर वहां अपने संगठन का झंडा फहरा दिया.  

किसान नेताओं ने धोखा किया
उन्होंने ही ट्रैक्टर परेड के बहाने किसानों को दिल्ली भेज कर उन्हें दंगाई बना दिया. अब जो तथ्य सामने आए हैं, उससे साफ पता चला है कि किसान नेताओं ने धोखा किया. परेड शामिल ट्रैक्टर चालकों और किसानों को दंगा करने के लिए उन्होंने ही उकसाया था. दंगापार उतर आए किसानों का मनोबल यहां तक भड़का कि वे लाल किले तक जा पहुंचे. वहां भी उन्होंने न केवल दरिंदगी दिखाई, बल्कि लाल किले के प्राचीर पर अपना और सिखों के निशान साहिब वाला झंडा तक फहरा दिया. पूरे संयम के साथ सुरक्षा में वहां तैनात पुलिसकर्मियों को धमकाते किसानों का रवैया उनके सात वहशियाना ही देखने में आया है.

राकेश टिकैत की पोल खोली…
दिल्ली पुलिस की इंस्पेक्टर पुष्पलता का यह दावा कि भारतीय किसान यूनियन (BKU) के प्रवक्ता राकेश टिकैत ने गाजीपुर अंडरपास पर किसानों की भीड़ को उकसाया था, एक ओर वे उन्हें (पुलिस को) ट्रैक्टर को मार्ग बदलने से रोकने को कहते, दूसरी ओर ट्रैक्टर चालकों को आगे बढ़ने का इशारा कर रहे थे. हद तो इस बात की है कि टिकैत का यह बयान, इससे साफ हो जाता है कि उनकी मंशा कितनी खतरनाक थी. राकेश टिकैत ने कहा कि “लालकिले पर पुलिस ने गोली क्यों नहीं चलाई?” उन्होंने यह बात संयुक्त किसान मोर्चा की मीटिंग में कही है.

टिकैत के बयान का मतलब क्या?
राकेश टिकैत के इस बयान पर सवाल उठ रहा कि क्या उनकी यही प्लानिंग थी कि लालकिले पर किसान उपद्रव करेंगे तो पुलिस गोली चलाने पर मजबूर होगी, किसान मारे जाएंगे, जिससे देश भर में बवाल मचेगा, देश के सारे किसान उनके समर्थन में आ जाएंगे और दुनिया भी उनके समर्थन में खुलकर सामने आ जाएगी.  

टिकैत सहित 37 किसान नेताओं को नोटिस, लुकआउट नोटिस भी
इन तथ्यों के मद्देनजर दिल्ली पुलिस ने टिकैत को भी नोटिस जारी कह कहा है कि वो तीन दिन में बताएं कि वादा तोड़ने के लिए उनके खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं होनी चाहिए? पुलिस ने गुरुवार को किसान नेताओं के खिलाफ लुकआउट नोटिस भी जारी किए हैं. यानी वे बिना इजाजत विदेश नहीं भाग सकेंगे. हालांकि, यह पता नहीं चला है कि लुकआउट नोटिस किन-किन नेताओं के खिलाफ जारी हुए हैं. लेकिन, माना जा रहा है कि जिन 37 नेताओं के खिलाफ पुलिस ने बुधवार को FIR दर्ज की थी, उन्हीं के खिलाफ नोटिस जारी किए गए हैं. जिन नेताओं को नोटिस दिए गए हैं उनमें से 5 के नाम सामने आए हैं. ये नेता हैं राकेश टिकैत, योगेंद्र यादव, दर्शन पाल, बलदेव सिंह सिरसा और बलबीर सिंह राजेवाल. पुलिस ने जो नोटिस भेजा है, उसमें यह भी कहा है कि गणतंत्र दिवस पर लाल किले में तोड़फोड़ करना एक देश विरोधी हरकत है.

समाचार सूत्रों के अनुसार लाल किले की प्राचीर पर धार्मिक झंडा लगाने वाले एक युवक की भी पहचान हो गई है. वह पंजाब के तरनतारन के वां-तारा सिंह गांव का रहने वाला है, उसका नाम जुगराज सिंह (22) है.

सारी वारदाताओं की गवाह वीडियो
यह सारी वारदातें सीसीटीवी कैमरे और टीवी न्यूज चैनलों के कैमरे में कैद हो चुकी हैं. यह वीडियो इस तथ्य का स्पष्ट प्रमाण है कि किसान नेताओं ने गणतंत्र दिवस पर देश की राजधानी में ट्रैक्टर परेड करने के नाम पर कितना बड़ा षडयंत्र रचा. इन्होंने केंद्र की सरकार के विरुद्ध नहीं देश के विरुद्ध साजिश रची. दिल्ली पुलिस के संयम ने उनकी साजिश विफल कर दी है. अब उन्हें यह अहसास हो चला है कि उन्होंने कितना घिनौना खेल रचा था. अब वे बचाव में बयानबाजी कर अपने को पाक साफ बताते हुए सरकार को ही कटघरे में खड़े करने की कोशिश करते नजर आ रहे हैं.

