कृष्ण किसलय की कृति ‘सुनो मैं समय हूं’ का बड़ा कीर्तिमान

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कृष्ण किसलय
ब्रहमांड के उद्भव-विकास-विस्तार पर आधारित अपनी लब्धप्रतिष्ठ कृति "सुनो मैं समय हूं" के साथ सुप्रसिद्ध कथाकार-पत्रकार कृष्ण किसलय.

ब्रह्माण्ड के उद्भव-विकास-विस्तार पर आधारित पुस्तक का साल भर में दूसरा री-प्रिंट सामने आया

 
डेहरी-आन-सोन (बिहार) : आदमी की हजारों सालों की आदिम जिज्ञासाओं से संबंधित विज्ञान के इतिहास और सभ्यताओं के दार्शनिक सवालों के साथ करोड़ों-अरबों सालों से जारी ब्रह्माण्ड के उद्भव-विकास-विस्तार की गुत्थी और जीवन उत्पति की आदिम पहेली को सिलसिलेवार समेटनी वाली अपनी विषय-वस्तु पर केंद्रित अपनी तरह की पहली पुस्तक “सुनो मैं समय हूं” एक साल में दूसरी बार री-प्रिंट हो चुकी है. घोषित टैगलाइन “गुजरे हुए कल, वर्तमान और आने वाले कल का भी” वाली वरिष्ठ विज्ञान लेखक कृष्ण किसलय की पुस्तक “सुनो मैं समय हूं” का प्रकाशन भारत सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्रालय (उच्चतर शिक्षा विभाग) के अंतर्गत 1957 में स्थापित नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया (एनबीटी) ने किया है.

कृष्ण किसलय
सांस्कृतिक सर्जना की संवाहक संस्था सोन कला केेंद्र के संरक्षक प्रतिष्ठित हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. श्यामबिहारी प्रसाद को पुस्तक ‘सुनो मैं समय हूं’ भेंट करते लेखक कृष्ण किसलय. साथ में संस्था अध्यक्ष दयानिधि श्रीवास्तव, कार्यकारी अध्यक्ष जीवन प्रकाश, उपाध्यक्ष सुनील शरद, सचिव निशांत राज, उप सचिव सत्येंद्र गुप्ता, कोषाध्यक्ष राजीव सिंह.  

2019 में एनबीटी की ओर से इस पुस्तक “सुनो मैं समय हूं” का पहला संस्करण हिन्दी में प्रकाशित हुआ था. वर्ष 2019 के ही अंत मेंं यह पुस्तक री-प्रिंट भी हो गई. यानी जाहिर है, पाठकों की मांग पर दूसरी बार छापी गई. एनबीटी के हिंदी संपादक पंकज चतुर्वेदी द्वारा भेजी गईं पुस्तक की प्रथम आवृति (री-प्रिंट) की मानार्थ प्रतियां कृष्ण किसलय जी को मिल चुकी है.

चार दशक से कर रहे लेखन
आंचलिक इतिहास और पुरातत्व के अन्वेषक, विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं के स्तंभकार और संपादक कृष्ण किसलय विज्ञान विषयों पर चार दशक से लेखन कर रहे हैं. इनका पहला विज्ञान लेख सुप्रसिद्ध पत्रकार एम.जे. अकबर के संपादन में प्रकाशित आनंद बाजार समूह की राष्ट्रीय हिन्दी साप्ताहिक (रविवार) में 1978 में प्रकाशित हुआ था. इनके दर्जनों खोजी और विशेष विज्ञान रिपोर्ट दैनिक जागरण में देहरादून और दिल्ली के राष्ट्रीय संस्करण में भी प्रकाशित हो चुकी हैं. दैनिक जागरण के साप्ताहिक विज्ञान पृष्ठ (खोज) में 72 श्रृखंला (किस्त) में प्रकाशित इनका विज्ञान स्तंभ (प्रलय की ओर सृष्टि) हिंदी विज्ञान पत्रकारिता (प्रिंट) के इतिहास में सबसे लंबा धारावाहिक है.

बीते वर्ष 2019 के उत्तरार्द्ध (जुलाई, अक्टूबर, नवंबर) में दैनिक भास्कर समूह की साप्ताहिक उपहार पत्रिका “अहा! जिंदगी” ने विज्ञान-पर्यावरण विषयों पर ही इनकी तीन आवरण कथाएं (कवर स्टोरी) प्रकाशित की. हिंदी विज्ञान पत्रकारिता पर इनका शोध आलेख अमरेंद्र कुमार (स्वर्गीय) के संपादन में दिल्ली से प्रकाशित पुस्तक (पत्रकारिता : विधाएं और आयाम) में संकलित है और यह पुस्तक बिहार के दो विश्वविद्यालयों के भोजपुरी विभाग में संदर्भ ग्रंथ के रूप में 2012-13 में स्वीकृत की गई है.

कृष्ण किसलय बिहार की लोकभाषा (भोजपुरी) के प्रथम विज्ञान वार्ताकार भी हैं, जिनके आलेख का प्रसारण आकाशवाणी के पटना केेंद्र से आरती कार्यक्रम के अंतर्गत चार दशक पहले हुआ था. विज्ञान लेखन के लिए इन्हें इंडियन साइंस राइटर्स एसोसिएशन, दिल्ली की राष्ट्रीय संगोष्ठी (देहरादून) में प्रोफेशनल साइंस जर्नलिज्म एवार्ड प्रदान किया गया.

