महाराष्ट्र के चुनावी दंगल में चल पड़ा वंशवाद का घमासान

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वंशवाद

विधानसभा चुनाव-2019 : समीक्षा 
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव
का इस बार का मैदान वंशवाद के दंगल का घमासान दिखाने वाला है. चुनाव में उतर चुके कई नए युवा चेहरे वंशवाद की झलक दिखला रहे हैं. इन युवा चेहरों में अनेक चेहरे किसी न किसी राजनीतिक परिवार से जुड़े हैं.

दलों के नेता अपनी-अपनी अगली पीढ़ी के लिए चुनावी मैदान को लॉन्च पैड के तौर पर इस्तेमाल कर रहे हैं. लिहाजा, महाराष्ट्र भी अब वंशवाद की राजनीति से अछूता नहीं रहा. कांग्रेस, एनसीपी (राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी) और शिवसेना सहित वंशवाद विरोधी भारतीय जनता पार्टी भी इस बार की चुनावी गंगा में हाथ धोने का लोभ संवरण नहीं कर पाई हैं. 
वंशवाद
महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव-2019 में राज्य के दो सबसे ताक़तवर राजनीतिक परिवारों की तीसरी पीढ़ी के चुनावी मैदान में उतरने की गवाही दे रहा है- इनमें हैं पवार और ठाकरे परिवार. इन्हें महाराष्ट्र की राजनीति के शीर्ष परिवारों के रूप में देखा जाता है और यहां की राजनीति अक्सर इन्हीं दोनों परिवारों के ईर्द-गिर्द घूमती दिखती है.

परम्परा तोड़ उतरे आदित्य ठाकरे  
इधर आदित्य ठाकरे, जो शिवसेना के संस्थापक बाल ठाकरे के पोते हैं, ठाकरे परिवार की परम्परा तोड़ कर चुनावी मैदान में उतरने वाले पहले सदस्य हैं. वहीं पवार परिवार से राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के प्रमुख और कद्दावर नेता शरद पवार के पोते रोहित पवार का भी यह पहला चुनाव है.

शिवसेना राज्य की सत्ताधारी पार्टियों में से एक रही है और इसके संस्थापक बाल ठाकरे राज्य की राजनीति में हमेशा ही एक कद्दावर शख्सियत रहे. क्षेत्रीयता और विभाजनकारी हिंदुत्व की पहचान वाली शिवसेना ने एक बार साल 1995 में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री का पद हासिल किया. इसके साथ ही साल 2014 से वह केंद्र और राज्य में भाजपा की अगुवाई वाली सरकार का हिस्सा भी रही है. लेकिन खुद को रिमोट कंट्रोल बताने वाले इसके संस्थापक बाल ठाकरे ने चुनावी मैदान में कभी अपना हाथ नहीं आजमाया. न तो वे और न ही उनके बेटे उद्धव कभी चुनाव लड़े. 2012 के बाद से शिवसेना की कमान उद्धव के हाथों में ही है.

उद्धव के चचेरे भाई राज ठाकरे ने भी कभी चुनावी अखाड़े में आजमाइश नहीं की. बाला साहेब ठाकरे से प्रेरित राज ठाकरे ने शिवसेना से अलग महाराष्ट्र नव निर्माण सेना (मनसे) के नाम से पार्टी भी बनाई और 2014 में चुनाव लड़ने का मन भी बनाया और सार्वजनिक रूप से इसकी घोषणा तक की, लेकिन बाद में वो इससे पीछे हट गए.

लेकिन इस चुनाव में ठाकरे परिवार ने ऐतिहासिक फैसला लेते हुए तीसरी पीढ़ी के ठाकरे यानी आदित्य ठाकरे को मुंबई की वर्ली विधानसभा सीट से उतारा है. यानी चुनाव के मैदान में उतरने वाले वे अब पहले ठाकरे बन गए हैं.
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नई पीढ़ी को चुनाव में आजमा चुका है पवार परिवार
दूसरी ओर पवार परिवार की तीसरी पीढ़ी के रोहित पवार भी करजात-जमखेद से चुनावी मैदान में उतरे हैं. ठाकरे के उलट पवार ने कभी ऐसा नहीं माना कि चुनाव में उनकी दिलचस्पी नहीं है.

दशकों तक महाराष्ट्र की राजनीतिक क्षितिज पर शरद पवार के वर्चस्व के बाद उनकी बेटी सुप्रिया सुले लोकसभा चुनाव जीत कर संसद पहुंची. इसके अलावा उनके भतीजे और राज्य में विपक्ष के नेता अजीत पवार उप-मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं.

2019 के विधानसभा चुनाव में पवार परिवार अपनी नई पीढ़ी के साथ उतरा है. अजीत पवार के बेटे पार्थ इसी साल मई में हुए लोकसभा चुनाव में हाथ आजमा चुके हैं. हालांकि पहली बार में उन्हें नाकामी मिली. अब शरद पवार के दूसरे पोते रोहित लॉन्च के लिए तैयार हैं.

