नई दिल्ली : ईपीएस-95 मामले की सुनवाई में अपनी भूमिका से देश के 70 लाख पेंशनरों के लिए चिंता का विषय बन चुके जस्टिस उदय उमेश ललित आगामी 27 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट के 49वें चीफ जस्टिस बन जाएंगे. उनके नाम की सिफारिश चीफ जस्टिस एन.वी. रमना ने विधि और न्याय मंत्रालय को अपने उत्तराधिकारी के तौर पर गुरुवार, 4 अगस्त को भेज दी है.
जस्टिस उदय उमेश ललित भारत के दूसरे ऐसे चीफ जस्टिस होंगे, जो सीधे सुप्रीम कोर्ट के जज के पद पर नियुक्त हुए थे. उनसे पहले स्व. जस्टिस एस.एम. सीकरी प्रैक्टिस की दुनिया से सीधे सुप्रीम कोर्ट जज बने और बाद में चीफ जस्टिस के ओहदे तक पहुंचे.
जस्टिस यू.यू. ललित 13 अगस्त, 2014 को सुप्रीम कोर्ट जज बने थे और वे 27 अगस्त, 2022 को मौजूदा चीफ जस्टिस एनवी रमना की जगह पर देश के नए प्रधान न्यायाधीश बनेंगे. हालांकि उनका कार्यकाल 73 दिनों का ही रहेगा और वे 8 नवंबर, 2022 तक पद पर रहेंगे. सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस की रिटायरमेंट की उम्र 65 साल होती है.
महत्त्व के फैसले भी सुनाए हैं
क्रिमिनल लॉ के विशेषज्ञ माने जाने वाले जस्टिस ललित तीन तलाक, अनुसूचित जाति और जनजातियों के उत्पीड़न रोकने वाले 1989 के कानून का दुरुपयोग रोकने के मामले में होने वाली एफआईआर के पहले होने वाली जांच की प्रक्रिया तय करने जैसे कुछ चर्चित मुकदमे में बेंच का महत्वपूर्ण फैसला सुनाने वाले जज के रूप में जाने जाते हैं.
महत्वपूर्ण मुकदमें छोड़ भी चुके हैं
हालांकि आधा दर्जन से अधिक ऐसे महत्वपूर्ण मुकदमो की सुनवाई में विभिन्न कारणों से अपने को अलग भी किया है. इनमें 2014 में याकूब मेमन की पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई से, 2015 में मालेगांव ब्लास्ट केस से जुड़ी एक याचिका की सुनवाई से, 2016 में आसाराम बापू मामले की सुनवाई से, 2016 में ही हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला की याचिका की सुनवाई से, 2017 में उन्होंने सूर्यनेल्ली रेप केस की भी सुनवाई से, 2018 में उन्होंने मालेगांव ब्लास्ट केस के एक अभियुक्त की एक याचिका की सुनवाई से और 2019 में अयोध्या मामले पर बनी संवैधानिक पीठ से भी उन्होंने अपने को अलग कर लिया था.
विवादास्पद रहा है ईपीएस-95 मामले पर आदेश
ईपीएस-95 मामले में उनकी अध्यक्षता वाले दो सदस्यीय बेंच का 2021 का आदेश विवादों में घिर चुका है. इस मामले में केंद्र सरकार और कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) की एसएलपी और रिव्यु पेटिशन की सुनवाई में अनावश्यक रूप से सुप्रीम कोर्ट के 1916 के आरसी गुप्ता फैसले की जांच बड़े बेंच यानी तीन जजों के बेंच से कराने की सिफारिश उनकी अध्यक्षता वाली दो सदस्यीय बेंच ने कर दी.
जबकि सरकार और ईपीएफओ इस फैसले को स्वीकार कर उसे 2017 में ही लागू भी दिया था. और तो और सुनवाई के दौरान उनकी ओर से आरसी गुप्ता फैसले कोई उंगली भी नहीं उठाई गई थी. जस्टिस इस रवैये से न केवल देश के 70 लाख पेंशनर हतप्रभ रह गए, बल्कि कानून के जानकार भी आश्चर्यचकित रह गए.
पेंशनरों ने तो चीफ जस्टिस रमना से मांग भी कर दी थी कि जस्टिस ललित को उस तीन सदस्यीय बेंच में शामिल ही नहीं किया जाए. लेकिन हाल ही में गठित उस तीन सदस्यीय बेंच में जस्टिस ललित शामिल हैं और बेंच ने फिर सुनवाई भी कर रही है.