चिकित्सा चमत्कार : वृद्धावस्था में गिरने के कारण पांव, कूल्हे या हिप में फ्रैक्चर आम बात है. कई बार ऐसे वृद्धों को बिना किसी उपचार के अपने जीवन का बाकी समय दूसरों पर निर्भर हो कर कष्टप्रद जीवन जीने को बाध्य होना पड़ता है. क्योंकि बुढ़ापे में टूटी हड्डियां जुड़ नहीं पातीं. इस कारण उन्हें अंदरूनी रक्त रिसाव, ब्लड क्लोट, लम्बे समय तक खाट पर लेटे रहने के कारण बेडसोर या अन्य जटिल पीड़ादायक समस्याओं और असहनीय दर्द के साथ जीने के अलावा कोई विकल्प नहीं होता था. लेकिन अब चिकित्सा विज्ञान में हुई नवीनतम प्रगति के कारण ऐसा नहीं है.
चिकित्सा विज्ञान में हुई नवीनतम प्रगति ने ऐसे पीड़ित वृद्धों को सामान्य जीवन जीने का अवसर दे दिया है. इसका एक जीता जागता उदाहरण 100 वर्षीय एस.सी. कपूर हैं. जिन्हें अपने घर में गिरने के बाद हिप जॉइंट में बड़े फ्रैक्चर के कारण मेडिकल इमरजेंसी और तीव्र असहनीय दर्द का सामना करना पड़ रहा था. उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां वरिष्ठ आर्थोपेडिक सर्जन और जॉइंट रिप्लेसमेंट एक्सपर्ट डॉ. राहुल शर्मा ने उन्हें तत्काल और वैकल्पिक हिप बोन रिप्लेसमेंट सर्जरी की सलाह दी, जो उनके फ्रैक्चर के प्रकार और संबंधित बीमारियों के उपचार का एकमात्र समाधान था.
यह एक आसान निर्णय नहीं था. सर्जरी के दौरान आर्थोपेडिक सर्जन, एनेस्थेटिस्ट, फिजिशियन, कार्डियोलॉजिस्ट और इंटेंसिव केयर स्पेशलिस्ट्स की सर्वगुण सम्पन्न टीम की जरूरत थी, जो रोगी की उम्र और को देखते हुए हर अनिश्चित और प्रतिकूल परिस्थितियों में रोगी की देखभाल के लिए उचित निर्णय लेकर उनके प्राण बचा सके.
यह एक बड़ा और चुनौतीपूर्ण कार्य था. लेकिन डॉ. राहुल शर्मा और उनकी टीम ने चुनौती स्वीकार कर लगभग 90 मिनट तक चली जटिल हिप आर्थ्रोप्लास्टी सर्जरी (जॉइंट रिप्लेसमेंट सर्जरी) को अंजाम दिया और संक्रमण रोकने के लिए एसेप्सिस के उच्चतम मापदंड का पालन किया.
सर्जरी के लगभग 3 दिन के बाद वयोवृद्ध कपूर जी को अस्पताल से छुट्टी दे दी गई. वे आराम से चल रहे हैं. लाइफ इन मोशन क्लिनिक के संस्थापक और कूल्हे, घुटने और कंधे की सर्जरी के विशेषज्ञ डॉ. राहुल शर्मा सावन नीलू एंजेल्स हॉस्पिटल, साकेत, नई दिल्ली में प्रैक्टिस करते हैं.डॉ. राहुल शर्मा एक वरिष्ठ आर्थोपेडिक सर्जन हैं. उन्होंने सिडनी (ऑस्ट्रेलिया) से प्रतिष्ठित AOA ऑस्ट्रेलियन ऑर्थोपेडिक एसोसिएशन फेलोशिप प्राप्त की है और फिलाडेल्फिया (अमेरिका) के रोथमैन अस्पताल में भी काम किया है. उन्होंने यह चमत्कार कर दिखाया है.
