पेंशनरों के हितों को कुचल रही केंद्र की भाजपा सरकार  

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पेंशनरों

आलेख : *दादा तुकाराम झोड़े
अब यह स्पष्ट होता जा रहा है कि
ईपीएस-95 पेंशनरों की समस्या का एक बड़ा कारण केंद्र की भारतीय जनता पार्टी की सरकार ही है. खेद की बात है कि सत्ता में आने के पूर्व इसी पार्टी की पहल पर तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने 2013 में तत्कालीन भाजपा सांसद भगत सिंह कोशियारी के नेतृत्व में समिति का गठन किया था. कोशियारी समिति की सिफारिशों पर EPFO के अड़ंगे और उसके बाद लोकसभा के लिए आम चुनाव की घोषणा से यह समस्या बनी की बनी रह गई थी. लेकिन तभी चुनावी रैलियों में भाजपा ने ईपीएस-95 पेंशनरों को भरोसा दिलाया था कि सत्ता में आने के बाद उनकी सरकार तीन महीने में कोशियारी समिति की सिफारिशें लागू कर देगी. लेकिन दुर्भाग्य से उनका यह वादा न केवल हवाबाजी या उन्हीं के शब्दों में “जुमला” साबित हुआ, बल्कि देश की सर्वोच्च न्यायालय के साथ कई उच्च न्यायालयों के पेंशनरों के पक्ष में दिए फैसलों को भी केंद्र की भाजपा सरकार ही ठेंगा दिखाने का काम कर रही है.

सरकार के लिए भी दुर्भाग्यपूर्ण
लेकिन केंद्र की भाजपा सरकार के लिए EPS-95 सेवानिवृत्त पेंशनरों की समस्याओं के बारे में गंभीरता से सोचने का समय आ गया है. 2013 में भगत सिंह कोशियारी समिति की सिफारिशों के बाद, 2016 में आर.सी. गुप्ता मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया और 2019 में “EPS-95 संशोधन अधिनियम 2014” को निरस्त करने का सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया. लेकिन यह भाजपा सरकार का दुर्भाग्य है कि उसने कुछ भी लागू नहीं होने दिया है. इसका मूल कारण क्या हो सकता है, जो भी होगा, सरकार के लिए भी दुर्भाग्यपूर्ण ही होगा.

भगत सिंह कोशियारी समिति की सिफारिशों को लागू करना केंद्र सरकार की जिम्मेदारी है. इतना ही नहीं केंद्र सरकार पर ही सर्वोच्च न्यायालय के दोनों निर्णयों को भी लागू करने की भी जिम्मेदारी है. लेकिन दुर्भाग्य से केंद्र सरकार ने इस संबंध में कोई सकारात्मक कार्रवाई करना तो दूर, इन सिफारिशों और फैसलों की अवहेलना पर उतर आई है.

विशेष अनुमति याचिकाएं और पुनर्विचार याचिकाएं
अब चूंकि केंद्र सरकार भगत सिंह कोश्यारी समिति की सिफारिशों को लागू करने और सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लागू नहीं करने के बारे में सकारात्मक नहीं है, इसलिए केंद्र सरकार और कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (EPFO) ने सेवानिवृत्त पेंशनरों के हितों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिकाएं और पुनर्विचार याचिकाएं दायर कर दी हैं. खेद की बात यह भी है कि उनकी इन अपीलों पर देश की सर्वोच्च अदालत अब तक सुनवाई नहीं शुरू कर सकी है.

यह एक कड़वी सच्चाई है कि देश की सर्वोच्च अदालत और कई उच्च न्यायालयों ने ईपीएस-95 पेंशन मामलों और अन्य पेंशन मामलों में पेंशनरों के हित में अनेक फैसले सुना चुकी है. ऐसे में इस मामले में अब केंद्र सरकार और EPFO की इच्छा के अनुरूप फैसला सुनाना, न्याय की हत्या करने के बराबर साबित हो सकता है. लेकिन अब आज की परिस्थितियों में तो यह भी एक सच्चाई ही है कि जब तक केंद्र सरकार का रुख नहीं बदल जाता, तब तक पेंशनरों को न्याय मिलने की उम्मीद नहीं है.

नेता इस बारे में बात करने को भी तैयार नहीं
आज भारतीय जनता पार्टी केंद्र की सरकार में अपना दूसरा टर्म चला रही है. इसके नेता जब विपक्ष में थे, वे ईपीएस-95 की पेंशन में वृद्धि के लिए आंदोलन कर रहे थे. उन्होंने भगत सिंह कोशियारी समिति की सिफारिशों को 90 दिनों में लागू करने का वादा किया था. इन नेताओं में प्रकाश जावड़ेकर, नितिन गडकरी, हंसराज तो प्रमुख हैं (दोनों दो टर्म से केंद्र सरकार के प्रमुख मंत्री भी हैं) और कोशियारी समिति के प्रमुख भगत सिंह कोशियारी भी महाराष्ट्र के राज्यपाल पद को सुशोभित कर रहे हैं. लेकिन अब ये नेता इस बारे में बात करने को भी तैयार नहीं हैं.

संघ प्रमुख भी धृतराष्ट्र की भूमिका में
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तत्वावधान में बने, संघ के संस्कारों वाले इन नेताओं ने ईपीएस-95 पेंशनरों को धोखा देने का ही काम किया है. हमने संघ के सरसंघचालक माननीय डॉ. मोहन भागवत को भी पत्र लिखकर पेंशनरों की तकलीफें बताई, केंद्र की भाजपा सरकार के रवैए की जानकारी उन्हें भी दी. लेकिन उनकी ओर से भी कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली. संघ प्रमुख भी मानो अब धृतराष्ट्र की भूमिका में आ गए हैं. ऐसा लगता है कि इस टीम ने ईपीएस-95 पेंशनरों के प्रति उनकी टीम की कोई जिम्मेदारी भी है.

