Voter Card को लिंक किया जाएगा Aadhar के साथ

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Voter Card

चुनाव सुधार की दिशा में सरकार की बड़ी पहल, लिंकिंग प्रक्रिया पर तेजी से काम

नई दिल्ली : चुनाव सुधार की दिशा में एक बड़ा कदम उठाते हुए केंद्र सरकार ने मतदाता पहचान पत्र (Voter Card) को आधार से लिंक करने की अनुमति दे दी है. चुनाव आयोग की सिफारिश को केंद्र सरकार ने मान लिया है. इसके लागू होते ही देशभर में फर्जी वोटरों की पहचान संभव हो जाएगी. ज्ञातव्य है कि लम्बे समय से देश में यह मांग सोशल मीडिया सहित विभिन्न माध्यमों से यह मांग उठती रही है.  
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चुनाव आयोग के सूत्रों के अनुसार सरकार 12 अंकों के आधार नंबर के साथ Voter Card को लिंकिंग की प्रक्रिया पर तेजी से काम कर रही है. अंग्रेजी दैनिक ‘टाइम्स ऑफ इंडिया‘ (TOI) के अनुसार इसके लिए आधार अधिनियम में संशोधन के लिए जल्द ही एक कैबिनेट नोट ले जाया जाएगा.
 
TOI के अनुसार कानून मंत्रालय ने सहमति जता दी है. चुनाव प्रक्रिया में सुधार के लिए आधार अधिनियम में संशोधन करने को कहा गया है. इससे फर्जी Voter Card की भी पहचान करके उसे रद्द किया जा सकेगा. साथ ही प्रवासी मतदाताओं को रिमोट वोटिंग अधिकार देने में आसानी होगी. चुनाव सुधारों पर चर्चा के लिए चुनाव आयोग और मंत्रालय की मंगलवार को हुई बैठक में तय हुआ कि चुनाव प्रक्रिया इस तरह से बनाया जाए कि एक वोटर केवल एक जगह पर ही अपना वोट दे सके. 

क्या होगा वोटर कार्ड के आधार से लिंक होने पर?
उदाहरण के तौर पर किसी शख्स का उसके गांव के वोटर लिस्ट में नाम है और वह लंबे समय से शहर में रह रहा है. वह शख्स शहर के वोटर लिस्ट में भीअपना नाम अंकित करवा लेता है. फिलहाल दोनों जगहों पर उस शख्स का नाम वोटर लिस्ट में अंकित रहता है. लेकिन आधार से लिंक होते ही केवल एक वोटर का नाम एक ही जगह वोटर लिस्ट में हो सकेगा. यानी एक शख्स केवल एक जगह ही अपना वोट दे पाएगा.  

चुनाव प्रक्रिया में 40 सुधारों पर हुई चर्चा
चुनाव आयोग के शीर्ष पदाधिकारियों और कानून सचिव के बीच हुई बैठक में मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा ने कानून मंत्रालय को पोल पैनल की ओर से प्रस्तावित सुधारों के कार्यान्वयन को तेजी से लागू करने पर जोर दिया. इस बैठक में 2004-05 से पहले तक प्रस्तावित सुधारों पर भी चर्चा हुई. कानून सचिव नारायण राजू ने मतदान पैनल को आश्वासन दिया कि मंत्रालय चुनाव आयोग द्वारा प्रस्तावित 40 चुनावी सुधारों का अध्ययन कर रहा है.

वोटरों की डिटेल कई स्तर पर सुरक्षित रखने का निर्देश
मालूम हो कि चुनाव आयोग ने कानून मंत्रालय को जनप्रतिनिधि एक्ट में संशोधन का प्रस्ताव दिया था. इसमें कहा गया है कि वोटर Card के लिए आधार नंबर देना अनिवार्य बनाया जाएगा. काननू मंत्रालय ने प्रस्ताव को मंजूरी देते हुए डेटा को कई स्तर पर स्तर पर सुरक्षित करने के निर्देश दिए हैं.

