जंग का ऐलान मोदी से, भिड़ेंगे लेफ्ट से राहुल जी

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जंग
Congress leader Rahul Gandhi

पुश्तैनी सीटें और जंग का मैदान छोड़ दूसरी बार फिर भागे दक्षिण की ओर 

*कल्याण कुमार सिन्हा- 
विश्लेषण :  इंडिया गठबंधन के प्रमुख घटक अखिल भारतीय कांग्रेस पार्टी गठबंधन में कितना प्रमुख है, इस बात पर लगातार भ्रामक स्थिति बनी हुई है. सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के मुकाबले में अब कांग्रेस कहां जा खड़ी हुई है, यह देख, आम मतदाता के लिए अचंभित होने की बारी आ गई है. पार्टी के मुखिया राहुल गांधी जंग का ऐलान करते रहे हैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा से. लेकिन अखाड़ा छोड़ वे फिर भाग खड़े हुए दक्षिण की ओर. चले थे नरेंद्र मोदी को पछाड़ने, लेकिन भिड़ने चले हैं अब वामदल से. उधर कांग्रेस की राजमाता श्रीमती सोनिया गांधी भी ऐन लोकसभा चुनाव से पूर्व लोकसभा चुनाव से पीछा छुड़ा कर राजस्थान के रास्ते राज्यसभा में जा बैठीं.

दूसरी बार वायनाड भागे 

कांग्रेस लगातार 2014 से राहुल गांधी को भाजपा और नरेंद्र मोदी के मुकाबले अपने मजबूत चेहरे के रूप में, अपना सिपहसालार बना उन्हें सामने रखती आ रही है. लेकिन, 2014 में अपनी परंपरागत सीट अमेठी खो बैठने के बाद राहुल, मानो आत्मविश्वास ही खो चुके हैं.  2019 में वे केरल के वायनाड भाग खड़े हुए. इस बार फिर अपने खानदानी अमेठी या रायबरेली छोड़, खबर है कि वायनाड से अगले 3 अप्रैल को नामांकन दाखिल करेंगे.

सोचने की बात है कि जब सिपहसालार ही मैदान छोड़ कहीं और ठिकाना बनाने की तैयारी कर रहा हो तो जंग के मैदान में उसकी फौज किस हौसले से अपने ताकतवर प्रतिद्वंद्वी का मुकाबला कर पाएगी? जंग चाहे कैसा भी हो, सिपहसालार के हौसले पर ही जंग की सूरत बनती या बिगड़ती है. राहुल गांधी विभिन्न मुद्दों को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर लगातार हमलावर रहे. मोदी के खिलाफ उनकी आक्रामकता अन्य विपक्षी दलों को भी लुभाता रहा. लेकिन तमाम कसरतों के बाद आज उनकी रणछोड़ वाली भूमिका उनके समर्थकों को दिग्भ्रमित कर रही है.

हिंदी भाषी बेल्ट ही रहा है केंद्र की सत्ता के जंग का मैदान

गौर करने वाली बात है कि आजादी के बाद से ही देश की सत्ता के लिए जंग का मैदान देश का हिंदी भाषी बेल्ट रहा है. यही देख 2014 में जब नरेंद्र मोदी भाजपा के प्रधानमंत्री का चेहरा बने तो गुजरात छोड़, उन्होंने हिंदी भाषी बेल्ट को ही अपने जंग का मैदान बना लिया. अब तीसरी बार उन्हें फिर भाजपा ने वाराणसी से अपना प्रत्याशी घोषित कर दिया है. वह भी अपने पहले लिस्ट में उसने पहला नाम नरेंद्र मोदी का ही रखा. अर्थात, चुनावी जंग में अपने सिपहसालार को आगे रख कर न केवल ‘अबकी बार चार सौ पार’ के नरेंद्र मोदी के दावे पर अपनी मुहर भी लगा दी, बल्कि कांग्रेस समेत 28 मजबूत दलों के इंडिया गठबंधन को दहलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है.

कांग्रेस की पहली लिस्ट में 17वें नंबर पर आया नाम  

दूसरी ओर, कांग्रेस ने जब अपने उम्मीदवारों की पहली सूची जारी की तो अपने सिपहसालार को उसे 17वें नंबर पर रखना पड़ा, वह भी फिर केरल के वायनाड से. जबकि उसी सीट के लिए केरल की सत्तारूढ़ सीपीएम पहले ही न केवल अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया, बल्कि यह सलाह भी दे डाली कि कांग्रेस को चुनौती तो उत्तर भारत में है, कांग्रेस के नेता (राहुल) को उत्तर भारत से चुनाव लड़ना चाहिए. मजे की बात यह है कि सीपीएम भी इंडिया गठबंधन का ही घटक दल है.

