‘ठाकरे’ : बाला साहब की शख्सियत भुनाने की कोशिश

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फिल्म 'ठाकरे' में बालासाहब ठाकरे की भूमिका में अभिनेता नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी.

सिनेमा घरों में 25 जनवरी को दे सकती है ‘रिकॉर्डतोड़’ दस्तक

मुंबई : चुनावी वर्ष का आगाज बॉलीवुड ने दो राजनीतिक शख्सियतों की दो अलग-अलग बायोपिक से की है. इनमें पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह और शिवसेना के संस्थापक बाला साहब ठाकरे की जीवन के राजनीतिक महत्व के दिनों को प्रदर्शित किया गया है. डॉ. मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री पद के कार्यकाल की संजय बारू की बायोग्राफी पर आधारित फिल्म ‘द एक्सीडेंटल प्राइममिनिस्टर’ पिछले 11 जनवरी से देश भर में सुर्खियां बटोर रहा है.

शिवसेना संस्थापक और महाराष्ट्र की राजनीति में अहम भूमिका निभाने वाले बाला साहब ठाकरे की जीवन गाथा पर आधारित बायोपिक ‘ठाकरे’ अगले सप्ताह 25 जनवरी को प्रदर्शित होने वाली है. इससे महाराष्ट्र में निश्चय ही शिवसेना को आगामी लोकसभा चुनावों में अपने राजनीतिक हित साधने का भी अवसर मिल सकता है. इस बायोपिक का इन्तजार पूरे महाराष्ट्र में दर्शक कर रहे हैं. निर्माताओं को भरोसा है कि कम से कम महाराष्ट्र में ‘ठाकरे’ बॉक्स ऑफिस के रिकार्ड जरूर तोड़ डालेगा.

बाला साहब के सार्वजनिक जीवन के 46 साल
लगभग 46 साल तक सार्वजनिक जीवन में रहे शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे ने कभी न तो कोई चुनाव लड़ा और न ही कोई राजनीतिक पद स्वीकार किया. यहां तक कि उन्हें विधिवत रूप से कभी शिवसेना का अध्यक्ष भी नहीं चुना गया था.

लेकिन महाराष्ट्र की राजनीति और खासकर इसकी राजधानी मुंबई में उनका खासा प्रभाव था. उनका राजनीतिक सफर भी बड़ा अनोखा था. वो एक पेशेवर कार्टूनिस्ट थे और शहर के एक अखबार ‘फ्री प्रेस जर्नल’ में कार्टूनिस्ट के रूप में काम करते थे. बाद में उन्होंने नौकरी छोड़ दी.

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फिल्म ‘ठाकरे’ में शिवसेना की स्थापना सभा का दृश्य.

बाल ठाकरे ने 1966 में शिवसेना की स्थापना की और ‘मराठी मानुस’ का मुद्दा उठाया. उस समय नौकरियों का अभाव था और बाल ठाकरे का मानना था कि मुंबई में दक्षिण भारतीय लोग मराठियों की नौकरियां छीन रहे हैं. उन्होंने मराठी बोलने वाले स्थानीय लोगों को नौकरियों में तरजीह दिए जाने की मांग को लेकर आंदोलन शुरू कर दिया. इसके साथ ही उन्होंने राजनीति में पैठ बनाई और शिवसेना को महाराष्ट्र राज्य की सत्ता तक पहुंचाया.

ठाकरे की भूमिका में हैं नवाजुद्दीन सिद्दीकी
उनकी जीवन यात्रा के इन्हीं वर्षों के अनेक पलों को निर्देशक अभिजीत पांसे ने रुपहले पर्दे पर उतारा है. फिल्म ‘ठाकरे’ हिंदी के साथ मराठी में भी प्रदर्शित किया जा रहा है. फिल्म में ठाकरे की भूमिका अभिनेता नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने और उनकी पत्नी की भूमिका अमृता राव ने निभाई है. फिल्म अपने प्रोमो से ही सुर्खियों में है. अगर सिर्फ लुक्स की बात की जाए तो नवाजुद्दीन सिद्दीकी बाल ठाकरे के किरदार में बिलकुल फिट नजर आ रहे हैं. हवा में हाथ लहराते हुए नमस्कार करने से लेकर शॉल ओढ़ने तक.

