हाशिए पर आ खड़ी हो गई भाजपा

विचार विशेष
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लोकसभा में 282 से घटकर बहुमत के आंकड़े से मात्र एक अधिक 273 पर आ गई

विश्लेषण : कल्याण कुमार सिन्हा
केंद्र में
सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी को लोकसभा के पिछले चार सीटों के उपचुनाव ने हाशिए पर ला खड़ा कर दिया है. 2014 के लोकसभा चुनाव में बहुमत के जादूई आंकड़े 272 से 10 अधिक 282 सीटें जीत कर सहयोगी दलों के साथ सत्ता में आई थी. लेकिन पिछले चार वर्षों में लोकसभा में भाजपा का संख्या बल फिसलते-फिसलते 273 पर आ गई है. अर्थात अब बहुमत के लिए जरूरी आंकड़े से मात्र एक अधिक सदस्य ही भाजपा के पास है और अभी 2019 के लोकसभा चुनाव होने में लगभग दस माह हैं.

चार वर्षों में लोकसभा के 13 सीटों के लिए उपचुनाव में से 8 सीटों पर हारी
पिछले चार वर्षों में लोकसभा के 13 सीटों के लिए उपचुनाव हुए हैं. इनमें से 8 सीटों पर भाजपा की हार हुई है. चार लोकसभा उपचुनावों के आज के परिणाम भाजपा के लिए फिर से बड़ी चिंता की लकीर खींच दी है. इन चुनावों को 2019 का सेमीफाइनल माना जा रहा है. इनके परिणामों से 2019 में देश के मतदाताओं के मूड का अंदाजा लगाया जा रहा है और यह अंदाजा भाजपा के लिए दुबारा सत्ता पाने का मार्ग बहुत कठिन होने का आभास दिला रहा है.

इन चार लोकसभा सीटों के उपचुनाव में उत्तरप्रदेश की कैराना सीट भाजपा के लिए लिटमस टेस्ट जैसा था. लेकिन भाजपा ने इसे गवां दिया है. वहां मतदाता राष्ट्रीय लोकदल के पीछे एकजुट हो गए और फूलपुर तथा गोरखपुर की पुनरावृति कर डाली.

नाना पटोले के इस्तीफे को जायज ठहरा दिया भंडारा-गोंदिया की जनता ने
महाराष्ट्र की पालघर सीट तो भाजपा बचाने में सफल हुई, लेकिन भंडारा-गोंदिया सीट गवां बैठी. यह सीट 2014 के चुनाव में एनसीपी के हैवीवेट उम्मीदवार पूर्व केंद्रीय मंत्री प्रफुल्ल पटक को भारी मतों से पराजित कर भाजपा ने छीनी थी. लेकिन पिछले दिसंबर में ही यहां के भाजपा सांसद नाना पटोले ने केंद्र और राज्य दोनों भाजपा सरकारों पर क्षेत्र की उपेक्षा का आरोप लगाते हुए पार्टी और लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था. क्षेत्र की जनता ने भाजपा को शिकस्त देकर नाना पटोले के इस्तीफे को जायज ठहरा दिया है.

इसी तरह मध्यप्रदेश के रतलाम लोकसभा उपचुनाव में अपनी यह सीट बचा नहीं पाई. यह सीट भाजपा सांसद दिलीप सिंह भूरिया के निधन से खाली हुई थी. इसके साथ ही पंजाब के गुरुदासपुर की अपनी लोकसभा सीट भी भाजपा के हाथ से निकल गई. यह सीट भाजपा सांसद विनोद खन्ना के निधन से खाली हुई थी. राजस्थान की अजमेर और अलवर सीट भी भाजपा के हाथों से पिछले उपचुनाव में फिसल गई. लोकसभा उपचुनावों के इन परिणामों ने भाजपा को हाशिए पर ला खड़ा कर दिया है. अब 2019 के लोकसभा चुनाव तक भाजपा इस डैमेज को कैसे कंट्रोल करती है, यह तो आने वाले दस महीने ही बताएंगे.

विपक्ष को मिला भाजपा को सत्ता से हटाने का फार्मूला
यह कहना संभवतः दिवास्वप्न की बात हो सकती है कि लोकसभा की चार सीटों और विधानसभा की 10 सीटों के लिए हुए ताजा उपचुनावों के नतीजों ने विपक्ष को भाजपा को सत्ता से हटाने का फार्मूला दे दिया है. क्योंकि विपक्ष का स्वरूप देश में 1979 के लोकसभा चुनाव के अनुरूप बन पाने की फिलहाल कल्पना भी नहीं की जा सकती. लेकिन इतना तो तय है कि यदि विपक्षी दल थोड़ा-थोड़ा भी अपने हिस्से से त्याग का मूड बना लें और भाजपा को बाहर का रास्ता दिखाने में सफल भी हो जाएं तो आश्चर्य की बात नहीं होगी.

– कल्याण कुमार सिन्हा, संपादक, विदर्भ आपला.

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