अकड़ ढीली पड़े तभी विपक्षी एकता पर पकड़ बना सकेंगे कांग्रेस के युवराज
*कल्याण कुमार सिन्हा-
भारत यात्रा के दौरान भी एक के बाद एक गलतियां करने और झटके पर झटकों से भी उन्हें कुछ फर्क नहीं पड़ा था. लेकिन, अब कांग्रेस के लोकसभा चुनाव में विपक्षी एकता अभियान में अलग-थलग पड़ते जाने और सांसदी छिन जाने के साथ ही कैद की सजा से उत्पन्न विषम परिस्थितियों ने राहुल गांधी को घुटनों की ओर लौट चलने के संकेत दे दिए हैं.
और, इसके साथ ही उनके लिए मुंबई जाकर मातोश्री में मत्था टेकने की नौबत भी आ गई है. गांधी परिवार के राहुल गांधी पहले सदस्य हैं, जिन्हें अब मातोश्री की दहलीज लांघनी पड़ रही है. कांग्रेस महासचिव के.सी. वेणुगोपाल इसी सिलसिले में मुंबई पहुंच चुके हैं. समझा जाता है कि वे वहां उद्धव ठाकरे और उनके सहयोगियों से मिलकर राहुल गांधी के लिए मुलाकात का दिन और चर्चा के संदर्भ तय करने वाले हैं.
2024 के लोकसभा चुनाव के मद्देनजर कांग्रेस को मुख्य धारा में आने और विपक्षी एकता में शामिल होने का यह मार्ग शरद पवार ही सुझाया है. पिछले दिनों नई दिल्ली में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के निवास पर शरद पवार ने राहुल को बता दिया कि उनकी बचकानी टिप्पणियों और प्रधानमंत्री मोदी पर अनावश्यक छींटाकशी के साथ उद्योगपति अडानी को लेकर जेपीसी गठन की मांग जैसे मामलों को टूल देकर कुछ भी हासिल नहीं होगा. पवार ने राहुल को यह अहसास भी दिलाया कि स्वातंत्र्यवीर सावरकर पर अपमानजनक टिप्पणी कर उन्होंने महाराष्ट्र में अपनी पार्टी के साथ महाविकास आघाड़ी गठबंधन को भी कितना बड़ा आघात पहुंचाया है.
समझा जाता है कि महाराष्ट्र के दिग्गज नेता के साथ पिछले ही बुधवार की मुलाकात से उनके ज्ञान चक्षु खुलने लगे हैं और यह भी समझ आया है कि उनकी राजनीतिक सोच कितनी कच्ची है. सभी मोदी सरनेम वालों को चोर बताने के मामले में अपनी लोकसभा की सदस्यता खो चुके राहुल पर दो वर्षों की कैद की सजा की तलवार अभी झूल रही है. इस झटके ने उनकी राजनीतिक अकड़ थोड़ी ढीली तो कर ही दी है. आगामी लोकसभा चुनाव में विपक्षी एकता पर अपनी पकड़ बनाने के लिए पवार ने उन्हें घुटनों के बल चलने की जरूरत भी ठीक से समझा दी है.
देश के महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्व. वीर सावरकर पर अपमानजनक टिप्पणी कर राहुल गांधी समझ बैठे थे कि उन्होंने भारतीय जनता पार्टी के मर्म और उसकी हिंदुत्ववादी छवि को उध्वस्त कर दिया है. ऐसा कर उन्होंने इस बात की भी परवाह नहीं की कि महाराष्ट्र की महाविकास आघाड़ी गठबंधन के अपने प्रमुख सहयोगी उद्धव ठाकरे की शिवसेना को भी गहरा आघात पहुंचाया है. उनकी ऐसी घटिया टिप्पणी के कारण उद्धव ठाकरे राज्य में सत्तारूढ़ मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की शिवसेना और भाजपा के निशाने पर आ गए और उन्हें यह जवाब देना मुश्किल हो गया कि वीर सावरकर के ऐसे अपमान करने वाली पार्टी के साथ वे कैसे बने हुए हैं.
