हिन्दू और हिदुत्व

हिन्दू और हिदुत्व से अब कितना परहेज करेगा विपक्ष..?

विचार विशेष
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उ.प्र.समेत अन्य विधानसभा चुनावों के लिए कांग्रेस और विपक्ष की रणनीति के सन्दर्भ में

-कल्याण कुमार सिन्हा
हिन्दू और हिदुत्व को अपनी तरह से परिभाषित करने का विपक्ष का दांव आगामी उत्तर प्रदेश सहित पांच राज्यों के चुनाव में कितना कारगर रहेगा, यह तो वक्त ही बताएगा. लेकिन देश में हिंदुत्ववादी शक्तियों ने जिस आक्रात्मकता से कदम बढ़ाना शुरू किया है, उससे नहीं लगता कि उन्हें रोकने के विपक्ष के प्रयास काफी हैं. संभावना यह भी जताई जा रही है कि कहीं उनका यह प्रयास उलटा ही न पड़ जाए.

विपक्ष, खासकर कांग्रेस और उसके नेता राहुल गांधी पिछले दिनों हिन्दू और हिदुत्व को लेकर जो बयानबाजी करते आए हैं, उसमें कांग्रेस और कुछ अन्य दलों को उनकी आक्रामकता नजर आई है. और, उन्हें लग रहा है कि राहुल की यह आक्रामकता भारतीय जनता पार्टी और हिंदुत्ववादी शक्तियों को बगलें झांकने पर मजबूर कर सकती है.

उनकी ऐसी आक्रात्मकता से उत्साहित उत्तर प्रदेश में सक्रिय हो उठे विभिन्न शैक्षणिक और अन्य विविध क्षेत्रों से जुड़े एक हिंदुत्व विरोधी समूह ने विपक्षी दलों के नेताओं को पत्र लिख कर संवैधानिक और अर्द्धसंवैधानिक संस्थाओं की गिरावट पर चिंता जताई है. इसके साथ ही समूह ने केंद्र और राज्य में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के ‘भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाने के खुले और छिपे एजेंडे’ को नाकाम करने के लिए सभी विपक्षी पार्टी को साथ आने की सलाह दी है. साथ ही कहा है कि इस ‘संविधान विरोधी ताकत’ को हराने के लिए एक मजबूत चुनावी रणनीति विकसित करनी चाहिए.

समूह ने देश में नागरिक अधिकारों पर हो रहे हमले और नफरत के माहौल को भयानक बताते हुए ‘इस्लामोफोबिया के साथ अल्पसंख्यक और एससी-एसटी विरोधी भावनाएं भड़काने’ के भाजपा के प्रयासों को सामाजिक एकता को खतरा बताया है. यह समूह सम्भवतः उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को अखिलेश के सपा गठबंधन से अलग रखे जाने से व्यथित जान पड़ता है.

वैसे उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव की सपा अभी से अपनी जनसभाओं में भारी भीड़ खींचने में सफल हो रही है. उसे कांग्रेस को साथ लेकर चलने में कोई दिलचस्पी नहीं है. प्रियंका गांधी वाड्रा के प्रयासों को अखिलेश दरकिनार कर चुके हैं. उन्होंने छोटे दलों को अपने साथ समेटना शुरू कर दिया है. वे काशी-मथुरा एवं अयोध्या के साथ विकास के मामलों में भले ही आक्रामक हैं, लेकिन हिन्दू और हिदुत्व पर बड़ी चतुराई से सीधे कुछ बोलने से बच रहे हैं. उन्होंने जिन्ना पर फिसली अपनी जुबान पर काबू भी कर ली है.

लेकिन कांग्रेस के राहुल गांधी इस संवेदनशील मुद्दे पर अपनी भड़ास निकालने से बाज नहीं आ रहे. कांग्रेस और राहुल दोनों ही चुनावी रणनीति में विफलता से सबक सीखने से परहेज करते नजर आते हैं. उन्होंने पश्चिम बंगाल के चुनाव में तृणमूल कांग्रेस और ममता बनर्जी की सफल रणनीति से भी कुछ सीखना नहीं आया है. उस चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के हुंकार और प्रचंड चुनावी रणनीति का सामना उन्होंने कैसे किया, वह यह भी समझना नहीं चाहते. ममता ने खुद को ब्राह्मण और हिन्दू घोषित किया, चंडी पाठ भी कर गईं. लेकिन उन्होंने हिन्दू या हिंदुत्व पर कोई प्रहार नहीं किया. वे अपनी राजनीतिक परिपक्वता का परिचय देकर फिर से सत्ता प्राप्त करने में सफल रहीं.

