गड़करी के हालिया बयान : क्या यह है कोई सोची-समझी चाल?

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गड़करी

मीडिया पर बयान को तोड़ने-मरोड़ने की गड़करी की सफाई के बावजूद बयानों पर लगातार लगाई जा रही हैं अटकलें

News18.com में वेंकटेश केसरी की रिपोर्ट
नागपुर
में जन्मे और संघ की शाखाओं में पले-बढ़े नितिन गड़करी संघ के काफी प्यारे हैं. हालांकि कुछ लोगों का कहना है कि उनके काम करने का तरीका काफी कुछ कांग्रेसी नेताओं जैसा है. लेकिन भारतीय जनता पार्टी के पूर्व अध्यक्ष अपनी हिंदुत्वादी विचारधारा को दिखाने में कभी भी पीछे नहीं हटते.

लेकिन भाजपा के दूसरे नेताओं के उलट गड़करी के दूसरी पार्टियों में भी दोस्त हैं. हालांकि, गड़करी इस वक्त नए विवादों से घिर गए हैं. हाल ही में दिए गए उनके बयानों की राजनीतिक रूप से काफी चर्चा हो रही है.

संघ के प्रिय गड़करी इस वक्त अपनी छवि ऐसी बनाना चाहते हैं जिस पर सभी एकमत हों. उनके इस बयान के बावजूद कि मीडिया उनकी बातों को तोड़-मरोड़ कर पेश कर रहा है, उनके बयानों को लेकर लगातार अटकलें लगाई जा रही हैं कि इसके पीछे मकसद क्या है. गड़करी के अंदर एक खास बात है कि विरोधियों से भी उनके संबंध काफी अच्छे हैं और भाजपा को इस वक्त विरोधियों के समर्थन की काफी ज़रूरत है.

अगर एक समय में अमित शाह और नरेंद्र मोदी के मजबूत व्यक्तित्व ने पार्टी को सत्ता में लाने में मदद की तो अब पार्टी को विपक्षी पार्टियों की भी ज़रूरत पड़ सकती है. हाल ही में मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की जीत ने बता दिया है कि बीजेपी कमजोर हो रही है और विपक्ष मज़बूत हो रहा है.

ऐसे समय में जब टीडीपी, राष्ट्रीय लोक समता पार्टी ने एनडीए को छोड़ दिया है, शिवसेना भी लगातार इस बात की धमकी दे रही है कि वो भाजपा का साथ छोड़ देगी, जनता दल (यू), लोजपा और अपना दल भी सीट शेयरिंग को लेकर लगातार जोड़-तोड़ मे लगे हुए हैं. ऐसी स्थिति में गड़करी का दूसरी पार्टी के नेताओं से व्यक्तिगत स्तर पर अच्छे संबंध होना भाजपा के काफी काम आ सकता है. माना जाता है कि गड़करी ऐसे भाजपा नेता हैं, जिनके अरविंद केजरीवाल से लेकर ई. पलानीस्वामी तक सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों से अच्छे संबंध हैं.

हाल ही में यूपीए की अध्यक्ष सोनिया गांधी ने राय बरेली में उनके द्वारा किए गए काम को लेकर व्यक्तिगत स्तर पर उन्हें धन्यवाद दिया. महाराष्ट्र में भी शिवसेना और एनसीपी दोनों को ही उनसे कोई दिक्कत नहीं है.

संयोग से हाल ही में भाजपा लोकसभा सांसद नाना पटोले ने पार्टी छोड़ दी. राजू शेट्टी की अगुवाई वाली स्वाभिमानी पक्ष एनडीए छोड़ने वाली पहली सहयोगी पार्टी थी और ऐसा कोई दिन नहीं जाता जब शिवसेना का मुखपत्र सामना किसी भी दिन मोदी और अमित शाह पर हमले न बोलता हो.

हाल के विधानसभा चुनावों ने भाजपा को चौकन्ना कर दिया है. कर्नाटक विधानसभा चुनाव ने सिद्ध कर दिया है कि अगर भाजपा के पास लोकसभा चुनाव के बाद सरकार बनाने के लिए ज़रूरी छह सीटें भी कम रहती हैं तो विपक्ष एकजुट हो जाएगा और भाजपा को सत्ता में आने नहीं देगा. राजस्थान और मध्य प्रदेश में चुनाव हारने के बाद भी ऐसा लगता है कि शिवराज और वसुंधरा के व्यवहार में कोई बदलाव नहीं आया है.

आगे जो भी होगा, उसमें नितिन गड़करी की कितनी भूमिका होगी, कहा नहीं जा सकता, लेकिन ऐसा लगता है कि गड़करी अपनी स्थिति के बारे में पता लगा रहे हैं, जबकि बाकी नेता अभी इंतजार करके माहौल को भांपने की कोशिश कर रहे हैं.

(News18.com से साभार)

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