युद्धवीर सिंह ने मांगी माफी
उधर, किसान नेता युद्धवीर सिंह ने हिंसा की घटनाओं पर माफी मांगते हुए कहा कि ‘गणतंत्र दिवस के दिन जो हुआ वो शर्मनाक है. मैं गाजीपुर बॉर्डर के पास था. जो उपद्रवी वहां घुसे उनमें हमारे लोग शामिल नहीं थे. फिर भी मैं शर्मिंदा हूं और 30 जनवरी को उपवास रखकर हम प्रायश्चित करेंगे.’

टिकैत का धमकी भरा लहजा
ट्रैक्टर रैली में हिंसा को लेकर भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता राकेश टिकैत के खिलाफ FIR हो चुकी है. लेकिन, उनके तेवर नहीं बदले हैं. टिकैत ने अब सरकार को धमकी भरे लहजे में चेतावनी देनी शुरू कर दी है.

टिकैत ने कहा कि ‘सरकार दहशत फैलाने का काम कर रही है. इस तरह की कोई भी हरकत पुलिस-प्रशासन न करे. अगर इस तरह की हरकत करेगा तो सारे बॉर्डर वहीं हैं. ठीक है…और वे किसान जो गांवों में हैं, वहां पर उनको बता देंगे. फिर अगर कोई दिक्कत होती है तो वहां के जो लोकल के थाने हैं, किसान वहां पर जाएंगइ. ये सरकार पूरी तरह ध्यान रख ले. इस तरह की कोई भी हरकत वहां होगी तो पूरी जिम्मेदारी सरकारों की होगी.’

देशवासी के लिए अपमानजनक और पीड़ादायक
गणतंत्र दिवस के मौके पर देश की राजधानी में ऐसे दृश्य देखना हर देशवासी के लिए अपमानजनक और पीड़ादायक है. संयुक्त किसान मोर्चे ने बाद में बयान जारी करके पूरे मामले पर लीपापोती करने की कोशिश कर रहा है. उसका दावा है कि कार्यक्रम लगभग शांतिपूर्ण था. सिर्फ पांच फीसदी लोग ही लालकिले और आईटीओ की तरफ गए और उनमें से कुछेक ने गड़बड़ी फैलाने वाले काम किए. इस दावे का क्या मतलब है? देश की राजधानी में मचाए गए बवाल को क्या उपद्रवियों का प्रतिशत नाप कर बनाई जाएगी? हकीकत यही है कि किसान नेतृत्व पूरी तरह नाकाम साबित हुआ.

देश का अपमान
लाल किले की प्राचीर एक पवित्र राष्ट्रीय प्रतीक है. उस जगह तिरंगे की जगह किसी अन्य झंडे को लगाना मतलब जानबूझ कर देश का अपमान करना नहीं तो और क्या है? वहां उपद्रवियों द्वारा धार्मिक झंडा लगाना उस ध्वज का भी अपमान है और धार्मिक आस्था पर प्रहार है. सरकार और पुलिस ने किसानों पर भरोसा करते हुए ही ट्रैक्टर रैली निकालने की अनुमति दी थी तथा किसान नेताओं व पुलिस अधिकारियों के बीच रैली के रास्ते पर भी सहमति हो गई थी.

इसके बावजूद लाल किला जाने तथा शहर के भीड़भाड़ वाले इलाके में घुसने की कोशिश हुई. कुछ स्थानों पर हिंसक भीड़ का सामना करने के बावजूद दिल्ली पुलिस ने जिस संयम और धैर्य से स्थिति को संभालने की कोशिश की है, वह सराहनीय है.

उम्मीद की जानी चाहिए कि आंदोलनकारी किसान अपने किसान नेताओं की कुटिल मंशा को समझ कर अपने घर लौटेंगे. राजधानी की सीमाओं पर बड़ी संख्या में जमावड़े से न केवल आसपास रहनेवाले लोगों को भी मुश्किलें बढ़ी हैं, बल्कि दूसरे राज्यों से आवागमन भी बाधित हो रहा है.

नहीं होनी चाहिए अराजकता और हिंसा की पुनरावृत्ति
हिंसा की जांच का काम पुलिस ने शुरू कर दी है. पूरा देश उम्मीद कर रहा है कि जल्द यह काम पूरा होगा और दोषियों को दंडित किया जाएगा. यह संदेश देना जरूरी है कि राष्ट्रीय राजधानी ही नहीं, देश के किसी भी कोने में इस तरह की अराजकता और हिंसा की पुनरावृत्ति नहीं होनी चाहिए. दिग्भ्रमित किसानों को भी ऐसे आंदोलन की जरूरत पर गंभीर आत्ममंथन करना चाहिए. उन्हें इस बात का अब अहसास हो जाना चाहिए कि अतिवादी और राजनीतिक स्वार्थ से प्रेरित तत्वों ने उन्हें अपनी घिनौनी साजिश का मोहरा बना रखा है.

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