हिन्दू और हिदुत्व को भारतीय जनता पार्टी धीरे-धीरे भारतीय राजनीति केंद्र में स्थापित करती जा रही है. अपने विकास कार्यक्रमों के साथ उसने इस मुद्दे को बारीकी से पिरोना शुरू कर दिया है. पश्चिम बंगाल में ममता के सतर्क कदमों के कारण वह भले ही सत्ता हासिल करने में नाकामयाब रही, लेकिन उसने वामपंथियों के साथ कांग्रेस के तम्बू तो लगभग उखाड़ ही डाले हैं. पूर्वोत्तर राज्यों में अपनी धमक दिखाने के साथ ही भाजपा दक्षिण के केरल में लगातार अपनी स्थिति मजबूत कर रही है.

भाजपा के हिन्दू और हिंदुत्व के साथ मजबूती से जुडी हिंदुत्ववादी शक्तियों ने भी कांग्रेस और अन्य विपक्षियों के विरोधी मंसूबे के खिलाफ अपनी धमक दिखानी शुरू कर दी है. उत्तर प्रदेश के चित्रकूट में पिछले 14 दिसंबर को ‘हिन्दू एकता महाकुंभ’ का आयोजन कर जो कहा और किया गया, उससे यह स्पष्ट संकेत मिला है कि वे भाजपा के एक-एक हिंदुत्ववादी एजेंडे के साथ हैं.

महाकुंभ की मेजबानी और अगुवाई जगद्गुरु रामभद्राचार्य ने की. हिंदू एकता, मठ-मंदिरों पर सरकारी नियंत्रण के दुष्परिणाम, अयोध्या-काशी के बाद मथुरा, लव जिहाद, धर्मांतरण, समान नागरिक संहिता, जनसंख्या नियंत्रण कानून, गोरक्षा और राष्ट्रवाद समेत वे सभी 12 बिंदु महाकुंभ के एजेंडे में थे, जो भाजपा के एजेंडे में शामिल हैं. संत वक्ताओं ने ज्यादातर इन्हीं बिंदुओं पर संबोधन दिया.

साधु-संतों की उपस्थिति में विभिन्न हिन्दू संगठनों के इस महाकुंभ का एजेंडा भले ही राजनीति से परे रहा हो, लेकिन परोक्ष रूप से इसे आगामी उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के पूर्व भाजपा के लिए माहौल बनाने में सहायक ही माना जाएगा. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत की उपस्थिति ने महाकुंभ का महत्व और बढ़ा दिया. उन्होंने तो धर्मांतरण के मुद्दे को अब एक नई ताकत ही दे दिया है. उन्होंने घोषणा की है कि अब न केवल हिन्दुओं का धर्मांतरण रोकेंगे, बल्कि विभिन्न कारणों से दूसरे धर्म में चले गए हिन्दुओं की घर-वापसी भी कराएंगे.

इधर संसद में भी देश की ऐतिहासिक और धार्मिक स्थलों का संरक्षण राष्ट्रीय पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग से मांग भी इसी हिन्दू और हिदुत्व एजेंडे के अनुरूप उठाई जाने लगी है. इसमें देश के सभी जिलों के प्राचीन स्थलों के संरक्षण की मांग शामिल है.

इतना ही नहीं, स्कूली पुस्तकों में सुधार के लिए बनी संसदीय समिति ने भी सरकार को सुझाव दया है कि स्कूल की किताबों में वेद और गीता पढ़ाएं; सिख, मराठा, जाट, गुर्जर-आदिवासियों, संथाल, मुंडा और उरांव जनजातियों का इतिहास भी पाठ्यक्रम में शामिल किए जाएं. समिति को देशभर से करीब 20 हजार सुझाव मिले थे, जिन्हें रिपोर्ट का हिस्सा बनाकर सरकार को सौंपा गया है. ये सारे सुझाव आरएसएस और देश के हिंदुत्ववादी संगठनों की मांगों से प्रेरित हैं. इन्हें क्या विपक्ष दरकिनार करने की बात कर पाएगा..?

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