वरिष्ठ ऑर्थोपेडिक सर्जन डॉ. राहुल शर्मा के अनुसार, “65 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों के लिए हिप फ्रैक्चर एक खतरनाक और जटिल समस्या है. ऐसे मरीज ना तो खड़े नहीं हो सकते, न ही चल नहीं सकते या टूटे हुए कूल्हे पर वजन डाल सकते हैं. अचानक गिरने या अन्य चोटों के कारण हिप बोन फ्रैक्चर को रोका भी नहीं जा सकता, क्योंकि कोई भी व्यक्ति खुद गिरने की योजना नहीं बनाता. आमतौर पर उपचार के बाद टूटे हुए कूल्हे के पूरी तरह ठीक होने या उसमे पूर्ण सुधार देखने के लिए कुछ महीने और कभी-कभी साल लग जाता है, जो रोगी की उम्र, उसके संपूर्ण स्वास्थ्य, फ्रैक्चर के कारण, सर्जरी के प्रकार और अन्य चोटों पर निर्भर करता है.”
डॉ. राहुल शर्मा कहते हैं,
“कोई भी स्वास्थ्य स्थिति जो रोगी के संतुलन, स्थिरता या चलने की क्षमता को प्रभावित करती है, कूल्हे के टूटने का कारण बन सकती है. रोगी की उम्र जितनी अधिक होगी, उसके शरीर की चोट को ठीक होने में उतना ही अधिक समय लगता है. यह बात तब और भी अधिक सच हो जाती है, जब कूल्हे की हड्डी में बड़ा फ्रैक्चर हो जाता है. वृद्ध लोगों के कूल्हे के फ्रैक्चर का इलाज और उससे उबरने के लिए सर्जरी करना बहुत कठिन है.”डॉ. शर्मा के अनुसार, “वृद्ध लोगों में विशेष रूप से 100 वर्ष की आयु के करीब के लोगों में, गिरने और फ्रैक्चर का जोखिम और भी अधिक होता है.
ऐसे लोग गिरने और फ्रैक्चर के लिहाज से अधिक संवेदनशील होते हैं. अधिक उम्र के कारण उनमें गतिशीलता, संतुलन और ताकत भी कम होती है. इसके अलावा ऑस्टियोपोरोसिस, दृष्टि या सुनने की शक्ति में कमी, मधुमेह, उच्च रक्तचाप और हृदय रोग भी गिरने, फ्रैक्चर और चोटों का प्रमुख कारण बनते हैं.”
खराब रोशनी, फिसलन भरे, ऊबड़-खाबड़ फर्श, और खराब तलवों या ट्रैक्शन वाले जूते, चक्कर और निद्रा पैदा करने वाली दवाएं भी गिरने का जोखिम बढाती हैं. गिरने और फ्रैक्चर के परिणामस्वरूप बुजुर्गों की आजादी, गतिशीलता, और जीवन की गुणवत्ता में कमी आती है.
कूल्हे का फ्रैक्चर वृद्धों जीवन शैली और उनकी देखभाल करने वालों पर आर्थिक बोझ के साथ साथ स्वास्थ्य सेवा प्रणाली को भी प्रभावित करता है, जिससे देखभाल की जरूरत बढ़ जाती हैं. इस कारण भारत में कई वृद्धों को समय पर कूल्हे के फ्रैक्चर के लिए उचित स्वास्थ्य सेवा प्राप्त करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है.
भारत में जिस तरह वृद्ध लोगों की आबादी बढ़ रही है, आने वाले वर्षों में, भारत में हिप फ्रैक्चर के रोगियों की संख्या में वृद्धि होने की उम्मीद है. विशेष रूप से पुरुषों की तुलना में महिलाओं में हिप फ्रैक्चर होने की संभावना अधिक है. परिणामस्वरूप, 100 वर्ष की आयु के करीब के बुजुर्गों का मृत्यु दर को कम करने और जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाने के लिए हिप फ्रैक्चर के तुरंत और प्रभावी चिकित्सा प्रबंधन की आवश्यकता है.