कृषि क्षेत्र की रफ्तार धीमी, विकास दर पर भी पड़ने वाला है असर

सरकार और सत्तारूढ़ दल के लिए अब वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में ही देना है हिसाब और जवाब नई दिल्ली : केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (सीएसओ) द्वारा जारी चालू वित्त वर्ष के लिए जीडीपी के पूर्वानुमान चिंतित करने वाले और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की चिंता की भी पुष्टि करने वाले हैं. इसकी ओर संघ लगातार सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी को आगाह करता आ रहा है. किसानों की आय दोगुनी करने के लक्ष्य की राह में बनेगी बाधा शुक्रवार को जारी इस रिपोर्ट में सीएसओ ने बताया है कि कृषि क्षेत्र की धीमी रफ्तार के चलते न सिर्फ विकास दर धीमी पड़ी है, बल्कि यह किसानों की आय दोगुनी करने के सरकार के लक्ष्य की राह में बाधा बन सकती है. आधी से अधिक आबादी की आजीविका चलती है कृषि क्षेत्र से यद्यपि कृषि क्षेत्र का योगदान जीडीपी में कम है, तथापि आधी से अधिक आबादी की आजीविका इस क्षेत्र से चलती है. अगर कृषि का प्रदर्शन अच्छा रहता है तो इसका लाभ अर्थव्यवस्था के दूसरे क्षेत्रों को भी मिलता है. इससे ग्रामीण क्षेत्रों में मांग बढ़ती है, जिससे अंतत: निर्माण क्षेत्र को फायदा होता है और औद्योगिक गतिविधियों में तेजी आती है. पिछले तीन वर्षों की तुलना में जीडीपी भी 1 से 0.5 फीसदी कम रहने का अनुमान चालू वित्त वर्ष में कृषि और संबद्ध क्षेत्रों की वृद्धि दर भी मात्र 2.1 प्रतिशत रहने का अनुमान है, जबकि पिछले वित्त वर्ष में यह 4.9 प्रतिशत थी. उल्लेखनीय है कि सीएसओ की ओर से जारी किए गए चालू आंकड़ों के अनुसार वित्त वर्ष (2017-18) में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 6.5 फीसद रहने का अनुमान जताया गया है, जो पिछले तीन वर्षों की तुलना में 1 से 0.5 फीसदी कम है. कृषि, वानिकी, मत्स्य क्षेत्र की वृद्धि दर काफी कम रहने का अनुमान सीएसओ के अनुसार कृषि, वानिकी और मत्स्य क्षेत्र की वृद्धि दर पिछले साल के मुकाबले काफी कम रहने का अनुमान है. इसका मतलब यह है कि कृषि क्षेत्र संकट से उबर नहीं पा रहा है. वैसे बीते छह साल में सिर्फ दो साल 2013-14 और 2016-17 ही ऐसे हैं, जब कृषि क्षेत्र की वृद्धि दर थोड़ी बेहतर रही थी. अन्यथा बीते छह साल में से चार साल ऐसे रहे हैं, जब कृषि की विकास दर काफी कम रही है. लक्ष्य हासिल करना होगा कठिन कृषि और संबद्ध क्षेत्र की वृद्धि दर में सुस्ती इसलिए बड़ी चिंता का विषय है, क्योंकि सरकार ने 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का लक्ष्य रखा है. ऐसे में यदि कृषि और संबद्ध क्षेत्र की वृद्धि तेज नहीं हुई तो यह लक्ष्य हासिल करना कठिन हो सकता है. अगले वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में ही देना होगा हिसाब हालांकि अभी यह लक्ष्य हासिल करने के लिए चार साल बचे हैं. लेकिन सरकार और सत्तारूढ़ दल के लिए अब वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव का समय एक साल से कुछ ही अधिक बचा है, जब उसे देश के सामने अपना हिसाब और जवाब देना है. ऐसी स्थिति में सरकार कोअब कृषि क्षेत्र की स्थिति सुधारने के लिए आगामी आम बजट में उपाय ख़ास करने होंगे.

देश के विश्वविद्यालयों और कालेजों की नौकरियों पर डाका, आधार लिंकिंग से हुआ खुलासा

