दादा यानी… सौरव गांगुली..! क्या था गलतियों का खामियाजा..!

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सौरव

*अजित के. सिन्हा
दादा यानी… सौरव गांगुली..!
आज उनका जन्मदिन है. 8 जुलाई 1972 में कोलकाता में पैदा होने वाले गांगुली ने अपने क्रिकेट करियर में न केवल भारतीय क्रिकेट को अनेक चैम्पियन क्रिकेटर दिए, बल्कि उसे एक नई ऊंचाई तक भी पहुंचाया. गांगुली जिसने भारतीय क्रिकेट को बदल कर रख दिया, उन्हें लोग प्यार से ‘दादा’ बुलाते हैं. अपनी कप्तानी में उन्होंने लॉर्ड्स में जा कर दुनिया को अपनी और अपनी टीम की ताकत का अहसास कराया था.

– आज उनके जन्मदिन पर इस महान बनाते-बनते रह गए धांसू पूर्व कप्तान की उन गलतियों को उन्हीं की ज़ुबानी जानने और समझने की कोशिश की जानी चाहिए… जो उन्होंने ने अपनी आत्मकथा ‘ए सेंचुरी इज नॉट एनफ’ में लिखा है. गांगुली मानते हैं कि अपने करियर में उन्होंने एक गलती की. वो गलती जिसने न सिर्फ उनका करियर खराब किया, बल्कि पूरी टीम इंडिया को तहस-नहस कर दिया. आईए जानते हैं इस गलती के बारे में…

– लोग कहते हैं कि गांगुली पहली नजर में आदमी को पहचान लेते थे. उस आदमी क्या खूबी है, उसमें कितना जुनून है. लेकिन 2004 में गांगुली ने एक व्यक्ति को पहचाने में गलती कर दी. जो कप्तान अपने फैसले से खेल पलट देता था, वह खुद अपने ही फैसले का शिकार हो गया.
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चैपल को स्वयं चुना था गांगुली ने…
– 2004 में कोच जॉन राइट के जाने के बाद सौरव गांगुली के दबाव के ही चलते ग्रेग चैपल को भारतीय टीम का कोच चुना गया था. गांगुली ने अपनी आत्मकथा ‘ए सेंचुरी इज नॉट इनफ’ में लिखा है, ‘मुझे लगा कि ग्रेग चैपल हमें चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में नंबर एक तक ले जाने के लिए सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति होंगे. मैंने जगमोहन डालमिया (बीसीसीआई के तत्कालीन अध्यक्ष) को अपनी पसंद बता दी थी. …कुछ लोगों ने मुझे ऐसा कदम नहीं उठाने की सलाह भी दी थी. सुनील गावस्कर भी उनमें से एक थे. उन्होंने कहा था, ‘सौरव इस बारे में फिर से सोचो.’

कप्तानी भी छीन ली…
– लेकिन उन्होंने किसी की सलाह नहीं मानी और चैपल बतौर कोच इंडिया आए. सौरव गांगुली के अनुसार- उन्होंने न सिर्फ भारतीय टीम में फूट डाली, बल्कि उनकी कप्तानी भी छीन ली. हालात ये हुए कि टीम 2007 विश्व कप में बांग्लादेश से हारकर बाहर हो गई. गांगुली ने इसके बारे में अपनी आत्मकथा में लिखा है, ‘कप्तानी छिनना एक आकस्मिक घटना थी. आप दुखी होते हैं. मेरे साथ जो हुआ, वह किसी के साथ नहीं होना चाहिए. हां, आपको ड्रॉप किया जाता है, लेकिन ऐसा व्यक्तिगत नहीं होना चाहिए.’

– कहा जाता है कि गांगुली ही नहीं, मोहम्मद कैफ और सचिन तेंदुलकर भी इस दौर को याद करके सहम जाते हैं. सचिन ने तो चैपल को रिंग मास्टर तक करार दिया था. एक टॉक शो के दौरान जब कैफ से इसके बारे में पूछा गया, तो उन्होंने उसे याद करने से मना कर दिया था.

लेकिन क्या यही सही है?…
– यह तो हुई दादा यानी सौरव गांगुली की बात. लेकिन क्या उनका यह कथन सौ-फीसदी सही है… अनेक खेल समीक्षक और उनके साथ रहे क्रिकेटर ऐसा नहीं मानते. एक प्रमुख वरिष्ठ समीक्षक, जो विवादों में नहीं पड़ना चाहते, बताते हैं कि ऐसा नहीं था. गांगुली का कोच के रूप में ग्रेग चैपल का चयन गलत नहीं था. बल्कि उस दौर में अपने सफलताओं से उनका दिमाग सातवें आसमान पर जा पहुंचा था. वे दादा से “दादा” बन गए थे.

अनुशासनहीनता
– वे बताते हैं कि चैपल को उनसे बड़ी परेशानी होने लगी थी. टीम के दूसरे सदस्यों में भी अनुशासनहीनता आनी शुरू हो गई थी. कोच की बात अनसुनी करना, उनके निर्देशों की अवहेलना, अभ्यास के लिए मैदान में न आना या देर से आना और अभ्यास में शामिल होने के बजाय कोच के काम में अड़ंगे डालना जैसी कप्तान की करतूतें सभी के लिए असहनीय होती जा रही थीं.

– उन्होंने कहा कि आम क्रिकेट प्रेमी इतनी जल्दी इन सब बातों को भूले नहीं होंगे. उस दौर में जब सौरव गांगुली से कप्तानी छिनी तो बहुत काम लोग ही थे, जिन्हें गांगुली से सहानुभूति रही होगी. ग्रेग चैपल आस्ट्रेलियाई क्रिकेट टीम के कप्तान रह चुके थे. विश्व भर में उनकी प्रतिष्ठा थी. एक अनुशासन प्रिय कप्तान के रूप में उनकी पहचान थी. अनुशासन के मामले में कड़क शख्सियत वाले चैपल को कुछ लोग नापसंद भी करते थे. लेकिन उनकी काबीलियत के सभी कायल भी थे. गांगुली ने भारतीय टीम के कोच के रूप में उन्हें लाकर गलती नहीं की थी. उनकी गलती यह थी कि वे स्वयं को क्रिकेट से ऊपर मानने लगे थे.

…तो गांगुली का करियर और भी बड़ा होता
– लेकिन, सौरव गांगुली भी इसे अपने जीवन की सबसे बड़ी गलती मानते हैं. अगर ग्रेग चैपल टीम इंडिया से नहीं जुड़े होते, तो शायद गांगुली का करियर और भी बड़ा होता. फिर भी गांगुली ने भारतीय क्रिकेट को जितना योगदान दिया, उसके लिए उन्हें हमेशा याद किया जाएगा. उन्हें कभी न हार मानने वाले कप्तान के रूप में भी याद किया जाएगा.

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