फैसले को सुप्रीम कोर्ट से ही निरस्त कराने पर आमादा ईपीएफओ

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सुप्रीम कोर्ट

बेईमानी की इंतहा :

कर्मचारी भविष्य निधि (ईपीएफ) पर केरल हाईकोर्ट के फैसले के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट में दायर प्रतिवाद खारिज हो जाने के बाद कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) अब सुप्रीम कोर्ट के ही हाथ बांधने की कोशिश करने चला है. पिछले 2 मई को सुप्रीम कोर्ट इस पेंशन विवाद से संबंधित देश भर के अनेक मामलों पर अंतिम सुनवाई करने वाला था. लेकिन इसी बीच ईपीएफओ ने इसकी सुनवाई आगामी अक्टूबर-नवंबर तक टालने के लिए आवेदन किया. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने ईपीएफओ के अनुरोध को ठुकरा दिया है. लेकिन यह स्पष्ट किया कि 2 मई के बजाय सुप्रीम कोर्ट इन मामलों पर फैसला ग्रीष्मावकाश के बाद जुलाई के पहले सप्ताह में ही देगा.

ईपीएफ अंशधारकों के खिलाफ लम्बे समय से षडयंत्र में लिप्त कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने की योजना बना रहा है.

सुप्रीम कोर्ट ने केरल हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखा था
पिछले माह 2 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट के नए आदेश ने प्राइवेट सेक्टर में काम करने वाले लाखों सेवानिवृत्तों और कर्मचारियों को बड़ी राहत दी थी. सुप्रीम कोर्ट ने पेंशन में बढ़ोतरी का रास्ता साफ करते हुए केरल हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखा है. केरल हाईकोर्ट ने अपने एक आदेश में भविष्‍य निधि संगठन (ईपीएफओ) को कहा था कि रिटायर होने वाले कर्मचारियों को उनकी आखिरी सैलरी के आधार पर पेंशन दे. क्योंकि 2014 से ईपीएफओ एक अन्य सीमा (15,000 रुपए) निधार्रित कर सेवानिवृत्तों को पेंशन देता रहा है.

इसीके बाद ईपीएफओ ने केरल हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने केरल हाईकोर्ट के फैसले को सही माना और ईपीएफओ की याचिका को खारिज कर दिया.

2014 के पूर्व के सेवानिवृत्तों के पेंशन का किया पुनर्निर्धारण
हालांकि 2014 से पूर्व सेवानिवृत हुए ईपीएफ अंशधारकों को, जिनके पेंशन तय करने की निर्धारित सीमा 5500 और 6500 रुपए ईपीएफओ ने निर्धारित कर रखा था, उन्हें 2016 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के आधार पर वह सेवानिवृत्तों में से अनेक लोगों को उनके वास्तविक वेतन के आधार पर पेंशन का पुनर्निर्धारण कर पेंशन भुगतान करना शुरू भी कर चुका है.

लेकिन अनेक सेवानिवृत्तों के पेंशन पुनर्निर्धारण में लगा रहा अड़ंगा
लेकिन इसके साथ उसने ऐसे ही अनेक सेवानिवृत्तों को उनके पूर्व नियोक्ताओं (एम्पायर्स) से लड़ा कर पेंशन पुनर्निधारण में अड़ंगा लगाने में कोई कसार नहीं छोड़ा है. पेंशन पुनर्निर्धारण करने की मांग करने वाली सेवानिवृत्तों से ईपीएफओ द्वारा अपने नियोक्ता से 1995 से सेवानिवृति तिथि तक के नियोक्ता द्वारा उसका ईपीएफ अंशदान का सम्पूर्ण मासिक ब्यौरा प्रस्तुत करने के लिए बाध्य कर रहा है. ईपीएफओ सम्पूर्ण मासिक ब्यौरे को बकाया भुगतान और पेंशन पुनर्निर्धारण के लिए जरूरी बताता है.

नियोक्ताओं से ऐसे लड़ा रहा सेवानिवृत्तों को
नियोक्ता यह ब्यौरा उपलब्ध कराने से मना कर रहे हैं. इस सन्दर्भ में नियोक्ताओं के अलग-अलग तर्क हैं. कोई कहता है, हमने हर महीने आपके ईपीएफ अंशदान का ब्यौरा ईपीएफओ को नियमित रूप से दे दिया है, अब फिर से देना संभव नहीं है. कोई कहता है, हमारे पास पुराने रिकार्ड नहीं हैं. कोई कहता है- ईपीएफओ ने तो हमसे नहीं मांगा है, अब आप हमारे कर्मचारी नहीं रहे, आपके अंशदान का ब्यौरा हम पहले ही ईपीएफओ को दे चुके हैं. अब दुबारा क्यों दें? इससे सेवानिवृत्तों को अपने पूर्व नियोक्ताओं से लड़ा कर ईपीएफओ मजे कर रहा है.