नई दिल्ली : नौकरियों पर डाका...!... वह भी देश के विश्वविद्यालयों और कालेजों में... यह चौंकाने वाली खबर दी है केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावडेकर ने. उन्होंने कल शुक्रवार को यहां बताया कि देश के विश्वविद्यालयों और कालेजों में करीब 80 हजार ऐसे प्रोफेसर नौकरी कर रहे हैं, जो एक या दो जगह नहीं, बल्कि चार-चार कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में नौकरियां कर रहे हैं. सत्यापन और आधार लिंकिंग से हुआ खुलासा ये प्रोफेसर सभी जगह से वेतन भी ले रहे हैं. इसका खुलासा तब हुआ, जब देश भर के विश्वविद्यालयों और कालेजों में पढ़ा रहे शिक्षकों के सत्यापन (वेरीफिकेशन) किया गया और उन्हें आधार से लिंक किया गया. केंद्रीय मंत्री ने बताया कि मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने इसे गंभीरता से लिया है और ऐसे शिक्षकों की पहचान करके उनके खिलाफ जल्द ही कड़ी कार्रवाई करने के निर्देश हमने दिए हैं. 15 लाख में से 12.50 लाख शिक्षकों का सत्यापन और आधार लिंकिंग जावडेकर ने शुक्रवार को आल इंडिया सर्वे ऑन हायर एजुकेशन (एआईएसएचई) की वर्ष 2016-17 की रिपोर्ट जारी करने के दौरान यह जानकारी दी. उन्होंने बताया कि मौजूदा समय में देश भर के विश्वविद्यालयों और कालेजों में करीब 15 लाख शिक्षक कार्यरत हैं, इनमें करीब 12.50 लाख शिक्षक ऐसे हैं, जो अब तक आधार से जुड़ चुके हैं. अर्थात करीब 85 फीसदी प्राध्यापकों का सत्यापन हो चुका है. बाकी शिक्षकों को भी जल्द से जल्द आधार से लिंक करने की तैयारी चल रही है. उन्होंने बताया कि करीब 80 हजार ऐसे प्रोफेसर भी मिले हैं, जो एक साथ कई जगहों पर पढ़ा रहे हैं और इन सभी जगहों से वेतन भी ले रहे हैं. एक सवाल के जवाब में जावडेकर ने कहा कि जनता का पैसा है, इसे इस तरीके से लूटने नहीं दिया जाएगा. ऐसे लोगों पर कार्रवाई होगी. हालांकि उन्होंने कहा कि ऐसे सारे शिक्षक राज्यों के विश्वविद्यालयों के हैं. इनमें से कोई भी शिक्षक केंद्रीय विश्वविद्यालयों का नहीं है.

संघ ने भाजपा को फिर चेताया : डूब सकती है 2019 में नैया

नई दिल्ली : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने एक बार फिर भाजपा को आगाह किया है कि यदि नीतियों में जल्द सुधार नहीं हुए तो 2019 की नैया डूब भी सकती है. किसान और बेरोजगारी की समस्या की ओर संघ ने ख़ास कर इशारा किया है. 'टेलीग्राफ' की रिपोर्ट के अनुसार संघ के विचारकों द्वारा भाजपा और केंद्र सरकार को किसानों और कृषि की बढ़ती समस्या के साथ ही सभी स्तरों पर नौकरी के मुद्दे पर बार-बार आगाह किया जा रहा है. संघ के एक प्रमुख नेता ने 'टेलीग्राफ' से कहा कि यदि समय रहते भाजपा ने हमारी चेतावनियों पर ध्यान दिया होता तो गुजरात में पार्टी की इतनी बुरी स्थिति नहीं होती. युवा वर्ग में बढ़ती जा रही है निराशा और नाराजगी उल्लेखनीय है कि गुजरात में भाजपा भले ही सरकार बनाने में सफल रही, लेकिन पार्टी के ऐसे परिणाम से संघ बिलकुल ही खुश नहीं है. गुजरात से मिले फीडबैक के बारे में संघ के नेताओं ने भाजपा को पिछले शुक्रवार को ही एक बैठक में अवगत करा दिया है. इस बैठक में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह मौजूद थे. संघ ने उन्हें बताया कि नौकरी नहीं मिल पाने से युवा वर्ग में तेजी से भाजपा के प्रति असंतोष बढ़ने लगा है. युवा वर्ग में पार्टी से निराशा और नाराजगी बढ़ती जा रही है. उन्हें लगने लगा है कि उनके साथ विश्वासघात हुआ है. किसानों में भी पनप रहा गुस्सा ऐसी ही निराशा और नाराजगी गांवों के किसानों में पनप रही है. कृषि क्षेत्र पर अपेक्षानुरूप ध्यान नहीं दिए जाने से किसानों की आर्थिक दशा चरमराती जा रही है. और अब वे अपने ऐसे हालात के लिए भाजपा को ही जिम्मेदार मानने लगे हैं. आर्थिक नीतियों की गलतियों को स्वीकार कर सुधार जरूरी आरएसएस सूत्रों के अनुसार यदि भाजपा ने इन दोनों की ओर तेजी से ध्यान देकर उनकी समस्या नहीं सुलझाई तो 2019 के लोकसभा चुनाव और 2018 के आठ राज्यों के होने वाले चुनावों में भाजपा को भारी अड़चनों का सामना करना पड़ सकता है. संघ की आर्थिक शाखा स्वदेशी जागरण मंच के एक नेता ने कहा कि आर्थिक नीतियों की गलतियों को स्वीकार कर जल्द उनमें सुधार नहीं किए गए तो किसानों और युवा वर्ग से पार्टी को भरी नुकसान उठाना पड़ेगा.

