सीबीआई की विवशता और कार्यप्रणाली फिर आलोचना का शिकार बनी
…मद्रास हाई कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट से कहीं बहुत आगे जाकर सीधे सीधे-सीधे आदेश ही दे डाला है. कोर्ट ने कहा, “केंद्र सरकार को निर्देश दिया जाता है कि सीबीआई को ज्यादा ताकत और अधिकार क्षेत्र के साथ वैधानिक दर्जा देने के लिए अलग कानून बनाने पर विचार और उस पर फैसला करे.” उसने कहा है कि सीबीआई एक ‘स्वायत्त संस्था’ होनी चाहिए जो सिर्फ संसद के प्रति जवाबदेह हो. हाई कोर्ट ने 12 निर्देश देते हुए मौजूदा सिस्टम को बदलने पर जोर दिया और कहा, “ये आदेश पिंजरे में बंद तोता को आजाद करने की कोशिश है.”
आलेख : *कल्याण कुमार सिन्हा-
आठ वर्षों बाद एक बार फिर देश की सबसे प्रमुख जांच एजेंसी केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) को ‘पिंजरे में बंद तोता’ (CBI caged parrot) करार दे दिया गया है. इस बार इसे दोहराने वाला मद्रास हाई कोर्ट (Madras High Court) है. इससे पूर्व ऐसी टिप्पणी देश की शीर्ष अदालत ने 8 मई 2013 को की थी.
पहले का मामला था- तत्कालीन सीबीआई डायरेक्टर रंजीत सिन्हा के हलफनामे में कोलफील्ड आवंटन घोटाले (कोलगेट) की स्टेटस रिपोर्ट में तत्कालीन कानून मंत्री अश्विनी कुमार और अन्य अधिकारियों द्वारा बदलाव किए जाने के कबूलनामे का. नाराज सुप्रीम कोर्ट ने सरकार पर कड़ी नाराजगी जताते हुए ऐसी बेहद तल्ख टिप्पणी की थी. और अब, मद्रास हाई कोर्ट ने ये टिप्पणी तमिलनाडु में एक कथित पोंजी स्कैम की सीबीआई जांच की मांग करने वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान की है.
ये आदेश पिंजरे में बंद तोते को आजाद करने की कोशिश…
लेकिन इस बार मद्रास हाई कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट से कहीं बहुत आगे जाकर सीधे सीधे-सीधे आदेश ही दे डाला है. कोर्ट ने कहा, “केंद्र सरकार को निर्देश दिया जाता है कि सीबीआई को ज्यादा ताकत और अधिकार क्षेत्र के साथ वैधानिक दर्जा देने के लिए अलग कानून बनाने पर विचार और उस पर फैसला करे.” उसने कहा है कि सीबीआई एक ‘स्वायत्त संस्था’ होनी चाहिए जो सिर्फ संसद के प्रति जवाबदेह हो. हाई कोर्ट ने 12 निर्देश देते हुए मौजूदा सिस्टम को बदलने पर जोर दिया और कहा, “ये आदेश पिंजरे में बंद तोता को आजाद करने की कोशिश है.”
मद्रास हाई कोर्ट ने कहा, “सीबीआई को भारत के चुनाव आयोग और कम्पट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल ऑफ इंडिया (CAG) जैसी स्वायत्तता मिलनी चाहिए, जो कि सिर्फ संसद के प्रति जवाबदेह है.” कोर्ट ने अपने आदेश में कहा, “सीबीआई डायरेक्टर के पास सरकार के सचिव जैसी पावर होनी चाहिए और वो सीधे प्रधानमंत्री को रिपोर्ट करें.”
सीबीआई की कार्यप्रणाली और उसकी विवशता
अनेक महत्व के मामलों की जांच में सीबीआई की कार्यप्रणाली और उसकी विवशता विवादों में घिरती रही है. ये जांच एजेंसी कभी अदालतों की लताड़ झेलता है, कभी विपक्ष की. लगातार केंद्र की सरकार पर आरोप लगता रहा है कि वह सीबीआई का इस्तेमाल राजनीतिक विरोध दबाने के लिए करती है. जब 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने एजेंसी को ‘पिंजरे का तोता’ बताया था, तब भारतीय जनता पार्टी विपक्ष में थी और वह कांग्रेस पर एजेंसी के दुरुपयोग का आरोप लगाती थी. आज वह स्वयं सत्ता में है, तब भी जांच एजेंसी विपक्ष के निशाने पर है. कोर्ट आज भी इससे खुश नहीं है. समय-समय पर अदालतों की आलोचनाओं का सामना भी इसे करना ही पड़ता है. इतना ही नहीं, असम हाई कोर्ट ने तो सीबीआई की स्थापना को ही अवैध ठहरा चुकी है. इस मामले में केंद्र सरकार को सुप्रीम कोर्ट की शरण में जाना पड़ गया था.
