सुप्रीम कोर्ट की 7 जजों की संवैधानिक पीठ ने 6:1 के बहुमत से दिया बड़ा फैसला
नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (एससी-एसटी) के आरक्षण को लेकर आज बड़ा फैसला सुनाया. सुप्रीम कोर्ट की 7 जजों की संवैधानिक पीठ ने 6:1 के बहुमत से आदेश जारी करते हुए कहा कि एससी-एसटी कैटेगरी के भीतर ज्यादा पिछड़ों के लिए अलग आरक्षण कोटा दिया जा सकता है, क्योंकि यह जमीनी हकीकत के हिसाब से जरूरी है.
इसके पहले 2004 के फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि राज्यों के पास आरक्षण देने के लिए अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की सब कैटेगरी बनाने का अधिकार नहीं है.
मामले में सुनवाई करके हुए जस्टिस बी.आर. गवई ने गुरुवार, 1 अगस्त को कहा कि देश की जमीनी हकीकत से इनकार नहीं किया जा सकता है. एससी-एसटी के भीतर ऐसी श्रेणियां हैं, जिन्हें सदियों से उत्पीड़न का सामना करना पड़ रहा है. ऐसे लोगों के बारे में सोचने की जरूरत है. इनके उप-वर्गीकरण का आधार यह है कि एक बड़े समूह में से एक ग्रुप को अधिक भेदभाव का सामना करना पड़ता है.
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति को लेकर बहुमत से अपना बड़ा फैसला सुना दिया है. चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने माना है कि एससी-एसटी आरक्षण के तहत जातियों को अलग से हिस्सा दिया जा सकता है.
आपको याद होगा कि पंजाब में वाल्मीकि और मजहबी सिख जातियों को अनुसूचित जाति आरक्षण का आधा हिस्सा देने के लिए बने कानून को 2010 में हाईकोर्ट ने निरस्त किया था. इसके बाद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई.
आज इसी याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण को लेकर अपना बहुमत वाला फैसला दिया. इसमें यह माना जाता है कि एससी-एसटी कैटेगरी में भी कई ऐसी जातियां हैं, जो बहुत ही ज्यादा पिछड़ी हुई हैं. इन जातियों के सशक्तिकरण की सख्त जरूरत है. कोर्ट ने उनके लिए यह व्यवस्था देकर एक बड़ी पहल की है.