अपने पास का ब्यौरा नष्ट कर चुका है
इसमें ध्यान देने वाली बात यह है कि जब कोई सेवानिवृत ईपीएफओ से पुनर्निर्धारण की मांग करता है तो ईपीएफओ स्वयं संबंधित नियोक्ता से यह ब्यौरा नहीं मांगता, सेवानिवृत को ही अपने नियोक्ता से लाने को बाध्य करता है. नियोक्ता द्वारा यह कहने पर कि हमने नियमित प्रत्येक माह का ब्यौरा ईपीएफओ को दे दिया है, ईपीएफओ के पास वह ब्यौरा है. इसका जवाब ईपीएफओ यह देता है कि 2009 में डिजिटाइजेशन होने के बाद का ब्यौरा ही हमारे पास है, उसके पहले का ब्यौरा हमने नष्ट कर दिया है. लेकिन ऐसे ही नियोक्ताओं के तर्क वह सुनाने को तैयार नहीं है और इसके आधार पर वह पेंशन पुनर्निर्धारण से मुकर रहा है. इस तरह ईपीएफओ जान-बूझ कर 5,500 और 6,500 रुपए की सीमा वाले पुराने सेवानिवृत्तों को भी परेशान कर रहा है.

एक्जम्पटेड और नन एक्जम्पटेड नियोक्ता संगठनों में विभेद
2016 में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद ईपीएफओ ने एक्जम्पटेड और नन एक्जम्पटेड नियोक्ता संगठनों में विभेद कर मामले को उलझाने की भी कोशिश की है. इसके विरुद्ध देश के अलग-अलग राज्यों के लोगों को हाईकोर्ट की शरण लेनी पड़ी. इससे संबंधित मामलों पर ही 2 मई को सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने वाला था. जो अब जुलाई के लिए टल गया है.

ईपीएफ अंशधारकों के पैसे से ही चल रहा ईपीएफओ
अब जिस केरल हाईकोर्ट के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट की मुहर लग चुकी है, उसे सुप्रीम कोर्ट से ही निरस्त कराने के लिए ईपीएफओ कमर कस चुका है. उसका तर्क है कि इतना अधिक पेंशन दे पाना संभव नहीं है. इसमें दिलचस्प तथ्य यह है कि स्वयं ईपीएफओ के सारे अधिकारी और कर्मचारी ईपीएफ अंशधारकों के पैसे से ही अपने तमाम वेतन और भत्ते पाते हैं.

भारत सरकार की सुविधाएं पा रहे ईपीएफ अंशदान से
ईपीएफओ का सारा कारोबार, सारा तामझाम अंशधारकों के पैसे से ही चलता है. इतना ही नहीं ईपीएफओ के सारे कमिश्नर, अधिकारी और कर्मचारी ईपीएफ अंशधारकों के पैसे से ही केंद्र सरकार के कर्मचारयों की तरह पेंशन और ग्रेच्यूटी भी ले रहे हैं. जब कि वे केंद्र सरकार के न तो कर्मचारी हैं और न ही उनके वेतन-भत्ते, पेंशन, ग्रेच्यूटी आदि के लिए एक पैसा भी भारत सरकार उन्हें नहीं देती है.

ईपीएफओ कर्मियों से वसूली जाए अतिरिक्त परिलब्धियों की रकम
सेवानिवृत कर्मचारियों की मांग है कि ईपीएफओ के सारे अधिकारियों-कर्मचारियों के सर्विस रूल में तत्काल बदलाव लाया जाए और उनके पेंशन ईपीएफओ की तरह 1995 से निर्धारित हों. साथ ही पेंशन और अन्य परिलब्धियों की 1995 से दी गई तमाम अतिरिक्त राशि की वसूली भी उनसे की जाए.

ईपीएफओ की बेईमानी से नाराजगी
ईपीएफ अंशधारकों ने इस बार पर नाराजगी जताई है कि भारत सरकार के कर्मचारयों की तरह सारी सुविधाएं ईपीएफओ अंशधारकों के पैसे से लेने वाले ईपीएफओ कर्मी, अंशधारकों के साथ ही वर्षों से ऐसी बेईमानी कर रहे हैं और उन्हें पेंशन की मामूली रकम देकर स्वयं मौज कर रहे हैं.

15000 की भी सीमा क्यों?
ईपीएफओ के मौजूदा नियमों के तहत, ईपीएफओ अंतिम सैलरी के आधार पर मासिक पेंशन देता है और इसने पेंशन कैलकुलेशन के लिए 15,000 रुपए मासिक की बेसिक सैलरी लिमिट तय कर रखी है. केरल हाईकोर्ट ने ईपीएफओ को पेंशन कैलकुलेट करने के लिए सैलरी की इसी 15 हजार की सीमा को खत्म करने और कर्मचारी की पूरी सैलरी के आधार पर पेंशन भुगतान करने का निर्देश दिया था.

ईपीएफओ के अधिकारियों का तर्क है कि ईपीएस में मासिक योगदान कम है, जिसके कारण यह अधिक पेंशन का भार सहन नहीं कर पाएगा. उन्होंने कहा कि नकदी की किल्लत के कारण ही ईपीएफओ को पहले ही न्यूनतम पेंशन 1,000 रुपए से बढ़ाकर 2,000 रुपए करने की योजना को स्थगित करना पड़ा है.

फिलहाल, ईपीएफओ में कवर्ड कर्मचारी अपनी सैलरी का 12 फीसदी प्रविडेंट फंड में और इतनी ही रकम नियोक्ता को भी इस मद में भुगतान करना पड़ता है. कर्मचारियों द्वारा 12 फीसदी के योगदान में से 8.33 फीसदी ईपीएस (एंप्लॉई पेंशन स्कीम) में चला जाता है. लेकिन इस रकम पर मासिक 1,250 रुपए की लिमिट है.

-विदर्भ आपला

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