*कल्याण कुमार सिन्हा,
आलेख : कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (Employees Provident Fund Orgnisation) अथवा EPFO भारत सरकार के श्रम मंत्रालय के अधीन निजी क्षेत्र और सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों के कर्मचारियों और अधिकारियों की भविष्य निधि के साथ पेंशन का प्रबंध करने वाला और भुगतान करने वाला संगठन है. यह विश्व में सबसे बड़ा सामाजिक सुरक्षा संगठन है. वर्तमान में अपने सदस्यों से संबंधित 19.34 करोड़ खातों (वार्षिक रिपोर्ट 2016-17) का रख रखाव कर रहा है. लेकिन यह संगठन अब पेंशनरों के लिए अभिशाप और दुर्भाग्यपूर्ण बन गया है.
पेंशनरों के लिए अभिशाप और उनका दुर्भाग्य इस कारण से भी है कि अपने सामाजिक सुरक्षा के दायित्व को निभाने से न केवल मुकरता है, बल्कि इसकी करतूतों पर पर्दा डालने और इसके कुकर्मों के बचाव में “ढाल” भारत सरकार बनी हुई है. भारत सरकार सत्तारूढ़ दल के वोट बैंक के लिए एक ओर जहां एक पर एक सामाजिक सुरक्षा योजनाएं चला रही है, जीपीएफ के अंतर्गत केंद्र और राज्य सरकार के सेवानिवृत्तों को पेंशन की भारी भरकम राशियां और अनेक सुविधाएं दे रही है, पूर्व सांसदों और पूर्व विधायकों के लिए बेशर्मी की हद तक जाकर पेंशन और सुविधाओं की बड़ी-बड़ी रकमें खर्च कर रही है, वहीं अपनी ही संस्था EPFO द्वारा सामाजिक सुरक्षा के नाम पर देश भर के 60 लाख से कहीं और अधिक पेंशनरों के हक को मारे जाने के घिनौने अपराध की न केवल अनदेखी कर रही है, वरन उसके साथ भी खड़ी हो कर असहाय वयोवृद्ध पेंशनरों के साथ अन्याय में सहभागी भी बनी हुई है. इसे पेंशनरों का अभिशाप और दुर्भाग्य न कहा जाए तो और क्या कहा जाए.
जीवन के अंतिम दिन गिन रहे देश के 60 लाख से अधिक पेंशनरों के आगे से भोजन की थाली छीनने में लगी इस तथाकथित सरकारी सामाजिक संगठन की भर्त्सना देश भर में हो रही है. भारत सरकार भी उसके इस कुकृत्य में आश्चर्यजनक ढंग से सहयोगी बनी हुई है. आश्चर्यजनक इसलिए भी है, क्योंकि एक ओर भारत सरकार और सत्तारूढ़ राजनीतिक दल जहां प्रतिदिन अपने सामाजिक सुरक्षा कार्यों का ढिंढोरा पीटती नजर आती है, वहीं EPFO पर आश्रित देश के 60 लाख से अधिक पेंशनरों के साथ हो रहे अन्याय की न तो उन्हें फिकर है न उनके लिए उसके पास कोई योजना ही है.
पेंशनरों के हक में देश की सर्वोच्च अदालत और राज्यों के उच्च न्यायालयों के फैसलों और आदेशों को निष्क्रीय बनाने के घिनौने खेल में भी यह अभिशाप बना सरकारी सामाजिक संगठन बखूबी खेल खेल रहा है. उसके ऐसे घिनौने कृत्य में भारत सरकार भी बराबर की साझेदार बनी नजर आती है.
60 लाख इन पेंशनरों के साथ किए जा रहे इस पाप में देश की विपक्षी राजनीतिक दल भी कम दोषी नहीं हैं. वोट बैंक की राजनीति के इन सभी पक्ष-विपक्ष के खिलाड़ियों ने मानों इस ओर से आंखें बंद कर रखी हैं. देश के उत्तर, मध्य, पश्चिम और पूर्व राज्यों के समाचार पत्र और मीडिया भी ऐसे अन्याय के प्रति चुप हैं. इसके विपरीत वे तो EPFO की गुणगान में ही जुटी नजर आती हैं. केवल दक्षिण भारत के कुछ समाचार पत्र ही हैं, जो नियमित रूप से इनकी कुटिलता पर प्रहार कर रहे हैं. …और संभवतः यही एक कारण भी है कि सत्तारूढ़ दल को भी इस मामले में कहीं कोई बड़ी चुनौती नजर नहीं आती. लेकिन अब परिस्थितियां तेजी से बदलने लगी हैं. भले ही देश की न्यायपालिका के फैसलों को EPFO और भारत सरकार निष्प्रभावी बनाने में सफल हो जाएं, वयोवृद्ध पेंशनरों के हौसले अब मजबूत ही हो रहे हैं.
(पेंशनरों के लिए अभिशाप बना EPFO की कुटिलताओं पर यह सीरीज हमने आरंभ किया है. प्रामाणिक रूप से जुटाए गए आंकड़ों और उसकी चालों से इस सीरीज के अंतर्गत पाठकों को जानकारियां उपलब्ध कराना इस सीरीज का उद्देश्य है – संपादक)