नई दिल्ली : कोई सरकारी, अर्द्ध सरकारी या निजी संस्थान सेवानिवृत्त कर्मी को ग्रेच्युटी (Gratuity) से वंचित नहीं कर सकता. ग्रेच्युटी भुगतान अधिनियम, 1972 की धारा 5 के अनुसार 60 वर्ष की आयु में सेवानिवृत्त होने पर भी उसे अनिवार्य रूप से इसका भुगतान करना जरूरी है.
जी.बी. पंत कृषि और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय की विशेष अनुमति याचिका (Special Leave petition) पर सुनवाई के दौरान सुप्रीन कोर्ट ने ऐसी व्यवस्था देते हुए विश्वविद्यालय की याचिका खारिज कर दी. शीर्ष न्यायालय ने कहा है कि केवल कर्मचारी द्वारा सेवानिवृत्ति की आयु 60 वर्ष तक बढ़ाने के विकल्प का इस्तेमाल करने से, ग्रेच्युटी के लिए उसकी पात्रता को समाप्त नहीं किया जा सकता है.
विश्वविद्यालय की विशेष अनुमति याचिका खारिज करते हुए और यह कहते हुए कि हस्तक्षेप का कोई मामला नहीं बनता है, सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा कि, “…हम उच्च न्यायालय के विचार से सहमत हैं कि एक कर्मचारी द्वारा सेवानिवृत्ति की आयु 60 वर्ष तक बढ़ाने का लाभ उठाने के विकल्प का प्रयोग, ग्रेच्युटी के लिए उसकी पात्रता के खिलाफ संचालित नहीं हो सकता है; और इस तरह के एक विकल्प का प्रयोग करने से निजी प्रतिवादियों को ग्रेच्युटी से तब तक वंचित नहीं किया जाएगा, जब तक कि प्रतिष्ठान अर्थात याचिकाकर्ता-विश्वविद्यालय को राज्य सरकार के पूर्व अनुमोदन के बाद ग्रेच्युटी भुगतान अधिनियम, 1972 की धारा 5 (Payment of Gratuity Act, 1972) के सख्त अनुपालन में छूट नहीं दी गई हो.”
इस मामले में न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी और न्यायमूर्ति विक्रम नाथ की पीठ एक विशेष अनुमति याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें जी.बी. पंत कृषि और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय की ओर से उत्तराखंड हाईकोर्ट के एक नवम्बर 2017 के आदेश को चुनौती दी गई थी.
जी.बी. पंत कृषि और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था और 22 नवंबर, 2016 को ग्रेच्युटी भुगतान अधिनियम, 1972 के तहत पारित निर्णय और आदेश, अपीलीय फोरम द्वारा और 19 जनवरी, 2013 को पारित आदेश, ग्रेच्युटी भुगतान अधिनियम 1972 के तहत नियंत्रण प्राधिकरण द्वारा पारित किया गया था.