राहुल गांधी का मातोश्री जाकर मत्था टेकना कांग्रेस के लिए डैमेज कंट्रोल की दिशा में एक बड़ा कदम होगा. इससे उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य में अखिलेश यादव से रिश्ते सुधारने में भी मदद मिल सकती है. बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार और उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव से तो हरी झंडी मिल ही चुकी है.
कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने विदर्भ आपला से चर्चा के दौरान कहा कि राहुल जी की यह अकड़ ढीली पद जाए तो पार्टी को विपक्षी एकता में अग्रिम पंक्ति में आने का सम्मानजनक अवसर मिल सकता है. अपना नाम जाहिर न करने की शर्त पर उन्होंने माना कि “भारत यात्रा से कांग्रेस को जो उम्मीदें थीं, उस पर पानी ही फिर गया है. वह आई गई बात हो गई. अब तो कोई उसे याद भी नहीं करता. साढ़े तीन महीने की इस अलप अवधि में ही देश के लोगों की बात छोड़िए, कांग्रेस और अन्य विपक्षी पार्टियां भी इसे याद नहीं करतीं.” उन्होंने एनसीपी नेता पवार का आभार माना कि उन्होंने राहुल जी को सही रास्ता बता दिया है.
30 जनवरी 2023 को 136 दिन बाद 14 राज्य का सफ़र करते हुए श्रीनगर में समाप्त राहुल गांधी की इस यात्रा का घोषित उद्देश्य ”भारत को एकजुट करना और साथ मिलकर देश को मज़बूत करना था.” यात्रा के दौरान राहुल गांधी ने बार-बार कहते रहे कि वे देश में नफरत के ख़िलाफ मोहब्बत की दुकान खोलना चाहते हैं. यात्रा के दौरान जगह-जगह भाषण देते हुए और मीडिया से बात करते हुए उन्होंने केंद्र सरकार पर निशाना साधा और बेरोजगारी, महंगाई, के साथ भारत के सीमा क्षेत्र में चीन के दखल का मुद्दा उठाते रहे. लेकिन जल्द ही वे मुद्दों से भटकते चले गए. भाजपा और सरकार पर प्रहार में गौतम अडानी और वीर सावरकर को मोहरा बनाना शुरू कर दिया.
कांग्रेसी भी मानते हैं कि अपनी इस यात्रा में अन्य विपक्षी दलों को शामिल करने के लिए अपनी ओर से कुछ नहीं किया. यात्रा के दौरान कुछ विपक्षी नेताओं ने उनके साथ कुछ कदम भी मिलाया, लेकिन वे उनका मान भी नहीं रख सके महाराष्ट्र में तो उद्धव ठाकरे की शिवसेना ने उनका स्वागत भी किया. लेकिन बदले में राहुल ने क्या किया, ठाकरे की शिवसेना के भी आराध्य वीर सावरकर पर ही सर्वाधिक ओछा प्रहार कर डाला.
भारत जोड़ो यात्रा विपक्ष को एकजुट करने का कांग्रेस के लिए एक बड़ा मौका बनते-बनते रह गई. राहुल गांधी बाद में भी विपक्ष को अपने मंच पर नहीं ला सके. उधर विपक्षी एकता के नाम पर अलग-अलग पार्टियों ने अलग-अलग पहल शुरू कर दी. कुछ तो कांग्रेस मुक्त विपक्षी एकता पर भी जोर देना शुरू कर दिया. लेकिन कांग्रेस को शुक्र मनाना चाहिए कि एनसीपी नेता पवार अपने इस राय पर बने रहे कि कांग्रेस जैसी पार्टी के बिना विपक्षी एकता कारगर नहीं हो सकती. और अब, उन्होंने कांग्रेस और राहुल गांधी डूबती साख को बचाने और सही रास्ता दिखा कर उन्हें पटरी पर लाने का बड़ा काम किया है. देखना है, राहुल गांधी पवार के भरोसे पर कितना खरा साबित होते हैं. कांग्रेस का नेतृत्व भले ही अब मल्लिकार्जुन खड़गे जी के हाथ में है, लेकिन पार्टी में तूती तो राहुल गांधी की ही बोलती है.