अलविदा कह गए अभिनय सम्राट युसूफ साहब उर्फ दिलीप कुमार..!

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दिलीप कुमार

*जीवंत के. शरण-
स्मरण :
देश ने महान अभिनय सम्राट दिलीप कुमार को अब खो दिया. आयु की 98 वर्ष की लंबी पारी को इस महान महानायक ने मुंबई के पी.डी. हिंदुजा अस्पताल में बुधवार, 7 जुलाई को विराम दे दिया. पिछले लगभग डेढ़ दशक से बिगड़ती सेहत के कारण अपने घर से अस्पताल तक का ही उनका नाता रह गया था. ऐसे में जीवन संगिनी पूर्व अभिनेत्री सायरा बानो ही अंतिम क्षणों तक उनकी हमसाया बनी रहीं. उनका मूल नाम युसूफ खान था. 
दिलीप कुमार
राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार 
देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म विभूषण से सम्मानित इस दिग्गज अभिनेता का अंतिम संस्कार पूरे राजकीय सम्मान के साथ किया गया. तिरंगे में लपेट कर उनके पार्थिव शरीर का जनाजा सांताक्रुज कब्रिस्तान तक पहुंचाया गया. वहां शोकाकुल लोगों के साथ उनकी धर्मपत्नी सायरा बानो भी साए की तरह दिलीप कुमार के पार्थिव शरीर के साथ रहीं. कब्रिस्तान के छोटे से मस्जिद में धार्मिक औपचारिकता नमाज-ए-जनाजा पूरी कर राजकीय सम्मान के साथ उन्हें सुपुर्दे खाक किया गया.
दिलीप कुमार   
दिलीप कुमार लंबे समय से अस्वस्थ चल रहे थे. उन्हें पिछले कुछ समय से सांस संबंधित समस्या के कारण मुंबई के हिंदुजा अस्पताल में भर्ती कराया गया था. बुधवार की सुबह वहीं उन्होंने अंतिम सांस ली. इस अंतिम समय भी उनकी सायरा बानो उनकी आखिरी सांस तक साथ रहीं. सायरा बानो की सतत निगरानी और सेवा के कारण ही दिलीप कुमार अपने चहेतों के लिए उम्र के इस मुकाम तक पहुंच पाए. काश! वे अपनी जिंदगी का शतक पूरा कर लेते.                                           

बॉलीवुड में पसरा सन्नाटा 
दिलीप कुमार के निधन की खबर से बॉलीवुड में सन्नाटा पसर गया. 6 दशकों तक बॉलीवुड के शीर्ष बने रहे इस प्रख्यात हस्ती के चाहने वालों में आज दो-तीन पीढ़ियों के युवा और वृद्ध करोड़ों की संख्या में होंगे. बॉलीवुड के आज के अनेक दिग्गज अभिनेता अमिताभ बच्चन, धर्मेंद्र, सुर साम्राज्ञी लता मंगेशकर से लेकर शाहरुख खान, उनके समकालीन और अनेक नए कलाकारों के लिए वे प्रेरणा स्रोत रहे. उनके नहीं रहने की खबर ने इन तमाम दिग्गजों समेत उनके प्रत्येक चाहने वालों को शोक से भर दिया. सोशल मीडिया पर शोक संदेशों का तांता लग गया. कोरोना महामारी की वर्जनाओं के बावजूद मुंबई के लोग उनके अंतिम दर्शनों के लिए लालायित नजर आए. 
दिलीप कुमार
पेशावर से बॉलीवुड तक का शानदार सफर 
11 दिसंबर 1922 को पाकिस्तान के पेशावर में यूसुफ खान का जन्म हुआ था. विभाजन के पूर्व ही उनका परिवार मुंबई आ गया था. उनका बचपन से लेकर अंतिम क्षणों तक समय मुंबई में ही बीता. नासिक के देवलाली में उनकी स्कूली शिक्षा हुई. फलों के व्यवसायी अपने पिता के व्यवसाय में हाथ बंटाने के साथ ही उन्होंने शुरुआती दिनों में पुणे में एक रेस्त्रां भी चलाया. फिर मां के बुलावे पर वापस मुंबई आ गए. रेस्त्रां की कमाई मां के हाथों सौंपकर निकल पड़े नौकरी की तलाश में. यह तलाश उन्हें बम्बई सिने जगत की मशहूर फिल्म निर्माता और बॉम्बे टाकीज की मालकिन देविका रानी तक ले आई. उनकी उम्मीद से कहीं बहुत अधिक 1200 रुपए मासिक पर देविका रानी ने न केवल उन्हें नौकरी दे दी, बल्कि दूसरे ही दिन से अपनी नई फिल्म ‘ज्वार-भाटा’ में हीरो की भूमिका निभाने का काम भी सौंप दिया. 1944 में बनी यह फिल्म तो अधिक नहीं चल पाई, लेकिन उन्हें मिला नया नाम- दिलीप कुमार. इसी साल देविका रानी की दूसरी फिल्म ‘जुगनू’ से वे चल निकले.
 
