सुप्रीम कोर्ट के फैसले से ‘सूचना का अधिकार’ कानून और मजबूत होगा

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आरटीआई

नागपुर : सूचना का अधिकार (आरटीआई) संबंधी मामले में एक अहम फैसला लेते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट को भी एक सार्वजनिक प्राधिकरण माना, जिसके तहत अब भारत के मुख्य न्यायाधीश का कार्यालय भी सूचना का अधिकार (आरटीआई) कानून के दायरे में आ गया है.

उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने इस ऐतिहासिक निर्णय में स्पष्ट कहा है कि मुख्य न्यायधीश यानी चीफ जस्टिस का कार्यालय भी अब सूचना के अधिकार के तहत आएगा. इस निर्णय को लेते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कई टिप्पणियां कीं, जिनमें से एक ये भी रही कि कानून से ऊपर कोई भी नहीं है, सुप्रीम कोर्ट के जज भी नहीं.

सुप्रीम कोर्ट द्वारा लिए गए इस निर्णय का स्वागत करते हुए दादा रामचंद बाखरू सिंधु महाविद्यालय के रजिस्ट्रार एवं सूचना अधिकार केंद्र, यशदा, पुणे के अतिथि व्याख्याता नवीन महेशकुमार अग्रवाल ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय से सूचना का अधिकार कानून को और मजबूती मिलेगी. सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने एक बार फिर स्पष्ट कर दिया कि कानून से ऊपर कोई भी नहीं हैं, स्वयं सुप्रीम कोर्ट भी नहीं.

सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले के तहत निम्न लिखित टिप्पणियां भी की हैं, जिससे सूचना के अधिकार दायरा भी साफ हो गया है. ये टिप्पणियां इस तरह की हैं-

– सुप्रीम कोर्ट के आरटीआई के तहत आने से पारदर्शिता बढ़ेगी.

– इससे न्यायिक स्वायत्तता अधिक मजबूत होगी.

– इससे ये भाव मजबूत होगा कि कानून से ऊपर कोई नहीं, सुप्रीम कोर्ट के जज भी नहीं.

चीफ जस्टिस का कार्यालय पब्लिक अथॉरिटी, इसलिए आरटीआई के तहत आना चाहिए.

– आरटीआई का इस्तेमाल जासूसी के साधन के रूप में नहीं किया जा सकता है.

– पारदर्शिता न्यायिक स्वतंत्रता को कमजोर नहीं करती.

कोलेजियम की जानकारी अब सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर डाली जाएगी.

चीफ जस्टिस रंजन गोगोई का सुप्रीम कोर्ट में आज शनिवार, 16 नवंबर को आखिरी दिन है. उनका कार्यकाल करीब साढ़े 13 महीने का रहा. इस दौरान उन्होंने कुल 47 फैसले सुनाए, जिनमें से यह ऐतिहासिक फैसला भी शामिल है.

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