EPFO की

EPFO की तिकड़म में सुप्रीम कोर्ट फंसा, पेंशनरों की आशा धूमिल

सुप्रीम कोर्ट
Share this article

सुप्रीम कोर्ट की त्रिसदस्यीय बेंच ने ईपीएस-95 के तहत आने वाले पेंशनरों की मुश्किलें बढ़ा दी हैं. जिस सीधे-सादे मामले पर पिछले 29 जनवरी 2021 को सुप्रीम कोर्ट को न्याय देना था, अब उसी दिन उसने ही पेंशनरों की न्याय पाने की आशा को धूमिल कर दिया है. जस्टिस उदय यू. ललित की अध्यक्षता वाले इस बेंच ने कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (EPFO) के रिव्यू पिटीशन को मंजूर कर उस पर अपने पूर्व के वेतन के अनुरूप पेंशन देने के आदेश पर पुनर्विचार करना मंजूर कर लिया है.

इस रिव्यू पिटीशन की सुनवाई में जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस एस. रविंद्र भट शामिल हैं. उन्होंने संयुक्त रूप से पिछले ही सप्ताह EPFO के रिव्यू पिटीशन के साथ केंद्र सरकार की अपील की भी सुनवाई की है. वयोवृद्ध पेंशनरों की न्याय पाने की आशा पर पानी फेरने वाले इन कदमों पर मातोश्री जनसेवा सामाजिक बहुउद्देशीय संस्था, नागपुर के अध्यक्ष दादा झोड़े ने निराशा व्यक्त की है. उन्होंने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट के इस कदम से सभी सेवानिवृत वयोवृद्धों में नाराजगी पैदा हुई है.

झोड़े ने कहा कि EPFO के रिव्यू पिटीशन और केंद्र सरकार के जिस SLP को सुप्रीम कोर्ट को खारिज करनी चाहिए थी, उन पर पुनर्विचार करने का निर्णय कर सुप्रीम कोर्ट ने अपने ही पूर्व के फैसले पर प्रश्न चिह्न लगाया है और वर्षों से सुप्रीम कोर्ट की ओर आशा भरी नजरों से टकटकी लगाए वयोवृद्धों को नाराज किया है. उन्होंने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति हम पेंशनरों के लिए अत्यंत कष्टप्रद है. EPFO और केंद्र सरकार दोनों ने ही पेंशनरों को न्याय दिलाने के मार्ग में अड़चनें पैदा की है.

अब हमारी सबसे बड़ी अदालत, केरल हाईकोर्ट के उस निर्णय पर पुनर्विचार करेगी, जिसमें 12 अक्टूबर 2018 को उसने 15 हजार पेंशनरों के 507 वादों की संयुक्त सुनवाई कर निर्णय दिया था और 1 सितंबर 2014 से EPS-95 के पेंशन संबंधी नियमों में किए गए बदलाव को असंवैधानिक ठहराते हुए रद्द कर दिया था.

उल्लेखनीय है कि केरल हाईकोर्ट के उपरोक्त निर्णय के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट में दाखिल EPFO की SLP No. 8658-8659 /2019 को सुप्रीम कोर्ट के ही तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस दीपक गुप्ता और जस्टिस संजीव खन्ना के 1 अप्रैल 2019 को खारिज कर दिया था. उन्होंने केरल हाईकोर्ट के 12 अक्टूबर 2018 फैसले को उचित ठहराते हुए  लागू करने का आदेश भी दिया था.

दादा झोड़े ने कहा कि दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति यह है कि जिस फैसले को दी गई चुनौती को सुप्रीम कोर्ट खारिज कर चुका है, अब उसी फैसले पर वह पुनर्विचार करने को तैयार हो गया है. उन्होंने कहा कि EPFO और केंद्र सरकार द्वारा अदालती आदेशों को अपने दांव-पेंच से ठेंगा दिखाने के तिकड़मों को सुप्रीम कोर्ट के इस ताजा निर्णय से बल ही मिला है. जो अत्यंत दुःखदाई है.

Leave a Reply