दो बार की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ ब्यर्थ की कसरत? 

कांग्रेस और उसके गांधी परिवार के सिरमौरों के हालात ने केंद्र की सत्ता के इस जंग के ऐलान के साथ ही भाजपा ने जोरदार बढ़त बना ली है. विपक्षी दलों में अपने आप को देश की जनता के सबसे निकट साबित करने के साथ ही राजनैतिक तौर पर पिछड़ती जा रही अपनी पार्टी का आत्मबल बढ़ाने के उद्देश्य से दो-दो बार कांग्रेस की ‘भारत जोड़ो’ यात्रा का नेतृत्व करने वाले स्वयं राहुल गांधी का आत्मबल इस कदर धूलधूसरित नजर आएगा, इसका अंदाजा किसीको नहीं था. नहीं तो, अपनी परंपरागत पुश्तैनी सीट अमेठी नहीं, रायबरेली को तो चुनते. 

इंडिया गठबंधन अपना चेहरा तय नहीं कर पाया 

28 दलों में अब इंडिया गठबंधन में अब वास्तव में कितने बचे हैं, गठबंधन धर्म का पालन करने वाले कितने हैं, या फिर कांग्रेस को कौन कितना महत्व दे रहा है, यह सारे सवाल बेमानी बन गए हैं. लोकसभा चुनाव के पहले चरण के मतदान के लिए नामांकन दाखिल करने की आखिरी तिथि 28 मार्च बीत चुकी है. गौर करने वाली बात यह भी है कि बिहार में नीतीश कुमार, उत्तर प्रदेश में जयंत चौधरी, जम्मू-कश्मीर में फारूक अब्दुल्ला और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के रिश्ता तोड़ने के बाद भी इंडिया गठबंधन में मतैक्य नहीं बन पाया है कि नरेंद्र मोदी के खिलाफ उनके पास चेहरा कौन है…? कांग्रेस के तमाम प्रयासों के बाद भी राहुल गांधी को गठबंधन का चेहरा मानने को कोई तैयार है, यह नजर नहीं आता.

नाजुक स्थिति में है कांग्रेस और गांधी परिवार 

एक समय था, जब केंद्र की सत्ता में लम्बे समय तक कांग्रेस की तूती बोलती रही. डॉ. मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्रित्व काल में राहुल गांधी और श्रीमती सोनिया गांधी ही सिरमौर बने हुए थे. उस काल में राहुल जी जलवे से कांग्रेस भी आत्ममुग्ध थी. एक के बाद एक सरकार में बड़े-बड़े घोटाले उजागर होते गए. फिर भी कांग्रेस और गांधी परिवार आत्मविभोर बना रहा. और अब 50 से अधिक वर्षों तक देश पर शासन करने वाली कांग्रेस और गांधी परिवार की हालत ऐसी नाजुक होती जा रही है, यह करनी और सोच में गिरावट का ही परिणाम हो सकता है.

कीमत चुका कर भी राहुल को आगे रख रही कांग्रेस 

राहुल गांधी ने पिछले वर्षों में लगातार भाजपा और नरेंद्र मोदी पर तरह-तरह के आरोप उछाले, अनेक मुद्दों पर घेरने की कोशिश की. लेकिन उनके द्वारा उछाले गए सभी आरोप और मुद्दे दम तोड़ते ही नजर आए. फिर भी कांग्रेस के नेताओं ने उन्हें अपना हीरो बनाए रखा. इसमें कोई शक नहीं कि कांग्रेस ने अपनी कीमत पर राहुल गांधी को उनकी बार-बार की विफलताओं के बावजूद उन्हें ही आगे रखा है. वे अभी भी कांग्रेस की एकमात्र आशा बने हुए हैं.

लेकिन, अब इस मौजूदा 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद देश की सबसे पुरानी कांग्रेस पार्टी अपने अस्तित्व को कितना सुरक्षित रख पाती है, गांधी परिवार अपना महत्व राजनीति में कितना बनाए रख पाता है, राहुल गांधी अपना जलवा किस हद तक बरकरार रखते हैं, यह तो चुनाव परिणाम आने के बाद के दिनों में ही देखने को मिलेगा.

जंग

– कल्याण कुमार सिन्हा. 

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