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पेंशन मामले में EPFO को अवमानना केस से मिल गई राहत, फिर टली सुनवाई

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भारत में सामान्य नागरिकों को न्याय नहीं मिलता-जस्टिस रंजन गोगोई
यह भी कहा था “भारत में न्यायव्यवस्था जीर्ण-शीर्ण हो चुकी है

गुरुवार, 25 फरवरी को एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट ने ईपीएस-95 सम्बन्धी ईपीएफओ की दो एसएलपी पर सुनवाई टाल दी है. इसके साथ ही कोर्ट ने ईपीएफओ को बड़ी राहत भी दे डाली है. पेंशनरों द्वारा विभिन्न हाईकोर्ट में दायर कोर्ट की अवमानना मामलों की सुनवाई अभी नहीं हो सकेगी. सुप्रीम के दो सदस्यीय बेंच ने सुनवाई की अगली तिथि 23 मार्च 2021 निर्धारित करते हुए ईपीएफओ को यह राहत प्रदान कर दी है. पिछले करीब पौने दे वर्षों में यह पहला अवसर था जब ईपीएफओ द्वारा अपनी याचिकाओं से अटका कर रखे गए पेंशनरों के उच्च पेंशन पाने के न्यायसंगत अधिकार को दरकिनार कर सुनवाई के दिन दो सदस्यीय बेंच ने कुछ तो किया. साथ ही अगली तिथि के बाद दैनिक आधार पर सुनवाई जारी रखने की मंशा भी जाहिर की है.

*कल्याण कुमार सिन्हा-
दादा झोड़े की पीड़ा पर समीक्षात्मक टिप्पणी :
भारत के पूर्व चीफ जस्टिस और वर्तमान सांसद जस्टिस रंजन गोगोई ने अपने विरुद्ध एक केस का फैसला आने से मात्र दो दिन पूर्व ही एक कार्यक्रम में जो कुछ कहा था, वह अब पूरी तरह और अक्षरशः सत्य साबित होती नजर आ रही है. उन्होंने कहा था- “भारत में आम नागरिकों को न्याय नहीं मिलता, भारत में न्याय व्यवस्था जीर्ण-शीर्ण हो चुकी है.”

कथन सही हो जाने की आशंका…
ईपीएस-95 के पेंशनरों के सन्दर्भ में जस्टिस गोगोई के ये शब्द बहुत मायने रखते हैं. क्योंकि सुप्रीम कोर्ट में फंसी ईपीएस-95 पेंशन पुनर्विचार और एसएलपी जैसी दो-दो याचिकाओं के प्रति देश के सर्वोच्च अदालत का नजरिया उनके कथन के सही हो जाने की आशंका पैदा कर रहा है. महीनों बाद देश की सबसे ऊंची अदालत के तीन सदस्यीय की जगह दो सदस्यीय बेंच सुनवाई के लिए 25 फरवरी को बैठी भी तो सुनवाई अगले माह 23 मार्च के लिए बढ़ा दी. गनीमत है की साथ ही बेंच ने 23 मार्च के बाद दैनिक स्तर पर सुनवाई जारी रखने की मंशा जताई यही. लेकिन इसके साथ ही ईपीएफओ को बड़ी राहत देते हुए उच्च पेंशन रोके जाने को लेकर कोर्ट की अवमानना के (विभिन्न हाईकोर्ट में दायर) मामलों की सुनवाई पर रोक भी लगा दी है.

गोगोई के विरुद्ध केस बंद
अब जस्टिस गोगोई के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट ने पिछले ही गुरुवार, 18 फरवरी 2021 को जिस केस को बंद किया है, उसके बारे में जान लें- “सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व चीफ जस्टिस (CJI) रंजन गोगोई के खिलाफ यौन उत्पीड़न मामले में खुद के नोटिस (स्वत: संज्ञान) पर शुरू की गई सुनवाई गुरुवार को बंद कर दी. अदालत ने कहा कि पूर्व जस्टिस ए.के. पटनायक की जांच किसी नतीजे पर नहीं पहुंची है. उनकी रिपोर्ट के आधार पर यह केस बंद किया जा रहा है. उन्हें साजिश की जांच करने का काम सौंपा गया था…”

कोर्ट ने आगे कहा कि केस को दो साल बीत चुके हैं, ऐसे में साजिश की जांच के लिए जरूरी इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड हासिल करने की संभावना बहुत कम रह गई है. सुप्रीम कोर्ट के वकील उत्सव बैस ने जस्टिस गोगोई पर लगे यौन शोषण के आरोपों के पीछे साजिश होने का दावा किया था. उनके विरुद्ध केस दायर होने से लेकर बंद होने के बाद तक के घटनाक्रम दस्तावेजी बन गए हैं. देश की न्याय व्यवस्था और प्रशासन की गतिशीलता का यह अद्भुत उदाहरण कहा जा सकता है. (पाठकगण इस घटनाक्रम की जानकारी अलग से प्राप्त कर सकते हैं.)