जानकारों के मुताबिक फिल्म के ट्रेलर में बाल ठाकरे के जीवन से जुड़े कुछ राजनीतिक पहलुओं की झलक है. फिल्म के ट्रेलर के जरिए इतिहास के कुछ ही पन्नों को पलटा ही गया है. फिल्म के बारे में अभी से जानकारों में एक दृश्य को लेकर फुसफुसाहट भी चल निकली है.

आहात हैं दक्षिण भारतीय
‘ठाकरे’ के ट्रेलर में बाल ठाकरे के किरदार में नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी बोलते हैं – ‘लुंगी उठाओ, पुंगी बजाओ!’ – जिसके जरिए फिल्म में ये दर्शाने की कोशिश की गई है कि बाल ठाकरे दक्षिण भारतीयों के विरुद्ध किस तरह खुलकर बोलते थे. ये डायलॉग फिल्म के मराठी ट्रेलर में है, लेकिन हिंदी ट्रेलर में नहीं है.

शिवसेना और बाल ठाकरे पर एक किताब लिख चुकीं वरिष्ठ पत्रकार सुजाता आनंदन बताती हैं- “1966 में शिवसेना का गठन करने से कई साल पहले बाल ठाकरे एक कार्टूनिस्ट के तौर पर ‘द फ़्री प्रेस जर्नल’ में काम करते थे. वहां उनके अलावा आर.के. लक्ष्मण भी काम करते थे, जो बाद में बेहद प्रसिद्ध कार्टूनिस्ट हुए.

सुजाता बताती हैं कि बाल ठाकरे जब संपादक को अपने बनाए कार्टून भेजते थे तो आर.के. लक्ष्मण के कार्टून को ही तवज्जो मिलती थी. सुजाता के अनुसार उन दिनों पत्रकारिता में दक्षिण भारतीयों का बहुत दबदबा था. इससे बाल ठाकरे को लगने लगा कि उनके साथ पक्षपात हो रहा है और आर.के. लक्ष्मण को दक्षिण भारतीय होने का फायदा मिल रहा है. फिर 1960 में उन्होंने अपने भाई के साथ कार्टून संबंधी एक साप्ताहिक पत्रिका ‘मार्मिक’ निकालनी शुरू की.

‘लुंगी उठाओ, पुंगी बजाओ!’
फिल्म का डायलॉग ‘लुंगी उठाओ, पुंगी बजाओ!’ से दक्षिण भारतीय कुछ आहात हैं. दक्षिण भारत के नामी अभिनेता सिद्धार्थ ने ‘ठाकरे’ के ट्रेलर में दक्षिण भारतीयों के खिलाफ इस्तेमाल हुए इस डायलॉग को लेकर अपनी आपत्ति ट्विटर पर दर्ज कराई है. कहा है- ‘नफरत बेचना बंद करो!’ उनकी नाराज़गी इस बात से है कि फ़िल्म के ट्रेलर में ठाकरे को दक्षिण भारतीयों को नापसंद करते हुए दिखाया गया है. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या वाकई में बाल ठाकरे दक्षिण भारतीयों को पसंद नहीं करते थे?

पत्रकार सुजाता का कहना है कि इस बात में कोई दो राय नहीं कि बाल ठाकरे दक्षिण भारतीयों को पसंद नहीं करते थे, लेकिन क्या ट्रेलर में दिखाई गई हर बात इतनी ही सच्ची है? ट्रेलर में जिन राजनीतिक हिस्सों को दिखाया गया है वो घटित हुए भी थे या नहीं, इस पर भी ध्यान देने की जरूरत है.

1992 में मुंबई में हुए हिंदू-मुस्लिम दंगे और ठाकरे
ट्रेलर में कुछ दृश्य कोर्ट के नज़र आते हैं. एक दृश्य में बाल ठाकरे 1992 में मुंबई में हुए हिंदू-मुस्लिम दंगों में हाथ होने का दावा करते हैं तो वहीं दूसरे में बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले पर राम मंदिर की दुहाई देते दिखते हैं.