नए साल में मिले तीन फायदे, अब एक झटका भी खाएं

नई दिल्‍ली : नया वर्ष 2018 आज से शुरू हो गया है. सरकार की ओर से नए साल के 3 तोहफे एक झटके का शॉक भी मिलने वाला है. सरकार ने देश में 1 जनवरी 2018 से कुछ नए नियम लागू किया है, जिससे फायदा और नुकसान दोनों मिलने वाला है. इन फैसलों का लोगों पर जो सीधा असर पड़ने जा रहा है, वह हैं - 1. मोबाइल सिम की आधार से लिंकिंग घर बैठे संभव जिन लोगों ने अभी तक अपने मोबाइल सिम की लिंकिंग आधार से नहीं कराई है, वे अब आज 1 जनवरी, 2018 से घर बैठे अपनी मोबाइल सिम आधार से लिंक करा सकते हैं. वैसे तो यह सुविधा 1 दिसंबर से शुरू होने वाली थी लेकिन टेलीकॉम कंपनियों की तैयारी पूरी न होने के चलते इसे 1 महीना आगे बढ़ा दिया गया। अब लोग ओटीपी व अन्‍य जरिए से सिम को घर बैठे आधार से लिंक कर सकेंगे. 2. डेबिट कार्ड से आसान होगा भुगतान करना 1 जनवरी, 2018 से डेबिट कार्ड से भुगतान सस्‍ता हो गया है, क्‍योंकि नए साल पर रिजर्व बैंक द्वारा जारी नए मर्चेंन्‍ट डिस्‍काउंट रेट लागू हो गए. एमडीआर यानी मर्चेंन्‍ट डिस्‍काउंट रेट वह चार्ज है, जो डेबिट कार्ड से भुगतान करने पर दुकानदार पर लगता है. इसे ग्राहक को नहीं देना होता है, लेकिन कई दुकानदार डेबिट कार्ड ट्रांजैक्‍शन करने वालों से 2 फीसदी चार्ज लेते हैं. नए मर्चेंन्‍ट डिस्‍काउंट रेट लागू रिजर्व बैंक के नए नियम के मुताबिक अब 20 लाख रुपए तक सालाना टर्नओवर वालों के लिए एमडीआर 0.40 फीसदी तय किया गया है, वहीं इससे ज्‍यादा टर्नओवर वालों के लिए 0.9 फीसदी है. 20 लाख तक टर्नओवार वालों के लिए प्रति ट्रांजैक्‍शन एमडीआर 200 रुपए से ज्‍यादा नहीं होगा, वहीं 20 लाख से अधिक टर्नओवर वालों के लिए एमडीआर प्रति ट्रांजैक्‍शन 1,000 रुपए से ज्‍यादा नहीं होगा. वहीं सरकार ने 2000 रुपए तक की खरीदारी पर एमडीआर खुद ही वहन करने का फैसला भी किया है. 3. अनिवार्य हुआ स्वर्णाभूषणों पर हॉलमार्किंग आज 1 जनवरी 2018 से 14 कैरेट, 18 कैरेट और 22 कैरेट ज्वैलरी की हॉलमार्किंग सरकार अनिवार्य कर सकती है. इससे ग्राहकों को स्वर्णाभूषणों की शुद्धता को लेकर आसानी होगी. हॉलमार्किंग को तीन चरणों में अनिवार्य करने की योजना है. पहले चरण में 22 शहरों में हॉलमार्किंग अनिवार्य की जाएगी. इन शहरों में मुंबई, नई दिल्‍ली, नागपुर, पटना जैसे शहर शामिल हैं. दूसरे चरण में 700 शहर और आखिर में देश के बाकी शहरों में इसे लागू किया जाएगा. 4- झटका : पीपीएफ की में कटौती दरों के बाद अब ईपीएफ की बारी केंद्र सरकार ने हाल में पब्लिक प्रॉविडेंट फंड यानी पीपीएफ पर ब्‍याज दर 7.8 फीसदी से घटा कर 7.6 फीसदी कर दी है. पीपीएफ पर इंटरेस्‍ट रेट में कटौती इम्‍लाइज प्रॉविडेंट फंड ईपीएफ पर भारी पड़ने वाली है. कर्मचारी भविष्‍य निधि संगठन (ईपीएफओ) जनवरी 2018 में जब ईपीएफ पर इंटरेस्‍ट तय करने बैठेगा तो उस पर पीपीएफ पर इंटरेस्‍ट रेट और ईपीएफ पर इंटरेस्‍ट रेट के बीव संतुलन बनाने का दबाव होगा. पीपीएफ ओर ईपीएफ के बीच इंटरेस्‍ट रेट का गैप बढ़ कर 105 बेसिस प्‍वाइंट हो गया...