कृष्ण किसलय ने विज्ञान पत्रकारिता के साथ हिन्दी की खोजी पत्रकारिता और आंचलिक पत्रकारिता (बिहार के सोन नद अंचल) के क्षेत्र में भी अनेक मील के पत्थर स्थापित किए हैं. वीर कुंवर सिंह से पहले और बिरसा मुंडा से भी पहले अंग्रेजी राज के प्रथम विद्रोही राजा नारायण सिंह की प्रामाणिक सत्यकथा को खोजकर राष्ट्रीय स्तर पर सामने लाने का श्रेय इन्हें जाता है. इन्होंने चार दशक पहले बालअपहर्ता गिरोह के अंतरप्रदेशीय जाल का पर्दाफाश भारत की अपने समय की सर्वाधिक प्रसारित पत्रिका मनोहर कहानियां में किया था और वह खोजी रिपोर्ट इतनी महत्वपूर्ण मानी गई कि उसका रूपांतर मित्र प्रकाशन की अंग्रेजी पत्रिका प्रोब इंडिया में प्रकाशित हुआ.

इनके संपादन में प्रकाशित ‘सोनमाटी’ (आंचलिक साप्ताहिक) दक्षिण भारत में पीएच.डी. से संबंधित शोध का हिस्सा बना और जिसकी चर्चा-प्रशंसा सारिका (टाइम्स आफ इंडिया समूह) ने, पत्र लिखकर हिन्दी के बड़े प्रसिद्ध विदानों-साहित्यकारों ने की. स्थानीय इतिहास, पुरातत्व और संस्कृति-संचार के अध्येता-अन्वेषक के रूप में सक्रिय रहे कृष्ण किसलय ने दो दशक पहले अति आरंभिक मानव सभ्यता चरण निर्धारण की दिशा में नई सोच को जोडऩे का कार्य किया. वह सोनघाटी पुरातत्व परिषद (पंजीकृत संस्था) की बिहार इकाई के सचिव के रूप में मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश के सीमावर्ती बिहार-झारखंड की सोन-घाटी सभ्यता के सिंधुघाटी से भी प्राचीन होने और सोन-घाटी से ही पूरे एशिया में मानव सभ्यता के प्रसरित होने की संकल्पना को नए तथ्य-साक्ष्य, शोध-खोज के आधार पर राष्ट्रीय क्षितिज पर स्थापित करने के प्रयास में संलग्न हैं.

नवभारत टाइम्स, अमर उजाला, दैनिक जागरण, दैनिक प्रभात आदि समाचारपत्रों में वाराणसी, देहरादून, चंडीगढ़, आगरा, मेरठ में रिपोर्टिंग, संपादन के महत्वपूर्ण, शीर्ष पद पर कार्य कर चुके नौकरी से सेवानिवृत डालमियानगर (डेहरी-आन-सोन, बिहार) निवासी कृष्ण किसलय फिलहाल राष्ट्रीय-प्रादेशिक पत्र-पत्रिकाओं में स्वतंत्र लेखन-पत्रकारिता का कार्य कर रहे हैं. तीन दशक पहले आंचलिक फिल्म-नाटकों में अभिनय कर चुके हिंदी नाटक की कई पुस्तकों के साथ कविता-कहानी के भी प्रतिष्ठित रचनाकार रहे कृष्ण किसलय चार दशक पुराना (1979 में स्थापित) देश के एक सर्वश्रेष्ठ लघु मीडिया ब्रांड सोनमाटी मीडिया समूह के आंचलिक पाक्षिक (सोनमाटी) और सोन अंचल केेंद्रित न्यूज-व्यूज वेबपोर्टल (सोनमाटीडाटकाम) के समूह संपादक हैं. वह कई स्थानीय संस्थाओं से जुड़कर सांस्कृतिक-सामाजिक संवद्र्धन की गतिविधियों में भी सक्रिय हैं.

हजारों सालों के दार्शनिक चिंतन के वैदिक-पौराणिक संदर्भ और आधुनिक विज्ञान के इतिहास, के साथ ब्रह्माण्ड के उद्भव, जीवन की उत्पति और पृथ्वी पर आदमी के अवतरण की अब तक अनकही प्रमाणित कहानी है यह पुस्तक (सुनो मैं समय हूं)। दिमाग को चकरा देने वाली है ब्रह्माण्ड की गुत्थी। आखिर विराट ब्रह्माण्ड का सटीक संचालन कैसे हो रहा है और यह कहां फैल रहा है? ईश्वर ने बनाई सृष्टि तो ईश्वर को किसने बनाया? नियम से विकसित हुए ब्रह्माण्ड में आखिर ईश्वर का क्या काम? वास्तव में आदमी तो तीन अरब साल पहले पैदा हुए एककोशीय जीव बैक्टीरिया का वंशज और बंदर का बेटा है. आदिम वनस्पति शैवाल 130 करोड़ साल पहले सूखी धरती पर आ चुका था और भारत में बिहार की सोन नद घाटी में बहुकोशीय जीवन का आरंभ सौ करोड़ साल से भी पहले हो चुका था. बिन्ध्य-कैमूर पर्वत क्षेत्र के तीन ओर रमडिहरा (रोहतास, बिहार), मैहर (मध्य प्रदेश) और चित्रकूट (उत्तर प्रदेश) में 60-65 करोड़ साल पुराने जीवाश्म प्राप्त हुए हैं.

(रिपोर्ट : निशांत राज)  

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