*कल्याण कुमार सिन्हा-
बैंकिंग तंत्र की विफलता : एबीजी शिपयार्ड के ताजे और सबसे बड़े बैंक घोटाले (Bank Fraud) की खबर सामने आते ही सबसे मौजूं प्रतिक्रिया भारतीय किसान युनियन के बड़े किसान नेता राजेश सिंह टिकैत की है. अपने ट्वीट में उन्होंने बड़े सधे शब्दों में देशवासियों को आगाह किया है. उन्होंने कहा है, “हिजाब पर नहीं, देश में बैंकों के हिसाब (घोटालों) पर आंदोलन करो मेरे प्यारे देशवासियों. यही हालात रहे तो देश बिकते देर नहीं लगेगी और हम ऐसा होने नहीं देंगे.”
हिजाब पर नहीं, देश में बैंकों के हिसाब (घोटालों) पर आंदोलन करो मेरे प्यारे देशवासियों। यही हालात रहे तो देश बिकते देर नहीं लगेगी और हम ऐसा होने नहीं देंगे।
— Rakesh Tikait (@RakeshTikaitBKU) February 13, 2022
लीकर किंग से किंगफिशर हवाई बेड़े के मालिक बनने बाद आईपीएल 20-20 क्रिकेट की दुनिया में उधार के पैसों से चमक बिखेरते विजय माल्या की बैंकों को 9 हजार करोड़ रुपए का चूना लगा कर देश से फरार हो जाने की वारदात से बैंकिंग फ्रॉड की दास्तां शुरू हुई. इसके साथ ही बड़े Bank Fraud में वीडियोकॉन का मामला और पीएमसी बैंक घोटाला भी सामने आया. जेवरात कारोबारी नीरव मोदी ने पीएनबी बैंक को 13 हजार 500 करोड़ का झटका देकर देश को बॉय कह गया. इसके साथ ही उसके मित्र मेहुल चौकसी भी चूना लगा कर फरार होने वाले की लिस्ट में जुड़ गया. फिर तो यह लिस्ट लंबी ही होती दिखने लगी.
In the Modi era, ₹5,35,000 crore bank fraud has been done so far – In 75 years, there has never been such rigging with the money of the people of India. pic.twitter.com/IHjrOjtKYC
— james joseph (@jamesjo88474778) February 13, 2022
पिछले सात वर्षों में ₹5,35,000 करोड़ रुपए के Bank Fraud
देश में क्रिकेट आईपीएल के जनक माने जाने वाले ललित मोदी तो पहले से चर्चा में थे ही. जतिन मेहता और चेतन संदेसना जैसे उद्योगपतियों द्वारा बैंकों से भारी कर्ज लेकर देश से रफूचक्कर हो जाने वालों की इस लिस्ट को एबीजी शिपयार्ड के ऋषि अग्रवाल और उसके निदेशक मंडल के सदस्य तो देश के 28 बैंकों को 22 हजार 824 करोड़ रुपए के साथ फरार हो कर चार चांद लगा गए. यह मामला 2019 का है, लेकिन अभी-अभी ताजा-ताजा सामने आया है. आंकड़े बताते हैं कि पिछले सात वर्षों में ₹5,35,000 करोड़ रुपए के Bank Fraud सामने आए हैं.
स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने नवंबर 2019 में दर्ज कराई शिकायत
इस एबीजी शिपयार्ड को दो दर्जन बैंकों के कंसोर्टियम ने कर्ज दिया था. लेकिन खराब प्रदर्शन की वजह से नवंबर 2013 में उनका खाता एनपीए बन गया. कंपनी को उबारने की कई कोशिशें हुई, लेकिन सफल नहीं रहीं. हालांकि आईसीआईसीआई बैंक इस कंसोर्टियम का नेतृत्व कर रहा था. लेकिन सबसे बड़े सार्वजनिक बैंक होने के नाते सीबीआई में कंपनी के खिलाफ स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने पहली बार नवंबर 2019 में शिकायत दर्ज कराई थी. इसके बाद एक और शिकायत दिसंबर 2020 में दर्ज की गई.
एबीजी इंटरनेशनल प्राइवेट लिमिटेड के साथ ही एबीजी शिपयार्ड के पूर्व सीएमडी ऋषि कमलेश अग्रवाल, एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर संथानम मुथुस्वामी और डायरेक्टर, अश्विनी कुमार, सुशील कुमार अग्रवाल और रवि विमल नेवतिया के खिलाफ भी आपराधिक साजिश, धोखाधड़ी और भरोसा भंग करने का केस दर्ज कराया गया है. ताजा कार्रवाई पिछले शनिवार को शुरू हुई है. इस कंपनी के साथ ही डायरेक्टरों के सूरत, भरूच, मुंबई और पुणे स्थित ठिकानों पर सीबीआई ने छापे मारे. इन ठिकानों से कई अहम दस्तावेज बरामद किए गए हैं.
