7 साल से अधिक की सजा और आर्थिक अपराध बना लालू प्रसाद के लिए राहत का रोड़ा
रांची : झारखंड में गठबंधन की सरकार में शामिल होने के बावजूद RJD सुप्रीमो लालू प्रसाद को पैरोल मिल पाएगा, इसकी संभावना दूर-दूर तक दिखाई नहीं देती. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के प्रयास भी विफल होते जान पड़ रहे हैं.
सप्रीम कोर्ट का ऐसा है आदेश
बता दें कि कोरोना वायरस (Corona virus) के बढ़ते खतरे के बीच सुप्रीम कोर्ट ने 7 साल तक की सजा पाए बंदी और विचाराधीन कैदियों को पैरोल पर रिहा करने का आदेश दिया था. लेकिन, मिली जानकारी के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट का आदेश आर्थिक आपराधिक और 7 साल से ज्यादा सजा वालों के लिए नहीं है और इस वजह से लालू प्रसाद को पेरोल नहीं दिया जा सकता. इसके लिए लालू प्रसाद को अलग से हाईकोर्ट जाना होगा और उनके याचिका पर न्यायालय निर्णय ले सकता है. सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर बनी विशेष हाई लेवल कमिटी की बैठक में लालू प्रसाद के पैरोल पर विचार नहीं हुआ.
मुख्यमंत्री ने महाधिवक्ता से भी की बात
झारखंड के महाधिवक्ता राजीव रंजन ने मुख्यमंत्री आवास जाकर हेमंत सोरेन से मुलाकात की. मुलाकात के बाद महाधिवक्ता ने कहा कि सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के आलोक में बंदियों को पैरोल पर रिहा करने के लिए कमिटी बनाई है और अब कमिटी ही कोई फैसला लेगी. महाधिवक्ता ने लालू प्रसाद को पैरोल देने के मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश और सरकार की सीमा से उन्हें अवगत करा दिया है.
चारा घोटाले के चार मामलों में हैं सजायाफ्ता
बता दें कि लालू प्रसाद चारा घोटाले के झारखंड से जुड़े 4 मामलों में सजा काट रहे हैं. किडनी समेत एक दर्जन से ज्यादा बीमारियों से परेशान आरजेडी सुप्रीमो को रांची के होटवार जेल से लाकर रिम्स में इलाज कराया जा रहा है. जमानत पर बाहर निकलने के लिए उन्होंने झारखंड हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक का दरवाजा खटखटाया, लेकिन जमानत नहीं मिली.
राजद ने की थी पैरोल की मांग
गौरतलब हो कि राजद के झारखंड प्रदेश अध्यक्ष अभय सिंह के नेतृत्व में एक शिष्टमंडल ने मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन से मुलाकात करने की कोशिश की थी, पर कोरोना की वजह से सीएम से उनकी मुलाकात नहीं हो सकी थी. इसके बाद राजद नेताओं ने मुख्यमंत्री को मेल के माध्यम से लालू यादव के लिए पैरोल की मांग की थी.
आईजी (जेल) ने भी बताई वजह
आईजी (जेल) ने बताया कि बैठक में किसी खास नाम पर कोई चर्चा नहीं हुई. झारखंड के जेल आईजी शशि रंजन ने बताया कि कोरोना महामारी और जेलों में भीड़ को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया था कि 7 साल से कम सजा वाले कैदियों को पैरोल पर छोड़ा जाए. सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार इसपर विचार करने के लिए एक बैठक हुई, जिसके बाद उन्होंने मीडिया से बात करते हुए इसकी जानकारी दी. इस कमिटी में अंडर ट्रायल कैदियों और सामान्य अपराध के आरोप में बंद कैदियों (जिन्हें 7 साल से काम सजा हुई है) को संबंधित कोर्ट पैरोल दे सकती है. लेकिन, गंभीर अपराध और आर्थिक अपराध में सजा पाने वाले कैदियों के मामले में यह लागू नहीं होगा. उन्होंने कहा कि इस कमिटी में गृह सचिव सहित आईजी जेल भी सदस्य हैं.