ईपीएफ सेवानिवृत्तों को भी न्याय देना होगा नई मोदी सरकार को
आलेख : कल्याण कुमार सिन्हा
कर्मचारी भविष्य निधि (ईपीएफ) के अंतर्गत इससे संबद्ध निजी और सार्वजनिक क्षेत्र के स्थापनाओं के सेवानिवृत्त कर्मचारियों का पेंशन कोई सरकारी सामाजिक सुरक्षा योजना नहीं है, यह कर्मचारियों का अधिकार है. पेंशन का मुख्य उद्देश्य सेवानिवृत्ति के बाद व्यक्ति को अपना जीवन ससम्मान जीने के लायक आर्थिक आधार उपलब्ध कराना. लेकिन ईपीएफओ के गठन के साथ ही कर्मचारी भविष्य निधि और पेंशन के नियम कर्मचारी विरोधी और अन्यायपूर्ण बनाए गए. बीच-बीच में नियमों में संशोधन भी यदि किए गए तो उनमें से अधिकांश सदस्य कर्मचारियों के हितों के खिलाफ ही थे.
कर्मचारियों के हित ठेंगे पर
आज भी देखा जाए तो सरकार द्वारा स्थापित कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) जैसा संगठन स्वयं तो सारी सुविधाएं केंद्र सरकार की स्थापनाओं की तरह लेता है, लेकिन जिन सदस्य कर्मचारियों के वेतन से यह रकम जुटाता है, उन्हें ही यह ठेंगे पर रखता है. उसे ईपीएफ के करीब 15 लाख करोड़ रुपए के प्रबंध की जिममेदारी मिली हुई है. जिसे वह देश के करोड़ों निजी क्षेत्र के कर्मचारियों और नियोक्ताओं से वसूलता रहा है. आश्चर्य का विषय तो यह है कि आजादी के बाद की सभी सरकारें भी ईपीएफओ की इन कर्मचारी विरोधी हथकंडों का समर्थन ही करती आई हैं. यहां तक कि पिछली एनडीए की नरेंद्र मोदी सरकार का रवैया भी पिछली कांग्रेस सरकारों अलग नहीं रहा.
ईपीएफओ का हथकंडा
नरेंद्र मोदी की पिछली सरकार के समय में ही ईपीएफओ की अन्यायपूर्ण पेंशन नीति को पहली बार सुप्रीम कोर्ट के संज्ञान में लाने पर 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने कर्मचारियों के वास्तविक वेतन के आधार पर पेंशन देने का आदेश दिया. लेकिन इसके बावजूद ईपीएफओ तरह-तरह के हथकंडे अपना कर सुप्रीम कोर्ट के आदेश को धता बताने की कोशिश करता रहा. जब फिर सुप्रीम कोर्ट ने ईपीएफओ को फटकार लगाई तो गतिशील हुआ और इसे लागू करने की दिशा में कदम भी उठाए. लेकिन इसके बावजूद इसके हथकंडे कायम हैं और इन हथकंडों के कारण अधिसंख्य कर्मचारी आज भी सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार सुधारित पेंशन पाने से वंचित हैं.
ईपीएफओ का हथकंडा भी खूब है. सुधारित पेंशन की मांग करने वाले सेवानिवृत्तों से वह अपने पूर्व नियोक्ता (एम्प्लॉयर) से 1995 से रिटायरमेंट अवधि तक का मासिक कंट्रीब्यूशन का संपूर्ण ब्यौरा लाने को कहता है. स्वयं नियोक्ता से नहीं मांगता. उधर नियोक्ता सेवानिवृत्तों को बताता है कि उसने तो पहले ही नियमित रूप से ईपीएफओ को प्रत्येक माह के कंट्रीब्यूशन का ब्यौरा भेज चुका है. अब उसके पास पुराने ब्यौरे नहीं हैं.
इधर ईपीएफओ तर्क देता है कि पुरानी परंपरा के अनुसार वह पुराने कागजात नष्ट कर चुका है. केवल उसके पास वही ब्यौरे हैं, जब से ईपीएफओ का डिजिटिलाइजेशन हुआ अर्थात 2009 से ही ब्यौरे उपलब्ध हैं. उसका तर्क है कि बिना सम्पूर्ण ब्यौरे के वह पेंशन निर्धारित नहीं कर सकता. क्योंकि उसे पेंशन के लिए कटौती की अतिरिक्त रकम भी संबंधित सेवानिवृत्त कर्मचारी से वसूलनी है.
