गुढ़ी पड़वा :  ब्रह्मा ने इसी दिन किया था ब्रह्मांड का निर्माण

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गुढ़ी पड़वा
गुढ़ी : भगवान ब्रह्मा का ध्वज, नवसंवत्सर का प्रतीक.

महाराष्ट्र में गुढ़ी पाड़वा एक बहुत ही महत्वपूर्ण पर्व है. इसको ‘संवत्सर पड़वो’ के नाम से भी जाना जाता है, महाराष्ट्र में यह दिन नए साल या फसल के मौसम की शुरुआत का प्रतीक है. देश भर में मराठी और कोंकणी चैत्र माह के पहले दिन गुड़ी पड़वा को बहुत उत्साह और उमंग के साथ मनाते हैं. सरल शब्दों में कहें तो मराठी नववर्ष का नाम दो शब्दों – ‘गुड़ी ‘ और ‘पड़वा ‘ से मिला है. यहां गुड़ी का अर्थ है भगवान ब्रह्मा का ध्वज और पड़वा का अर्थ है चंद्रमा के चरण का पहला दिन. 

शुभ मुहुर्त : गुढ़ी पड़वा की प्रतिपदा 08 अप्रैल 2024 को रात 11:50 बजे से शुरू होगी और प्रतिपदा 09 अप्रैल 2024 को शाम 08:30 बजे समाप्त होगी. उदयातिथि, अर्थात सूर्योदय के हिसाब से गुड़ी पड़वा का पर्व 9 अप्रैल को ही मनाया जाएगा. 

हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान ब्रह्मा ने गुढ़ी पड़वा के दिन ब्रह्मांड का निर्माण किया था और दिन, महीने और साल की शुरुआत की थी. 

कुछ लोग इसे वह दिन भी मानते हैं जब राजा शालिवाहन ने अपनी जीत का जश्न मनाया था और लोगों ने उनके पैठण लौटने पर झंडा फहराया था. मूलतः गुड़ी को बुराई पर जय का प्रतीक कहा जाता है. 

कैसे मनाते हैं गुड़ी पड़वा?

गुढ़ी पड़वा पर, दिन की शुरुआत तेल स्नान से होती है और कुछ अनोखी प्रार्थनाओं के साथ समाप्त होती है. श्रद्धालु नीम की पत्तियों का सेवन गुड़ या अन्य चीजों के साथ भी करते हैं. भक्त तेल से स्नान करने के बाद अपने घरों को रंगोली और वसंत-थीम वाली सजावट से सजाते हैं. इसके बाद, कुछ पारंपरिक प्रथाएं की जाती हैं,जैसे भगवान ब्रह्मा की पूजा के लिए एक शुभ पूजा और भगवान विष्णु और उनके अवतारों की प्रार्थना और हवन किया जाता है.

इस दिन महाराष्ट्र की महिलाएं अपने घरों में सुंदर “गुड़ी ” बना कर और उनकी पूजा करती हैं. गुड़ी मूलतः एक ध्वज होता है, जो चांदी या तांबे के उलटे बर्तन से बनाया होता है, इसे पीले कपड़े से सजाया जाता है और बांस के डंडे के ऊपर स्थापित किया जाता है. श्रद्धालुओं का मानना है गुड़ी सौभाग्य प्रदान करती है और परिवार को सभी नकारात्मक ऊर्जा से बचाती है. पूजा पूरी होने के बाद प्रसाद के रूप में चने की दाल, शहद और जीरा बांटा जाता है.  

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