इससे पहले चुनाव आयोग ने कानून मंत्रालय को अगस्त 2019 में Voter ID Card को आधार से लिंक करने का प्रस्ताव भेजा था, जिसे कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने मान लिया था. आयोग ने प्रस्ताव में कहा था कि Voter Card को आधार से लिंक करने का कानूनी आधार उन्हें दिया जाए.

Voter Card बनवाने के लिए आधार नंबर हो अनिवार्य
चुनाव आयोग ने ये भी स्पष्ट किया था कि यह वोटर कार्ड बनवाने के लिए नए और पुराने दोनों कार्ड पर लागू होने चाहिए. यानी अगर कोई नया वोटर कार्ड बनवाता है तो उसे आधार नंबर बताना होगा. साथ ही अगर किसी का पुराना वोटर कार्ड है तो उसे अपने आधार नंबर से लिंक कराना होगा. ऐसा नहीं करने पर उस शख्स का नाम वोटर लिस्ट से हटा दिया जाएगा.

फर्जी वोटरों को रोकने का सही तरीका
आयोग की दलील है कि एक ही मतदाता के एक से अधिक मतदाता पहचान पत्र बनवाने की समस्या के समाधान के लिए इसे आधार से जोड़ना ही एकमात्र विकल्प है. मंत्रालय ने आयोग की इस दलील से सहमति जताते हुये आधार के डाटा को विभिन्न स्तरों पर संरक्षित करने की अनिवार्यता का पालन सुनिश्चित करने को कहा है.

बैठक में आयोग ने मतदाता बनने की अर्हता के लिये उम्र संबंधी प्रावधानों में भी बदलाव का सुझाव दिया है. मौजूदा व्यवस्था में प्रत्येक साल की एक जनवरी तक 18 वर्ष की आयु प्राप्त करने वालों को मतदाता बनने का अधिकार मिल जाता है. आयोग ने उम्र संबंधी अर्हता के लिए एक जनवरी के अलावा साल में एक से अधिक तारीखें तय करने का सुझाव दिया है.

विधानसभा की तरह विधान परिषद चुनाव प्रचार खर्च की सीमा हो
उल्लेखनीय है कि आयोग के प्रशासनिक मामले सीधे तौर पर विधि मंत्रालय के तहत आते हैं. चुनाव में गलत हलफनामा पेश करने के बारे में मौजूदा व्यवस्था में दोषी ठहराये जाने पर उम्मीदवार के खिलाफ आपराधिक कानून के तहत धोखाधड़ी का ही मामला दर्ज होता है. आयोग ने गलत हलफनामा देकर चुनाव जीतने वाले उम्मीदवार की सदस्यता समाप्त करने का प्रस्ताव दिया है.

एक अन्य प्रस्ताव में चुनाव आयोग ने विधानसभा चुनाव की तर्ज पर विधान परिषद के चुनाव में भी चुनाव प्रचार खर्च की सीमा तय करने की पहल की है. इसके अलावा आयोग ने मंत्रालय से मुख्य चुनाव आयुक्त की तर्ज पर दो चुनाव आयुक्तों को भी संवैधानिक संरक्षण देने के पुराने प्रस्ताव पर विचार करने का अनुरोध किया है.

उल्लेखनीय है कि विधि मंत्रालय के अनुमोदन पर मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति राष्ट्रपति करते हैं. मुख्य चुनाव आयुक्त को संसद द्वारा महाभियोग के माध्यम से ही पद से हटाया जा सकता है. जबकि चुनाव आयुक्तों को राष्ट्रपति, मुख्य चुनाव आयुक्त की सिफारिश पर हटा सकते हैं. विधि आयोग ने मार्च 2015 में चुनाव सुधारों पर पेश अपनी रिपोर्ट में दोनों चुनाव आयुक्तों को भी संवैधानिक संरक्षण प्रदान करने का प्रस्ताव दिया था.

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