ईपीएफओ के इस हथकंडे से सेवानिवृत्त कर्मचारी अधर में हैं. वह ईपीएफओ और अपने पूर्व नियोक्ता के आगे नाक रगड़ने को बाध्य हो रहे हैं. लोकसभा चुनाव से पूर्व पिछले केंद्रीय बजट में केंद्रीय वित्त मंत्री और श्रम मंत्री ने ईपीएफ सेवानिवृत्तों के संगठन को आश्वस्त किया था कि बजट में उनके लिए सम्मानपूर्ण जीवन यापन करने योग्य पेंशन राशि उपलब्ध करा देंगे. लेकिन वैसा नहीं हुआ.
उल्लेखनीय है कि कर्मचारियों का वेतन चाहे कितना भी अधिक क्यों न हो, ईपीएफओ 1995 से 2014 तक के सेवानिवृत्तों का पेंशन 5000 और 6500 रुपए पर ही देता रहा. इसी अन्यायपूर्ण नियम के विरुद्ध कुछ कर्मचारियों ने सुप्रीम में याचिका दर्ज की थी. सुप्रीम कोर्ट ने 2016 में अपने फैसले में इसे अन्यायपूर्ण बताते हुए ईपीएफओ को आदेश दिया था कि जिन कर्मचारियों के पूर्ण वेतन से पीएफ (भविष्य निधि) की कटौती होती रही है, सेवानिवृति के बाद उन्हें उनके वास्तविक वेतन के आधार पर पेंशन दिए जाएं.
पेंशन में बड़ी बढ़ोतरी का रास्ता साफ
2014 में सरकार ने पेंशन के लिए 15,000 रुपए की सीमा तय किया था. इस सीमा के विरुद्ध दायर याचिका की सुनवाई करने के बाद केरल हाईकोर्ट ने इसे रद्द कर सभी सेवानिवृत्तों को उनके अंतिम वास्तविक वेतन और महंगाई भत्ते के आधार पेंशन तय करने का आदेश दिया था. कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) ने इस आदेश के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी. लेकिन ईपीएफओ की इस याचिका को निरस्त कर सुप्रीम कोर्ट ने निजी क्षेत्र के कर्मचारियों की पेंशन में बड़ी बढ़ोतरी का रास्ता साफ कर दिया.
यह याचिका केरल उच्च न्यायालय के उस फैसले के खिलाफ दायर की गई थी, जिसमें कहा गया था कि कर्मचारी को उसके पूरे वेतन के हिसाब से पेंशन मिलनी चाहिए, न कि 15 हजार की सीमा के अनुरूप. पिछले साल उच्च न्यायालय ने सितंबर, 2014 से लागू सरकारी निर्देश को खारिज कर दिया था.
निर्देश में पेंशन लायक वेतन को निर्धारित करने के मानकों को भी बदला गया था. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने अक्तूबर, 2016 में ही स्पष्ट कर दिया था कि किसी समय-सीमा की जरूरत नहीं है और अधिक वेतन पानेवाले कर्मचारी भी पेंशन के लिए योग्य हैं. ईपीएफओ ने इस फैसले के बावजूद नियमों में जरूरी बदलाव नहीं किया. बीते पांच सालों में सर्वोच्च न्यायालय के अलावा अनेक उच्च न्यायालयों ने भी कर्मचारियों के पक्ष में फैसले सुनाए हैं.
उम्मीद थी कि अब यह खींचतान बंद हो जाएगी और पेंशन व्यवस्था को बेहतर करने की कोशिशें तेज होंगी. एक आकलन के अनुसार निजी क्षेत्र के कर्मचारियों के पेंशन में 400 से लेकर 1000 फीसदी तक की बढ़त हो सकती थी. इसका स्वागत करने के साथ यह भी कहा जाना चाहिए था कि सरकार और ईपीएफओ जैसी संस्थाओं को वेतन, भत्ता और पेंशन आदि से जुड़े मसलों को अदालत में ले जाकर समय बरबाद करने से बचना चाहिए. लेकिन ईपीएफओ का रवैया ठीक इसके विपरीत है. वह सुप्रीम कोर्ट में इसके विरुद्ध फिर जाना चाहता है.
उसका तर्क है कि पेंशन की इतनी बड़ी राशि देने में वह सक्षम नहीं है. इस बीच केंद्र में अब एनडीए-2 की नई नरेंद्र मोदी सरकार आ गई है. ईपीएफओ संभवतः इसमें सरकार की राय लेगा. देखना है कि केंद्र की नई सरकार का रवैया ईपीएफ सेवानिवृत वरिष्ठ नागरिको के प्रति कैसा होगा.
