छठ महापर्व

छठ महापर्व : नहाय-खाय, खरना और अर्घ्य… जानें पूरा कैलेंडर

जीवन शैली
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महापर्व : कार्तिक महीने की शुरुआत होने वाली है. इसी महीने में बिहार-झारखंड का सबसे बड़ा लोक आस्था का, सूर्य की उपासना का महापर्व शुरू होने वाला है. छठ पूजा एक ऐसा पर्व है, जो वैदिक काल से चलता आ रहा है. यह पूजा देश के कुछ राज्य जैसे झारखंड, बिहार, बंगाल और उत्तर प्रदेश की संस्कृति बन चुकी है. वैसे तो छठ महापर्व अब पूरे भारत में मनाई जाने लगी है, लेकिन इन राज्यों में धूमधाम ज्यादा होती है. ऐसे में छठ पूजा कब शुरू होगी, ये सवाल बहुत लोगों के मन कौंधने लगा है, तो आइए जानते हैं…

कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से छठ पूजा का आरंभ हो जाता है. सूर्य की उपासना का यह महापर्व पूरे चार दिन तक चलता है. छठ पूजा में 36 घंटे निर्जला व्रत भी रखा जाता है, इसलिए इस व्रत को सबसे कठिन व्रत भी माना जाता है. यह एक प्राचीन पर्व है. समझा जाता है कि सृष्टि के प्रारंभ में जब मानव जाती की उत्पति हुई और उनमें ज्ञान का संचार हुआ, तब उसने सूर्य को ही संसार और प्रकृति के पोषक के रूप में जाना. तब से ही सूर्य की उपासना आरंभ हुई. बिहार के औरंगाबाद जिले के देव गांव में प्राचीन सूर्य मंदिर है. पहले लोग वहीं जाकर यह महापर्व करते थे. लेकिन वहां व्रतियों की बढ़ती भीड़ के कारण बाद में लोग गंगा और अपने आस-पास के पवित्र नदियों और तालाबों में करने लगे. व्रतियों के बढ़ती संख्या के कारण गंगा तट और नदियों-तालाबों के तट भी कम पड़ने लगे, तब लोग अपने घरों के छतों पर या आस-पास पोखर निर्माण कर उसमें जल भर कर सूर्यदेव की अर्चना करने लगे हैं. 

यह व्रत महिलाएं अपने परिवार की खुशहाली, अच्छे स्वास्थ्य, पुत्र-पुत्रियों के लिए मंगल कामना और उनके दीर्घायु होने के लिए रखती हैं. पहले दिन नहाए-खाए के साथ छठ पूजा आरंभ हो जाती है. पहला दिन नहाय खाय, दूसरा दिन खरना और तीसरे दिन ढलते सूर्य को अर्घ्य प्रदान किया जाता है. वहीं, अंतिम दिन उगते सूर्य को अर्घ्य प्रदान करने के साथ ही इस महापर्व का समापन हो जाता है.

नहाय-खाय के दिन व्रती महिलाएं सुबह नहा कर अपने पूजा के कमरे में ही लकड़ी और उपले के चूल्हे पर चावल-दाल और लौकी की सब्जी पकाती हैं. फिर उसका भोग लगाकर स्वयं उसे प्रसाद स्वरूप ग्रहण करती हैं. उसके बाद परिवार के सभी सदस्य भी उस प्रसाद को ग्रहण करते हैं. इसके साथ ही व्रती का उपवास भी शुरू हो जाता है. 

दूसरे दिन शाम को खरना पूजन होता है. इसे कहीं लोहंडा भी कहा जाता है. उपवास में ही वर्ती स्नान कर शाम को खीर-दलपूड़ी तैयार कर उसका भोग लगाती हैं. फिर उसे स्वयं  प्रसाद स्वरूप ग्रहण कर परिवार और घर आए बंधू-बांधवों को यह प्रसाद देती हैं. 

तीसरे दिन संध्या में अस्ताचलगामी अर्थात डूबते सूर्यदेव को नदी तालाब अथवा अपने घर में तैयार किए गए पोखर में उतर कर समस्त ऋतु फल, नारियल, चावल और गेहूं के आटे से बने पकवानों के प्रसाद से सजे सूप में दीपक रख पश्चिम की ओर सूर्यदेव का नमन कर जल में ही खड़े रहकर परिक्रमा करती हैं. समस्त परिजन सूर्यदेव को सूप के आगे से दूध और जल से अर्घ्य देते हैं. 

चौथे दिन अहले सुबह सूर्योदय से पहले ही व्रती नदी-तालाब या घर में ही निर्मित पोखर में उतर जाती हैं. सूर्योदय के पूर्व  वहां स्नान कर पूर्व दिशा की ओर सूर्यदेव का ध्यान करती रहती हैं. सूर्योदय होते ही फिर संध्या वाली प्रक्रिया अपनाई जाती है. व्रती के साथ परिजन उदित सूर्य को अर्घ्य देते हैं. इसके बाद पानी से बाहर आकर व्रती पूजन करती हैं, कोशी भरती हैं और परिजनों को प्रसाद वितरित करती है. इसके साथ छठ महापर्व संपन्न होता है. 

यह पवित्र व्रत पुरुष भी करते हैं. छठ एक कठिन तप वाला महापर्व है. इसमें प्रसाद भी बहुत ही पवित्रता के साथ तैयार किया जाता है. प्रसाद के लिए लाए गए चावल और गेहूं साफ से चुन-बिछ कर, उसे धोकर सुखाया जाता है. फिर उसक आता पीस कर बहुत ही शुद्धता के साथ गुड़ और शक्कर मिला कर शुद्ध घी से प्रसाद बनाया जाता है. इसमें घर की अन्य महिलाएं और रिश्ते की महिलाएं सहयोग करती हैं.  

ज्योतिषाचार्य बताते हैं कि हर साल की तरह इस साल भी छठ महापर्व की शुरुआत कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि 05 नवंबर से हो रही है-
05 नवंबर (मंगलवार) : नहाया खाय
06 नवंबर (बुधवार) : खरना
07 नवंबर (गुरुवार) : संध्या अर्घ्य
08 नवंबर (शुक्रवार) : उषा अर्घ्य