ऐसे बने युसूफ से दिलीप कुमार 
अपनी आत्मकथा में उन्होंने बताया है कि फिल्मों में अपने मूल नाम यूसुफ खान के नाम से नहीं आना चाहते थे. उन्हें डर था कि उनके पिता को पता चला तो वे नाराज जाएंगे. देविका रानी भी चाहती थीं कि उनका नाम बदला जाए. ज्वार-भाटा रिलीज हुई और उसका बड़ा सा पोस्टर जब उनके घर के सामने ही लगा दिया गया, तब उनके पिता और परिजनों को भी पता चला कि वे दिलीप कुमार के नाम से फिल्म जगत में कदम रख चुके हैं. इसके बाद एक के बाद एक यादगार फिल्मों ने उनकी कामयाबी और शोहरत में चार चांद लगाते चले गए. उनकी फिल्म ‘मुगल-ए-आजम’ को कौन भूल सकता है? उस वक्त की यह सर्वाधिक कमाई के साथ सबसे महंगी लागत में बनने वाली पहली फिल्म थी.
 
सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के आठ फिल्मफेयर अर्वाड 
सबसे ज्यादा अवॉर्ड जीतने के लिए दिलीप कुमार का नाम गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज है. उन्हें 1991 में पद्म भूषण और 2015 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया. 1994 में बॉलीवुड  के सर्वोच्च अवार्ड ‘दादा साहेब फाल्के अवॉर्ड’ से भी उन्हें नवाजा गया. 
 
60 साल में 65 फिल्में
दिलीप कुमार ने बॉलीवुड में लगभग साठ साल गुजार दिए, इन साठ सालों में उन्होंने 65 फिल्में में अदाकारी का जलवा दिखाया है. उनकी आखिरी फिल्म थी ‘किला’. दिलीप कुमार ने अपने करियर में एक से बढ़कर एक सदाबहार हिट फिल्में दी है. उनकी देवदास, मुगल-ए-आजम, गंगा जमुना, राम और श्याम, नया दौर, मधुमती, क्रांति, विधाता, शक्ति और मशाल जैसी यादगार फिल्में हैं.
दिलीप कुमार
अंत तक साया बन कर रहीं सायरा
1966 में दिलीप साहब की अर्धांगिनी बनी सायरा बानो तब केवल 22 वर्ष की थीं और दिलीप कुमार 44 वर्ष पूरे कर चुके थे. लेकिन बचपन से ही उनकी जीवन संगिनी बनने का सपना संजोए सायरा के लिए दिलीप कुमार का अपने से दुगनी उम्र का होना कोई मायने नहीं नहीं रखता था. वह 12 साल की उम्र से मिसेज दिलीप कुमार बनने का ख्वाब देखती थीं. सत्तर के दशक की चर्चित अभिनेत्री सायरा से दिलीप कुमार 22 साल बड़े थे. शादी के बाद सायरा ने फिल्मों को अलविदा कह दिया. और एक सद्गृहिणी की तरह पति को ही अपनी दुनिया बना लिया. सायरा को फिल्मी दुनिया छोड़ने का कभी कोई मलाल नहीं रहा. उन्होंने अपनी इच्छा से रुपहले परदे को अलविदा कहा था. उम्र का यह अंतर दोनों के प्यार में कभी कोई अंतर नहीं कर पाया.
 
सुख-दुःख साथ-साथ निभाए 
दिलीप कुमार ने अपनी जिंदगी में ढेरों उतार-चढाव और तनाव झेले. गत वर्ष उनके दो छोटे भाइयों असलम खान (88) और एहसान खान (90) का कोरोना के कारण निधन हो गया. और हाँ, अंत तक उनके मन में यह भी टीस रही होगी, कि वे अंत तक बेऔलाद ही रहे. बावजूद इसके उन्हें जिंदगी से कभी कोई शिकवा नहीं था. एक आदर्श बीवी के रूप में सायरा बानो का पति के प्रति समर्पण दूसरों के लिए भी प्रेरक है. यह दम्पति सफलता के शिखर पर तो साथ रहे ही, बे औलाद होने के बावजूद जीवन भर एक-दूसरे का साथ सुख-दु:ख का मिलकर सामना भी किया. साथ-साथ अपने रिश्ते को अंतिम समय तक और मजबूती भी देते रहे.   

बुधवार को दिलीप कुमार को श्रद्धांजलि देने के लिए नेताओं, अभिनेताओं, उद्योगपतियों और गणमान्य लोगों का तांता लगा रहा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी उन्हें श्रद्धांजलि दी. कोरोना वर्जनाओं के कारण सीमित संख्या में लोगों ने उनके आवास पर जाकर अंतिम दर्शन किए और कुछ लोग अंतिम यात्रा में भी शामिल हुए. महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे, शरद पवार, आदित्य ठाकरे सहित अनेक नेता उनके आवास पर पहुंचे. वहीं धर्मेंद्र, करण जौहर, रणबीर कपूर, अनुपम खेर और शाहरुख खान भी अंतिम दर्शन के लिए पहुंचे. अमिताभ बच्चन और उनके पुत्र अभिषेक ने कब्रिस्तान पहुंच कर उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित किए. 

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