नई केंद्रीय मोदी सरकार से यह अपेक्षा है कि मौजूदा कर्मचारियों, रोजगार में आ रहे लोगों तथा पेंशन पा रहे कामगारों के हितों को देखते हुए उनकी समीक्षा भी होती रहनी चाहिए. इस प्रक्रिया में सभी संबद्ध पक्षों की सलाह को भी अहमियत दी जानी चाहिए तथा अफरातफरी में नए-नए नियम बनाने की प्रवृत्ति से बचा जाना चाहिए था.
नीतिगत पहल की जरूरत
पेंशन पर ठोस नीतिगत पहल की जरूरत है. लगभग ढाई दशकों के आर्थिक उदारीकरण के दौर में हमारे देश में संगठित क्षेत्र से अधिक रोजगार असंगठित क्षेत्र में सृजित हुआ है. यह विकासशील अर्थव्यवस्था के लिए चिंताजनक है. इससे कामगारों की बड़ी तादाद पर न तो श्रम कानून लागू हो पाते हैं और न ही ऐसे उद्यमों को रोजगार के एवज में मदद मिल पाती है. इनके लिए पेंशन सुनिश्चित करना भी जरूरी है.
रोजगार, निवेश, बचत और पेंशन का सीधा संबंध आर्थिक विकास और समृद्धि से है. भारत को विकसित बनाने के लिए पेंशन जैसे सामाजिक सुरक्षा के उपायों को मजबूती देना बहुत जरूरी है.
अब केंद्र की नई मोदी सरकार अगले कुछ दिनों में अपने दूसरे कार्यकाल का पहला पूर्ण बजट पेश करेगी. समझा जाता है कि इस बजट में या उससे पहले सरकार की ओर से कई बड़े ऐलान किए जा सकते हैं. इनमें किसानों को, छोटे दुकानदारों को भी पेंशन देने का प्रश्न है.
किसानों को पेंशन
चुनाव से पहले भाजपा के संकल्प पत्र में 60 साल से ऊपर की उम्र वाले छोटे और सीमांत किसानों को सामाजिक सुरक्षा के तहत पेंशन देने का फैसला किया गया था. इस योजना का पूर्ण बजट में ऐलान होने की संभावना है. हालांकि पेंशन स्कीम का फायदा सिर्फ छोटे और सीमांत किसानों को ही दिया जाएगा.
सभी किसानों को 6 हजार रुपए सालाना
इस साल अंतरिम बजट में मोदी सरकार ने प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना शुरू की थी, जिसके तहत 2 हेक्टेयर तक जमीन वाले किसानों को हर साल 6 हजार रुपए की आर्थिक मदद सीधे खातों में पहुंचाने का फैसला किया गया था. इसके बाद संकल्प पत्र में भाजपा ने इसमें थोड़ा आगे बढ़ते हुए वादा किया है कि अगर फिर से भाजपा की सरकार आती है तो सभी छोटे-बड़े किसानों को यह मदद दी जाएगी. मोदी सरकार अपने पहले पूर्ण बजट में इस पर फैसला ले सकती है.
छोटे दुकानदारों को पेंशन
इस बात की संभावना है कि मोदी सरकार अपने दूसरे कार्यकाल के पहले पूर्ण बजट में छोटे दुकानदारों को प्रधानमंत्री श्रम योगी मानधन योजना में शामिल कर सकती है. इस योजना के तहत छोटे दुकानदारों को भी पेंशन की व्यवस्था की जाएगी. बता दें कि संकल्प पत्र में मोदी सरकार ने इसका ऐलान किया था.
सब की कर्जमाफी योजना
इन सब के साथ ही आने वाले दिनों में मोदी सरकार यूनिवर्सल डेट रिलीफ स्कीम (सबकी कर्जमाफी योजना) योजना को लेकर बड़ा ऐलान कर सकती है. इस योजना का मकसद छोटे किसान, कारीगर और कारोबारियों और अन्य सेक्टर के कम आय वाले लोगों को कर्जमाफी का फायदा पहुंचाना है., इस कर्जमाफी योजना का लाभार्थी तय करने के लिए एक खास आय और एसेट की सीमा तय की जाएगी. इसके लिए सालाना 60,000 रुपए की आय, 35 हजार रुपए या उससे कम के बकाया कर्ज और 20,000 रुपए या उससे कम के एसेट को आधार बनाया जा सकता है.
अपने चुनावी संकल्प पत्र को लागू करने में भाजपा और नई सरकार जब कदम उठा सकती है तो ईपीएफओ से जुड़े सेवानिवृत्तों के पेंशन के प्रश्न को न्याय देना भी उसका कर्तव्य होना चाहिए.