भाजपा भी पीछे नहीं : 25 उम्मीदावर नेताओं के हैं वंशज 
वंशवाद का हमेशा विरोध करने वाली भाजपा इस बात का दावा करती है कि उसकी पार्टी में वंशवाद नहीं है. वंशवाद के ही मुद्दे पर वो कांग्रेस पर खुला प्रहार भी करती आई है, लेकिन महाराष्ट्र में की कहानी कांग्रेस से उलट नहीं है. यहां उन्होंने ऐसे 25 उम्मीदावर मैदान में उतारे हैं जिनका राजनीतिक परिवारों से ताल्लुक है. भाजपा की सूची में कई बड़े नाम हैं.
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दिवंगत नेता गोपीनाथ मुंडे की बेटी पंकजा मुंडे पराली से मैदान में हैं. फड़णवीस सरकार में मुंडे बाल एवं महिला कल्याण मंत्री रही हैं. उनकी बहन प्रीतम बीड से सांसद हैं. राजनीतिक विवाद तब भड़का, जब भाजपा ने अपने कद्दावर नेता एकनाथ खड़से को टिकट नहीं दिया, उन्हें भ्रष्टाचार के आरोपों में मंत्रिमंडल से हटाया गया था. हालांकि भाजपा ने उनकी बेटी रोहिणी को टिकट दिया है. खड़से की बहू रक्षा पहले ही सांसद हैं. आकाश फुंडकर दिवंगत भाजपा नेता पांडुरंग फुंडकर के बेटे हैं और बुलढाणा के खामगांव से चुनावी मैदान में अपनी किस्मत आजमा रहे हैं. भाजपा के वरिष्ठ नेता एनएस फरांडे की बहू देवयानी फरांडे नासिक से चुनाव लड़ रही हैं.

दूसरे दलों से आए नेताओं के वंशजों को भी भाजपा की उम्मीदवारी 
महाराष्ट्र की अन्य पार्टियों से कई नेता भाजपा में शामिल किए गए हैं. इनमें भी कई ऐसे हैं जो वंशवाद की परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं. एनसीपी के पूर्व नेता और मंत्री रह चुके गणेश नाइक अपने बेटे संदीप नाइक के साथ भाजपा में शामिल हो गए. अब संदीप नवी मुंबई से भाजपा के प्रत्याशी बनाए गए हैं.

पूर्व मुख्यमंत्री नारायण राणे भाजपा के राज्यसभा सांसद हैं. लेकिन उनके बेटे, जो अब तक कांग्रेस के विधायक थे, भाजपा ने उन्हें नामांकन भरने से ठीक एक दिन पहले पार्टी में शामिल करते हुए चुनाव में उतार दिया.

मधुकर पिचड़ और उनके बेटे वैभव दशकों तक शरद पवार के वफादार थे, लेकिन अब वैभव भाजपा की टिकट पर अकोला से मैदान में हैं. राणा जगजीत सिंह का तो शरद पवार के परिवार से संबंध है. वे एनसीपी के विधायक थे और उनके पिता पद्मसिंह एनसीपी के सांसद. लेकिन दोनों भाजपा में शामिल हो गए और राणा जगजीत सिंह भाजपा की टिकट पर चुनावी मैदान में हैं.

एक और कद्दावर राजनीतिक परिवार अहमदनगर से विखे परिवार है, राधाकृष्ण विखे पाटिल 2019 के लोकसभा चुनाव की घोषणा से पहले तक विधानसभा में कांग्रेस के विपक्ष के नेता थे लेकिन उसके बाद उनके बेटे डॉ. सुजय विखे पाटिल भाजपा की टिकट पर लोकसभा चुनाव जीत गए, अब पिता राधाकृष्ण भी भाजपा की टिकट पर चुनावी मैदान में हैं.

कांग्रेस और एनसीपी में वंशवाद का बोलबाला
इस बात की लगातार आलोचना की जाती है कि कभी कांग्रेस और एनसीपी में कुछ ही परिवारों का प्रभुत्व रहा है और ये ही परिवार इन पार्टियों को चला रहे हैं. यहां तक कि जब दोनों ही पार्टियों के नेता लगातार सत्तारूढ़ गठबंधन में शामिल हो रहे हैं उसके बाद भी उनकी पार्टियों में जो टिकटें दी जा रही हैं उसमें भी वंशवाद का जोर ही दिख रहा है.

महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के दिवंगत नेता विलासराव देशमुख के बेटे अमित देशमुख लातूर से विधायक हैं और दोबारा यहीं से चुनावी मैदान में हैं. लेकिन इस चुनाव में वे अकेले अपने परिवार से नहीं उतरे हैं बल्कि उनके साथ उनके छोटे भाई धीरज भी लातूर ग्रामीण से चुनावी अखाड़े में हैं.

विश्वजीत कदम दिवंगत कांग्रेस नेता पतंगराव कदम के बेटे हैं. वे अपने पिता की सीट कड़ेगांव-पालुस से ही मैदान में उतरे हैं.

पूर्व केंद्रीय गृह मंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सुशील कुमार शिंदे की बेटी प्रणति शिंदे सोलापुर से अपनी किस्मत आजमाइश कर रही हैं.

एनसीपी में धनंजय मुंडे, जिन्हें कभी गोपीनाथ मुंडे के वारिस के रूप में देखा गया था. लेकिन वरिष्ठ मुंडे ने भतीजे पर अपनी बेटी को तरजीत दी तो धनंजय ने एनसीपी का दामन थाम लिया.

वह महाराष्ट्र विधानसभा में पार्टी के नेता हैं और अपनी बहन पंकजा के विरुद्ध एनसीपी की टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं. वरिष्ठ एनसीपी नेता और महाराष्ट्र के पूर्व उपमुख्यमंत्री छगन भुजबल येओला से एनसीपी की टिकट पर चुनावी मैदान में हैं तो उनके बेटे पंकज एनसीपी के लिए नंदगांव से अखाड़े में हैं.

माना जाता है कि इन परिवारों के पास वर्षों से वफादार मतदाता हैं, इसलिए उनके क्षेत्र में उनका विरोध नहीं होता है. यही वजह है कि हर पार्टी उन्हें अपने पाले में चाहती है. और यही कारण है कि वंशवाद की राजनीति का रोग अन्य दलों के साथ अब शिवसेना और भाजपा को भी लगता दिखाई दे रहा है. 

 

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