विशिष्ट बनाम आम नागरिक..!
जस्टिस गोगोई के उपरोक्त कथन और उनके मामले में फैसले ने देश में “विशिष्ट बनाम आम नागरिक” को परिभाषित करने की जरूरत भी संभवतः पैदा कर दी है. वे निश्चय ही देश के आम नागरिक नहीं हैं. भारत की सर्वोच्च अदालत के चीफ जस्टिस पद से अवकाश ग्रहण करने से पूर्व उन्होंने सरकार के लिए वर्षों से सिरदर्द बने राममंदिर, राफेल, इलेक्ट्रोलर बांड, कर्नाटक के विधायक प्रकरण मामले में फैसले सुना कर सरकार को बहुत बड़ी राहत दी थी. इसके बाद राष्ट्रपति जी ने उन्हें राज्यसभा का सदस्य नामित कर दिया. अब वे सांसद हैं. उनके विरुद्ध दायर मुकदमा, चाहे वह कितना भी गंभीर क्यों न हो, संसद के उच्च सदन का सदस्य बनने से उन्हें नहीं रोक सका. इसलिए कि वे देश के आम नागरिक नहीं, विशिष्ट नागरिक हैं.

लेकिन देश के ईपीएस-95 पेंशनर्स देश के आम नागरिक हैं. उन्होंने निजी क्षेत्र अथवा अर्द्धसरकारी या सार्वजनिक क्षेत्र में सेवाएं दे कर सेवामुक्त हुए हैं. वे अपनी जिंदगी के अंतिम पड़ाव में पहुँच गए हैं और अपनी सेवा के दौरान सरकार के भविष्य निधि और पेंशन फंड में अपनी मेहनत की गाढ़ी कमाई का हिस्सा जमा कराया है. और अब वे सरकारी पेंशनरों की तरह सम्मानपूर्ण और न्यायपूर्ण पेंशन पाने के इच्छुक हैं. और वह भी सुप्रीम कोर्ट और देश के विभिन्न 6 हाईकोर्ट खास कर केरल हाईकोर्ट के फैसले के अनुरूप न्याय पाने की ही तो उनकी इच्छा है. लेकिन उनकी भविष्य निधि और पेंशन फंड के प्रबंधक ईपीएफओ (कर्मचारी भविष्य निधि संगठन) के साथ ही भारत सरकार को उनकी यह इच्छा नागवार गुजरी है. इसके साथ ही पौने दो वर्ष पूर्व केरल हाईकोर्ट और सुप्रीम के पेंशनरों के हक में दिए फैसले के विरुद्ध पुनर्विचार याचिका और एसएलपी दायर कर ईपीएस-पेंशनरों की न्यायसंगत अधिकार को दबाने का प्रयास किया है ईपीएफओ और भारत सरकार ने.

अब जस्टिस गोगोई के उस ब्रह्मवाक्य को भी याद कर लें. उन्होंने कहा है-  “भारत में आम नागरिकों को न्याय नहीं मिलता,  भारत में न्याय व्यवस्था जीर्ण-शीर्ण हो चुकी है.” ऐसे में हमारा सर्वोच्च न्यायालय भला अपने पूर्व चीफ जस्टिस के कथन को  झुठलाने की धृष्टता कैसे कर सकता है भला..! भारत सरकार और ईपीएफओ की इच्छा का सम्मान भी उसके लिए जरूरी है..! भले अपनी ही पूंछ खुद ही कुतरनी क्यों न पड़े..! यह दोनों याचिकाओं के हर महीनें कभी एक कभी दो-दो तारीखें पड़ती  अगले महीने के लिए टाली जाती रही है. इसे क्या समझा जाए..? न्याय पाने के लिए पेंशनर्स, गोगोई की तरह विशिष्ट तो नहीं बन सकते..!

तमाम अड़ंगों के बावजूद EPS 95 पेंशनरों का धैर्य चूका नहीं है. देश भर में पेंशनर्स की यह लड़ाई हर स्तर पर लड़ी जा रही है. इन्हें भी बड़े जीवट और दृढ़ इच्छाशक्ति वाले प्रवीण कोहली, दादा झोड़े, प्रकाश पाठक, प्रकाश येंडे जैसे देश भर के अनेक पेंशनर्स योद्धा का साथ है. सुप्रीम कोर्ट के 2016 के फैसले ने न्याय पाने की उन्हें हिम्मत दी है, न्याय तो अब वे लेकर ही रहेंगे…! आम नागरिकों की श्रेणी में पेंशनर भले ही आते हों, विशिष्ट तबका उनकी न्यायसंगत चाहत को अब दबा नहीं सकता,देश की न्याय व्यवस्था भी नहीं…!    

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