हालांकि 1992 के दंगों की जांच करने वाले श्रीकृष्ण आयोग के मामले को कवर कर चुकीं सुजाता आनंदन का कहना है कि उनकी जानकारी के अनुसार बाल ठाकरे कभी कोर्ट गए ही नहीं.

उन्होंने बताया कि मुंबई हाई कोर्ट में जब भी इस केस कि सुनवाई होती तो बाल ठाकरे नज़र नहीं आते थे. बल्कि उनकी जगह शिव सेना के दो नेता, मधुकर सरपोतदार और मनोहर जोशी पेशी के लिए आते.

वह बाबरी मस्जिद के मामले को याद करते हुए बताती हैं कि उस केस से बाल ठाकरे बेहद घबराए हुए थे. जब अयोध्या से उनको समन आया तो उन्होंने हर मुमकिन कोशिश की कि वह उससे बच सकें.

सुजाता आनंदन याद करती हैं कि अयोध्या मामले में भी उन्होंने कभी बाल ठाकरे को कोर्ट में नहीं देखा. वे बताती हैं, ”उनके वकील ही मामले को संभालते. अपने मुख़बिरों के जरिए या मीडिया के ज़रिए ही वह बयान देते.”

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पाकिस्तानी क्रिकेटर जावेद मियांदाद से मुलाकात का एक दृश्य.

पाकिस्तानी क्रिकेटर जावेद मियांदाद से मुलाकात
बाल ठाकरे की भूमिका निभानेवाले नवाजुद्दीन पाकिस्तानी क्रिकेटर जावेद मियांदाद की बल्लेबाजी की तारीफ के साथ-साथ देश के जवानों के बलिदान की बात करते नजर आ रहे हैं .

दरअसल, जावेद मियांदाद और बाल ठाकरे के बीच जो दृश्य फिल्माया गया है वह सार्वजनिक बातचीत का दृश्य है.

सुजाता आनंदन बताती हैं कि मियांदाद और ठाकरे की यह सार्वजनिक बातचीत मीडिया के सामने हुई थी. उस समय बाल ठाकरे ने एक बार भी पाकिस्तान के खिलाफ कुछ नहीं बोला और न ही देश के जवानों पर कोई टिप्पणी की.

वे बताती हैं, ”साल 2004 में ठाकरे ने घर में जावेद मियांदाद को आमंत्रित किया था जहां उनके बेटे ने जावेद का ऑटोग्राफ भी लिया था. ठाकरे को खेल से कोई आपत्ति नहीं थी. वे मानते थे कि पाकिस्तान के लोग शांति चाहते हैं, राजनीति ने सब खराब कर रखा है. इतना ही नहीं ठाकरे ने जावेद मियांदाद के खेलने की शैली की भी तारीफ की थी.”

सुजाता का कहना है कि फिल्म के एक दृश्य में बाल ठाकरे को जावेद मियांदाद के साथ बंद कमरे में बात करते दिखाया गया है, ऐसे में यह कह पाना मुश्किल है कि बंद कमरे में दोनों के बीच ऐसी कोई बातचीत हुई थी या नहीं, लेकिन सार्वजनिक तौर पर जो भी बातचीत हुई उसमें तारीफ के अलावा और कुछ नहीं था.

कुल मिला कर फिल्म ‘ठाकरे’ चुनावी माहौल में राजनीति और वोटों पर कितना असर पैदा करेगा, यह तो आयने वाला वक्त ही बताएगा. इतना तय है कि यह फिल्म एक ओर जहां शिवसेना में नया जोश भरेगा, वहीं विरोधियों को थोड़ा विचलित तो जरूर करेगा. जहां तक दर्शकों का सवाल है, बाला साहबबाला साहब की शख्सियत को जानने की इच्छा उन्हें सिनेमा घरों की खिड़कियों तक खींच लाने में सफल हो सकती है.

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