कौन था भारत में रेल की यात्रा करने वाला पहला भारतीय रेलयात्री?

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जगन्नाथ शंकरसेठ : मुंबई के आद्य शिल्पकार.

पहली रेल चली थी 17 अप्रैल 1853 को बोरीबंदर (मुम्बई का हिस्सा) से ठाणे के बीच

नई दिल्ली : यह जानना सभी के लिए रोचक हो सकता है कि भारत में रेल की यात्रा करने वाले सबसे पहले रेल यात्री कौन थे. इस संबंध में भारतीय रेलवे के ऐप ‘रेल यात्री’ ने इस तथ्य की पड़ताल की है.

हालांकि सन 1858 से पहले कई भारतीयों ने अपनी इंग्लैंड यात्रा के समय रेलयात्रा की होगी, जैसे कि राजा राममोहन राय सन 1930 में इंग्लैंड गए थे मगर यहां हम बात कर रहे हैं कि भारत में रेल में बैठने वाले पहले भारतीय कौन थे.

तो पहले भारतीय कौन हो सकते हैं?

‘रेलयात्री’ ने इतिहास के पृष्ठों में गहरी पड़ताल कर पाया :

भारत में पहली यात्री रेल 17 अप्रैल 1853 को बोरीबंदर (मुम्बई का हिस्सा) से ठाणे के बीच चली थी (ठाणे को ब्रिटिशों द्वारा तानाह के नाम से पुकारा जाता था). हमें विश्वास हैं कि मुम्बई और ठाणे के बीच चली पहली रेल में कई लोग बैठे थे. उन्हीं में से एक जाने-माने व्यक्ति थे- जगन्नाथ शंकरसेठ- एक समृद्ध परोपकारी जो जमशेदजी जीजाभाई के साथ- भारत में रेलवे निर्माण की दिशा में पर्याप्त राशि दान कर चुके थे.

जगन्नाथ सेठ को विशाल भारतीय प्रायद्वीप रेल (भारतीय मध्य रेलवे) का निर्देशक होने के नाते पहली भारतीय रेल में यात्रा का अधिकार अर्जित था. पहली रेल संचालन की प्रेस रिपोर्ट में भी श्री जगन्नाथ शंकरसेठ का नाम अतिथि यात्रियों में उल्लेखित है, जबकि श्री जमशेदजी जीजाभाई का नाम उस प्रेस रिपोर्ट में अंकित नहीं है.

विकिपीडिया में दर्ज जानकारी के अनुसार जगन्नाथ शंकर सेठ को ‘मुंबई का आद्य शिल्पकार’ भी माना जाता है. वे जगन्नाथ शंकरशेट मुरकुटे अथवा नाना शंकरशेट मुरकुटे के नाम से भी जाने जाते हैं. उनका जन्म एक धनाढ्य द्रविड़ियन ब्राह्मण परिवार में 10 फरवरी 1803 में हुआ था और निधन 31 जुलाई 1865 में हुआ.

उन्होंने मुंबई में पारसी और अफगानी व्यापारियों के साथ व्यवसाय कर मुंबई में व्यवसाय को बढ़ाने के साथ ही मुंबई के विकास और शिक्षा के क्षेत्र में अत्यंत महत्वपूर्ण योगदान दिया था. उन्होंने अनेक शालाओं की स्थापना कराई. इसके लिए उन्होंने स्कूल सोसाइटी और नैटिव स्कूल ऑफ़ बम्बई की स्थापना की थी. उन्होंने लड़कियों के लिए भी स्कूल खोले थे. जिनके नाम कालान्तर में बदलते गए.

सन 1856 में उनके द्वारा स्थापित बम्बई विश्वविद्यालय के सबसे पुराने कॉलेजों में एक एलिफिंस्टन एडुकेशनल इंस्टीटूशन का एलिफिंस्टन कॉलेज एक है. जिसमें उनके जीवनकाल में प्रसिद्ध शिक्षाशास्त्री, समाजसेवी और नेता बालशास्त्री जंभेकर, दादा भाईनौरोजी, महादेव गोविन्द रानाडे, रामकृष्ण गोपाल भांडारकर, गोपालकृष्ण गोखले और बाल गंगाधर तिलक जैसी शख्सियतों ने भी शिक्षा प्राप्त की थी.

उन्होंने दक्षिण मुम्बई के गिरगांव में खोले गए स्टूडेंट लाइब्रेरी के लिए काफी धन दिए. लड़कियों के लिए स्कूल खोले जाने का हिन्दू समाज के भारी विरोध की बावजूद उन्होंने इस स्कूल की स्थापना में भी ढेर सारा धन लगाया. उन्होंने अपने स्कूलों में अंग्रेजी के साथ ही संस्कृत पढ़ाने की भी व्यवस्था की थी. साथ ही गिरगांव में ही उन्होंने संस्कृत सेमिनरी और संस्कृत लाइब्रेरी की भी स्थापना की थी.

26 अगस्त 1852 को उन्होंने बॉम्बे एसोसएशन के नाम से राजनीतिक दल की भी स्थापना की थी. जिसमें तत्कालीन मुंबई की अनेक शख्सियतें शामिल थीं. इसके पहले अध्यक्ष सर जमशेदजी जेजीभाई बने थे. बाद में दादाभी नौरोजी और अन्य युवा भी इससे जुड़े.

गिरगांव में नाना चौक के पास के भवानी-शंकर मंदिर और राम मंदिर भी जगन्नाथ सेठ की ही देन है. पुराने मुंबई के अनेक इलाकों में जगन्नाथ सेठ की कृतियां आज भी मुंबई के विकास में उनके महत्वपूर्ण योगदान की साक्षी है. तत्कालीन ब्रिटिश राज को उन्होंने मुंबई के अनेक विकास कार्यों के लिए आर्थिक सहायता प्रदान की थी.

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