एबीजी शिपयार्ड लिमिटेड का कामकाज गुजरात में होता है. कंपनी गुजरात के दाहेज और सूरत में पानी के जहाज बनाने और उनकी मरम्मत का काम करती है. अब तक कंपनी 165 जहाज बना चुकी है. इनमें से 46 विदेशी बाजारों के लिए थे.
इस मामले में शिकायत दर्ज कराने में देरी के आरोप पर भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) ने कहा कि एबीजी शिपयार्ड का अकाउंट एनसीएलटी की प्रक्रिया के तहत लिक्विडेशन के दौर से गुज़र रहा है. बैंकों से धोखाधड़ी के मामले में कंपनी के खिलाफ स्टेट बैंक ने पहली बार नवंबर 2019 में शिकायत दर्ज कराई थी. इसके बाद एक और शिकायत दिसंबर 2020 में की गई. बैंक ने कहा है कि शिकायत दर्ज कराने में कोई देरी नहीं हुई है.
कदम उठाने में इतनी देर क्यों..?
लेकिन यह सवाल अनुत्तरित है कि सीबीआई ने इसमें कदम उठाने में इतनी देर क्यों की. सफाई में यह कहा जा सकता है कि इस बीच छानबीन चल रही थी. लेकिन जब ऐसे गंभीर मामले में, जिसमें इतनी बड़ी रकम के साथ अपराधी देश छोड़कर भाग चुके हों, जांच और छानबीन में दो वर्षों से अधिक समय लग जाना, सवाल तो खड़े करता ही है. जबकि स्टेट बैंक ने इस मामले की फोरेंसिक जांच के बाद ही सीबीआई में शिकायत दर्ज कराया है.
स्टेट बैंक की शिकायत में कहा गया गया है कि विश्वव्यापी मंदी की वजह से कंपनी का कारोबार चरमरा गया. कमोडिटी की मांग में आई गिरावट से शिपिंग इंडस्ट्री को झटका लगा है. कंपनी के जहाज बनाने के कई ठेके रद्द हो गए. लिहाजा जहाज बनने के बाद भी इन्वेंट्री में पड़े रह गए. इससे कंपनी के पास वर्किंग कैपिटल की कमी हो गई और यह घाटे में आ गई.
इसके बाद से कंपनी डूबने लगी. पानी के जहाज बनाने की इंडस्ट्री में 2015 से ही मंदी है. इसका फायदा उठाते हुए ऋषि अग्रवाल सहित कंपनी के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स बैंकों से मिले उधार की राशि का बंदरबांट और विदेशों में ट्रांसफर कर धीरे-धीरे माल्या की राह अपनाते हुए अब तक के सबसे बड़े बैंक फ्रॉड के जनक बन गए.
Bank Fraud के मामले साल दर साल बढ़ रहे..!
आरबीआई के आंकड़ों की मानें तो साल दर साल Bank Fraud के मामले तो बढ़ ही रहे हैं, साथ ही इस कारण होने वाला नुकसान भी बढ़ रहा है. इससे देश के बैंकों के सिर पर आर्थिक स्थायित्व कम होने का खतरा भी बढ़ रहा है. थोड़े-थोड़े अंतराल में Bank Fraud का कोई न कोई मामला खबरों की सुर्खियां बन रहा है. इससे देश की बैंकिंग व्यवस्था से आम लोगों का भरोसा टूट रहा है. साथ ही बैंकों, बैंकों के ऑडिटर्स, क्रेडिट रेटिंग संस्थाएं और बैंकों की नियामक संस्था रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के ऊपर भी ये एक बड़ा सवाल है कि धोखाधड़ी का 90 फीसदी हिस्सा सरकार के स्वामित्व वाले बैंकों में क्यों होता है. 2013-14 के बाद से केवल पांच वर्षों में इस तरह के धोखाधड़ी के मामलों में चार गुना वृद्धि हुई है. तो यह सवाल उठना लाजमी है कि आखिर बैंकों में धोखाधड़ी की घटनाएं इतनी क्यों बढ़ रही हैं?
सूत्रों पता चलता है कि चाहे छोटी धोखाधड़ी हो या बड़ी, दोनों ही सिस्टम की कमजोरियों का अनुचित लाभ उठाने में सक्षम रही हैं. रिजर्व बैंक (आरबीआई) के पास इस तरह की धोखाधड़ी से बचने को लेकर प्रारंभिक चेतावनी संकेत (ईडब्ल्यूएस) प्रणाली मौजूद है. लेकिन जैसा कि नीरव मोदी के मामले में हुआ, बैंक हमेशा इसका फायदा नहीं उठा पाते. इसका कारण संभवतः बैंकों के बड़े अधिकारियों की भी मिलीभगत है.
बैंक के अधिकारी, लेनदारों के वकीलों या सीए के साथ सांठगांठ
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट, बेंगलुरु और बॉम्बे की पिछले वर्षों की शोध में मिलीभगत की बातें सामने भी आ चुकी हैं. शोध में पता चला कि बड़े लोन एडवांस में धोखाधड़ी करना आसान नहीं होता और फिर भी ये होते हैं, क्योंकि बैंक के अधिकारी लेनदारों या कभी-कभी तीसरे पक्ष जैसे कि वकीलों या चार्टर्ड एकाउंटेंट (सीए) तक के साथ सांठगांठ कर लेते हैं.
