अश्म युगांतर : सतपुड़ा में 20 हजार वर्ष पुराने पाषाण युग का अध्ययन

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डॉ. विजय टी. इंगोले की पाषाण युग की सतपुड़ा के गुफा-चित्रों पर आधारित शोधपूर्ण पुस्तक 'अश्म युगांतर'.

‘अरण्यगर्भ’ के बाद डॉ. इंगोले की पाषाण युग पर शोधपूर्ण दूसरी पुस्तक ‘अश्म युगांतर’

अमरावती : देश-विदेश के प्रतिष्ठित अभियांत्रिकी शोध संस्थाओं से जुड़े और अभियांत्रिकी क्षेत्र में कुल 57 शोध कार्य कर चुके डॉ. विजय टी. इंगोले का निसर्ग-प्रेम उनकी कृति के माध्यम से एक बार फिर सामने आया है.

अमरावती की प्रतिष्ठित अभियांत्रिकी शिक्षण संस्था डॉ. राजेंद्र गोड़े इंस्टीच्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी एन्ड रिसर्च के संचालक डॉ. इंगोले की 15 से 20 हजार वर्ष पूर्व के पाषाण युग के गुफा-चित्रों और अवशेषों की उनकी खोज पर आधारित सद्य प्रकाशित पुस्तक ‘अश्म युगांतर’ सामने आई है. इससे पूर्व डॉ. इंगोले ने अपने निसर्ग प्रेम का परिचय वन्य-प्राणियों और वन जीवन पर आधारित अपनी शोधपूर्ण पुस्तक ‘अरण्यगर्भ’ के रूप में दे चुके हैं.

नितिन गड़करी ने किया विमोचन
‘अश्म युगांतर’ का विमोचन पिछले 30 जून को नागपुर में केंद्र सरकार के भूतल परिवहन एवं जहाजरानी, नदी विकास और गंगा शुद्धिकरण मंत्री नितिन गड़करी ने किया. उन्होंने डॉ. इंगोले के इन शोधकार्यों की भूरी-भूरी प्रसंशा की और उनका अभिनन्दन करते हुए उनकी इस पुस्तक को नई पीढ़ी के लिए प्रेरणादायी बताया.

गड़करी ने कहा कि 2007 से लेकर 2011 तक सतपुड़ा पर्वत श्रृंखला में शोध अभियान के दौरान पाषाण युग की 15 से 20 हजार वर्ष पुराने गुफा-चित्रों का और तत्कालीन आदिमानव के जान-जीवन का अध्ययन कर उन्हें लिपिबद्ध कर ‘अश्म युगांतर’ का रूप देने के कार्य को बहुत ही महत्वपूर्ण और प्रेरणादायी है.

डॉ. इंगोले की वन्य जीवों पर आधारित पहली पुस्तक ‘अरण्यगर्भ’.

26 जनवरी 2007 से शुरू किया शोध अभियान
इस अवसर पर डॉ. इंगोले ने बताया कि अपना शोधकार्य उन्होंने अपने सहयोगी पद्माकर लाड, प्र.सु. हीरुरकर, डॉ. मनोहर खोड़े, शिरीष कुमार पाटिल और ज्ञानेष्वर दमाहे के साथ शुरू किया था. हमने 26 जनवरी 2007 को पहली बार अमरावती जिले के मोर्शी गांव से 20 किलोमीटर पर स्थित सतपुड़ा पर्वत श्रृंखला के मुंगसादेव की पहाड़ी पर स्थित गुफा में अंकित गुफा-चित्रों से अपना शोधकार्य आरंभ किया और 2012 तक हम इस पर्वत श्रृंखला की विभिन्न पहाड़ी गुफाओं में जाकर पाषाण युग के गुफा-चित्रों और उस युग के अन्य अवशेषों की तलाश करते रहे.

रॉक आर्ट सोसायटी ने जब प्रकाशित किया निबंध…
उन्होंने बताया कि अपनी खोज पर आधारित मेरे निबंध को जब रॉक आर्ट सोसायटी ने मुहर लगाई, तब मेरा और मेरे साथियों का उत्साह इस दिशा में बढ़ता ही गया. हम इस विषय पर लगातार तीन वर्षों तक गहन शोध और डाक्यूमेंटेशन करते गए. डॉ. इंगोले ने इस अपने शोध अभियान के दौरान हुए अपने अनुभवों पर भी प्रकाश डाला.

कार्यक्रम में प्रा. दिनेश सूर्यवंशी, प्रा. प्रदीप खेड़कर, डॉ. डी.टी. इंगोले, विद्याधर इंगोले, इंदिरा विजय इंगोले, प्र.सु. हीरुरकर, पद्माकर लाड, शिरीष कुमार पाटिल, डॉ. मनोहर खोड़े, पांडुरंग सालबर्डी आदि उपस्थित थे.

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