ईपीएस-95 पेंशनरों के करीब 60 मामले लंबित
सुप्रीम कोर्ट में पिछले तीन-चार साल से ईपीएस-95 पेंशनरों के करीब 60 मामले लंबित हैं, जिनमें पुनर्विचार याचिकाएं, विशेष अनुमति याचिकाएं और केंद्र सरकार की ओर से सेवानिवृत्त पेंशन भोगियों की ओर से दायर याचिकाएं शामिल हैं. जहां इस बात के दिशानिर्देश हैं कि वरिष्ठ नागरिकों के मामले जल्द से जल्द निपटाए जाएंगे और यह नियम सरीखा भी है, लेकिन ये सभी मामले केंद्र सरकार की अनम्य नीति के कारण ही सुप्रीम कोर्ट में लंबित हैं.

केरल उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय को भी मानने को तैयार नहीं
न्यूनतम पेंशन न बढ़ाने, भगत सिंह कोश्यारी समिति की सिफारिशों का पालन न करने और सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालयों के आदेशानुसार पूर्ण वेतन पर पेंशन न मिलने के लिए केंद्र की भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सरकार पूरी तरह से जिम्मेदार है. इतना ही नहीं, भाजपा सरकार ने 01-09-2014 से कानून में प्रतिकूल बदलाव कर दिए हैं, पूर्ण वेतन पेंशन बंद कर दी है और भाजपा सरकार इस संबंध में केरल उच्च न्यायालय और बाद में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय को भी मानने को तैयार नहीं है.

केंद्र सरकार की सह पर ही EPFO भी मनमानी कर रहा है. सुप्रीम कोर्ट के फैसले का पालन नहीं होने दे रहा है. कानूनों का पालन नहीं हो रहा है. पेंशनरों के हितों के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने में सरकारी धन और समय बर्बाद किया जा रहा है. यह कहना गलत नहीं होगा कि इन लाचार, गरीब, वयोवृद्ध पेंशनरों के मामले में देश कानून से नहीं, बल्कि भाजपा सरकार की इच्छा से शासित है.

किसी मांग के अभाव में सरकार ने देश में किसानों के लिए तीन नए कानून बनाए हैं. किसानों का कहना है कि ये कानून उनके खिलाफ हैं और पिछले छह-सात महीने से आंदोलन चल रहा है. मांग के अभाव में केंद्र सरकार ने श्रमिकों के लिए सभी पुराने कानूनों को निरस्त कर दिया और चार नए कानून बनाए, जिनके बारे में ट्रेड यूनियनों का कहना है कि ये कानून, श्रमिक हितों के खिलाफ हैं.

बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण और निंदनीय
इसी तरह, 2014 में ईपीएस-95 में केंद्र सरकार द्वारा किए गए कानून में बदलाव भी न केवल पेंशनरों के हितों के खिलाफ हैं, बल्कि अवैध भी हैं. केरल हाईकोर्ट और बाद में सुप्रीम कोर्ट ने भी सरकार की इस कारस्तानी को अवैध करार दिया है. लेकिन भाजपा सरकार इसे सुधारने को तैयार नहीं है. यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण और निंदनीय है कि देश के सर्वश्रेष्ठ अधिवक्ता सुप्रीम कोर्ट में झूठे बयान दे रहे हैं, देश के माननीय प्रधानमंत्री संसद में झूठ बोल रहे हैं, श्रम मंत्री संसद में झूठ बोल रहे हैं. ऐसे में भाजपा सरकार की जन विरोधी नीतियों को देखते हुए देश की जनता से उचित निर्णय लेने का समय ने की बात भी होने लगी है.

यह कैसी तानाशाही?
भारतीय जनता पार्टी की यह सरकार न तो आंदोलन सुन रही है और न ही सुप्रीम कोर्ट के फैसले की परवाह करती नजर आ रही है. साफ़ दिखाई दे रहा है कि उसे किसानों, मजदूरों, बुजुर्गों, गरीबों, पेंशनरों और जनता के प्रति कोई सहानुभूति नहीं है. लोकतंत्र का पहरुआ होने का दावा करने वालों की यह कैसी तानाशाही है?

क्या यह उचित है कि देश की जनता से वादे कर केंद्र और राज्यों की सत्ता हासिल करने वाली पार्टी की सरकार वादे भूल जाए और उनकी न्यायसंगत अधिकारों से ही उन्हें वंचित करने की चालें चलने लगे..? आज इस सरकार ने देश में ऐसे हालात बनाने शुरू कर दिए हैं कि कानून पूरी तरह से आपके पक्ष में हो तो भी यह नहीं कहा जा सकता कि देश की अदालतें आपके पक्ष में फैसला देंगी. अब  सभी को देश को सतर्क रहने की जरूरत है.

न्याय का शासन स्थापित करें
माना जाता है कि सरकार बुरी नहीं होती, लेकिन जिन लोगों के हाथ में सरकार होती है वे बुरे दिमाग वाले और बेहद स्वार्थी हुए तो दुर्भाग्यपूर्ण परिस्थितियां देश की जनता के लिए निर्माण होते देर नहीं लगती. अभी भी वक्त है, सरकार में बैठे लोगों को अपनी सोच बदलने और अपनी नैतिकता जगाने की जरूरत है. विनम्र अनुरोध और अपेक्षा है कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता भगवान रामचंद्र द्वारा निर्धारित आदर्शों को ध्यान में रखते हुए, न्याय का शासन स्थापित करें और पेंशनरों से किए गए वादे पूरा करें.

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