अध्ययन में पाया गया कि सार्वजनिक बैंकों में अधिकारियों सहित ऑडिटर्स को अपेक्षाकृत कम वेतन दिया जाता है. जिसका मतलब ये हुआ कि वे अपने कामों को करने का एक हद तक ही प्रयास ही करते हैं. साथ ही, उनकी ट्रेनिंग का स्तर और कई मानकों पर उनके कौशल भी कम हैं. नतीजतन, आम तौर पर ऑडिटर्स धोखाधड़ी की शुरुआती संकेतों पर ध्यान नहीं देते, जो ऐसी किसी भी संभावना को पहचानने में मदद कर सकते हैं.
मोदी काल में अब तक ₹5,35,000 करोड़ के बैंक फ़्रॉड हो चुके हैं- 75 सालों में भारत की जनता के पैसे से ऐसी धांधली कभी नहीं हुई।
लूट और धोखे के ये दिन सिर्फ़ मोदी मित्रों के लिए अच्छे दिन हैं।#KiskeAccheDin
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) February 13, 2022
एबीजी इंटरनेशनल प्राइवेट लिमिटेड के साथ ही एबीजी शिपयार्ड की धोखाधड़ी का मामला सामने आते ही विपक्ष भी हमलावर हो गया है. कांग्रेस का आरोप और सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी की यह सफाई कि यह लोन कांग्रेस के कार्यकाल में दिया गया था, दोनों कोई मायने नहीं रखते. लेकिन, अब बड़ी जरूरत यह है बैंकों के माध्यम से देश की जनता की हजारों नहीं, लाखों करोड़ रुपए की वापसी हो, इन अपराधियों को सजा दिलाने की प्रक्रिया में तेजी लाने के उपाय हों और सबसे अहम बात यह कि देश के बैंकिंग तंत्र में सुधार के साथ उसे जवाबदेह बनाया जाए.
इसके साथ ही, सरकार को धोखेबाजों के साथ मिलीभगत करने वाले बैंक कर्मचारियों के साथ-साथ बैंक खातों के आंकड़ों में धोखाधड़ी करने वाला तीसरा पक्ष जैसे कि चार्टर्ड एकाउंटेंट, वकील, ऑडिटर्स और रेटिंग एजेंसी को कठोर से कठोर सजा मिले, इसका भी प्रबंध करना चाहिए.
किसान नेता राकेश टिकैत की Bank Fraud को लेकर चिंता और देशवासियों को आगाह करने वाली उनकी प्रतिक्रिया कांग्रेसी नेताओं के आरोप और सरकारी पार्टी भाजपा के जवाब से कहीं ज्यादा महत्व की है. उनका यह कहना कि (देश को बेचने के सन्दर्भ में) “…और हम ऐसा होने नहीं देंगे.” मायने रखते हैं. लेकिन, उदाहरण के तौर पर दो-चार लाख की बात छोड़ दें, देख जा रहा है कि 20-30 हजार रुपए का मामूली कर्ज लेने वाले किसान हों, व्यवसायी हों या आम आदमी; कर्ज के एक-दो किस्त चुकाने में विलंब पर बैंक उन पर चढ़ बैठता है. लेकिन लाखों-करोड़ों और सैकड़ों-हजारों करोड़ के कर्ज लेकर वर्षों चुप बैठ जाने वाले बड़ी कंपनियों के विरुद्ध बैंक उदार बना रहता है. यह देश की अर्थव्यवस्था के लिए भी कम घातक नहीं है. यह चिंता विषय है.
लगे हाथ, अब एक और बड़ी समस्या की चर्चा :
अब मध्यम वर्ग के उन के उन कर्जदारों की सामने आने वाली है, जिनके लिए पिछले कुछ वर्ष पहले बैंकों से आवास-ऋण लिए और कोरोना की विभीषिका में लॉकडाउन के कारण यह कर्ज चुकाना मुश्किल हो गया. हालांकि सरकार और बैंकों ने उन्हें कर्ज की किस्तें चुकाने में लंबी छूट की राहत तो दे दी है, लेकिन ब्याज पर कोई राहत नहीं दी है. इनमें से निजी क्षेत्र में नौकरी करने वाले अधिकांश ऐसे लोग भी हैं, जिनकी कंपनियों ने उन्हें वेतन देना बंद कर दिया है, या नौकरी से ही निकाल दिया है. ऐसे लोगों की संख्या बहुत बड़ी हो सकती है. इनमें से अधिकांश ऐसे लोगों की संख्या भी बहुत बड़ी हो सकती है, जिन्हें और कोई दूसरी नौकरी नहीं मिल सकी है और वे बहुत कठिन हालात में जीवन बसर कर रहे हैं. ऐसे में देखना है कि इन लोगों को सरकार और बैंकों से कोई राहत मिलता भी है या नहीं..!