जनता की नजरों में सीबीआई की विश्वसनीयता बरकरार
लेकिन पिंजरे में बंद तोता कहने के बावजूद यह भी सत्य है कि देश की जनता की नजरों में सीबीआई की विश्वसनीयता बरकरार है. देश के कोने-कोने से अनेक छोटे-मोटे मामलों में भी लोगों की सीबीआई जांच की मांग अक्सर सुनाई दे जाती है. इसका भी कारण है. कारण है- स्थानीय पुलिस की खराब कार्यप्रणाली. पुलिस का रवैया अविश्वसनीय होने के साथ आम लोगों को भयभीत करने वाला है. साथ ही राज्यों में क़ानून के शासन का अभाव होना भी है. स्पष्ट दिखाई दे जाता है कि गंभीर मामलों में भी पुलिसिया जांच सत्ताधारी नेता से लेकर छुटभैये नेता, बाहुबलियों और धनपशुओं द्वारा हांकी जाती है. ऐसे में सीबीआई जांच की गुहार सुनने को मिलता रहता है.
पुलिस की इन कमियों के कारण लोगों के लिए सीबीआई ही बेहतर विकल्प बन गया है. लेकिन ऐसा भी नहीं है कि कमियों के जंजाल से यह जांच एजेंसी भी मुक्त है. गंभीर आपराधिक वारदातों और आर्थिक घोटालों के साथ भ्रष्टाचार के मामले भी देश में दिन-दूनी रात-चौगुनी की रफ्तार से बढ़ रहे हैं. जैसे स्थानीय पुलिस के पास ऐसे मामलों की जांच में विशेषज्ञों और संसाधनों की कमी है, ऐसी ही कमी सीबीआई में भी है.
मद्रास हाई कोर्ट को सीबीआई द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़े के मुताबिक पिछले 20 वर्षों (2000 से 2020) में सीबीआई में मानवबल में दो हजार से भी कम वृद्धि हो पाई है. जबकि एजेंसी का कार्यक्षेत्र पूरा देश है. 2000 में सीबीआई की जनशक्ति 5,796 थी. अपराधों में अनेक गुना बढ़ोत्तरी और जांच के बोझ के बावजूद सीबीआई की जनशक्ति अब तक मात्र 7,273 ही हुई है. यही कारण है कि 20,804 मामलों में से केवल 7,539 मामले ही सुनवाई में आए. हालांकि इन मामलों का बैकलॉग बहुत ही अधिक है, लेकिन सजा दर 65% से कहीं ऊपर ही रही.
कोर्ट ने केंद्र को दिया निर्देश
मद्रास हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार से देश के इस प्रमुख राष्ट्रीय जांच एजेंसी की जांच में आने वाली अड़चनों को दूर कर इसे सशक्त और पूर्ण सक्षम बनाने के लिए 12 निर्देश भी दिए हैं. कोर्ट का कहना है कि एजेंसी की स्वायत्ता तभी सुनिश्चित होगी, जब उसे वैधानिक दर्जा दिया जाएगा. कोर्ट ने कहा, “केंद्र सरकार को निर्देश दिया जाता है कि सीबीआई को ज्यादा ताकत और अधिकार क्षेत्र के साथ वैधानिक दर्जा देने के लिए अलग कानून बनाने पर विचार और उस पर फैसला करे.” साथ ही यह भी कहा है कि केंद्र सरकार को सीबीआई को कार्यात्मक स्वायत्तता के साथ स्वतंत्र बना देना चाहिए और सरकार का उस पर प्रशासनिक नियंत्रण नहीं होना चाहिए.
अब केंद्र सरकार मद्रास हाई कोर्ट के इस आदेश के प्रति कैसा रुख अपनाती है, इसे कितना तवज्जो देती है, इस पर निर्भर करेगा कि ‘तोता पिंजरे से बाहर आ सकेगा अथवा नहीं.’